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शान्तिनाथ पुराण में प्रतिबिंबित कथानक रूढ़ियां
कुमारी मृदुला शोध छात्रा, बिजनौर
रूढ़ि या अभिप्राय वह छोटा और पहचान में आने विद्या दी, जिससे उसने अमनिघोंष की बहुरूपिणी तथा वाला तत्व है जो यह बतलाता है कि किसी विशेष प्रकार भ्रामरी विद्या छेद दी।' की कथा के कौन-कौन से उपकरण दूसरे प्रकार की कथा (ग) कथानकके प्रण को परीक्षा : सौधर्म इन्द्र की में प्रयुक्त हुए हैं।'
सभा में किसी व्यक्ति विशेष के व्रतों की प्रशंसा की जाती कथा के क्षेत्र में अलौकिक और अमानवीय शक्तियों है। कोई ईाल देव उन प्रशंसात्मक बातों पर विश्वास से सम्बन्धित लोक विश्वासों ने बहुत प्रभावित किया है। नहीं करता और उसकी परीक्षा के लिए चल देता है।' पराण कथाओं था निजधरी आख्यानों की सृष्टि भी इन्ही .
इस कथानक रूढ़ि का प्रयोग 'असग' ने लघु कथा में विश्वासों के आधार पर हुई है।'
लिया है। दशम सर्ग में कनकशान्ति जब एक वर्ष का शान्तिनाथ पुराण में इस श्रेणी की निम्नलिखित कथा- निमार
प्रतिमायोग लेकर खड़े रहे, तबउनको देखकर तीन क्रोध नक रूढ़ियां पाई जाती हैं
से अतिवीर्य और महाबल असुर मुनिराज का घात करने (क) विद्या द्वारा नायक को धोखा देना-शान्तिनाथ के लिए प्रवृत्त हुए किन्तु रम्भा तथा तिलोत्तमा अप्सराओं पुराण के सप्त सर्म में इस कथानक रूढ़ि का प्रयोग द्वारा मुनि की पूजा करते देख कर शीघ्र ही भाग गए। मिलता है-"दीपशिख नामक विद्याधर आकाश से आकर (घ) तीर्थंकरों की महत्ता प्रकट करना-प्राकृत स्वयंप्रभा से कहता है कि जब मैं अपने नगर जा रहा था संस्कृत दोनों ही भाषाओ के जैन कथाकार कथानों को तो मैंने एक स्त्री के रोने का शब्द सुना । उस स्त्री ने मुझे चमत्कृत बनाने एवं तीर्थकरों की महत्ता बतलाने के लिए बताया कि ज्योतिवन मे विद्या से मेरे पति को छल कर देवों का कल्याणकों के समय आना दिखलाते हैं । जन्म के यह अशनि घोष मुझे बलपूर्वक अपनी नमरी ले जा रहा समय देव सुमेरु पर्वत पर तीर्थकरों की महत्ता बतलाने के है। अतः मेरे पति की रक्षा करो। मैं वहां से लौटा। लिए जन्माभिषेक सम्पन्न करते हैं। वैराग्य होने पर बात यह हुई कि सुतारा का रूप धारण करने वाली विद्या लोकान्तिक देव आते हैं और तीर्थकर वैराग्य की पुष्टि कुक्कुट सर्प के विष के बहाने झूठ मूठ मर गई और उसे करते हैं । केवल ज्ञान होने पर समवशरण रचना देवों मृत जानकर राजा श्री विजय बहुत व्याकुल हुआ और द्वारा होती है । निर्वाण प्राप्त होने पर अग्नि कुमार जाति उसे लेकर चितारूढ़ हो गया। इसी बीच अशनिघोष के देव अग्नि संस्कार तथा वैमानिक देव निर्वाणोत्सव सुतारा को हर.कर ले गया।'
सम्पन्न करते हैं।' विद्याधरोंका संसर्ग-ग्रंथकार नायक को कठिना- शान्तिनाथ पुराण में तीर्थंकर शान्तिनाथ के जन्म इयों में डालकर किसी विद्याधर या अमानवीय शक्ति के के समय इन्द्रादिदेव सुमेरु पर्वत पर जन्माभिषेक सम्पन्न साप उसे सम्बद्ध दिखलाता है।'
करते हैं। वैराग्य होने पर लौकान्तिक देव तीर्थकर की शान्तिनाप पुराण के सप्तम सर्ग में राजा श्री विजय वैराग्य पुष्टि करते हैं। कैवल्य ज्ञान होने पर देवों द्वारा को विद्याधर नरेश ने हेविनिवारणी तथा विमोचिनी समवसरण निर्माण होता है"निर्वाण प्राप्त होने पर