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________________ ग्राम पगारा की जैन प्रतिमाएं नरेश कुमार पाठक पगारा मध्यप्रदेश के धार जिले में तहसील मनावर मण्डल है, वितान में त्रिछत्र एवं पार पपासन में बैठी के अन्तर्गत एक छोटा सा ग्राम है। यह इन्दौर से लगभग हई जिन प्रतिमानों का अंकन है। १००कि.मी. की दूरी पर अवस्थित है। इन्दौर से बस , जन प्रतिमा पाव पीठ: द्वारा धामनोद, धरमपुरी से होते हुए, पगारा पहुंचा जा सकता है। धरमपुरी से यह लगभग ८ कि. मी. उत्तर जैन प्रतिमा पापीठ से सम्बन्धित शिल्पबह तीन पश्चिम में अवस्थित है। इस गांव में स्थित टीले का हनुमान मन्दिर से और एक-एक बावड़ी एवं गणपति उत्खनन मध्य प्रदेश पुरातत्व एव सग्रहालय विभाग द्वारा मन्दिर से प्राप्त हुए हैं। इन पादपीठों के मध्य धर्मचक्र १९८१-८२ में कराया गया जिसमें शुंगकाल से लेकर मुगल दोनो पाश्व में हाथा एव सिह का दोनों पार्श्व में हाथी एवं सिंह की आकृतियों का बालेकाल तक के अवशेष प्राप्त हुये। पगारा ग्राम एवं टीले बन है। के आसपास कई जैन प्रतिमाएं रखी हुई हैं। जिनका जन प्रतिमा वितान: विवरण निम्नलिखित है : जन प्रतिमा वितान से सम्बन्धित शिल्प कृतियों में जन शासन देवी पद्मावती: ६ बावड़ी से तीन हनुमान मन्दिर एक-एक टीले एवं हनुमान मन्दिर से प्राप्त चतुभुजी देवी पपावती सव्य गणपति मन्दिर से प्राप्त हुए है। इन पर विछत्र, दुन्दुललितासन में बैठी हुई निर्मित है। देवी की भुजाओं में भिक अभिषेक करते हुए हाथी, विद्याधर युगल, कायोदक्षिणाधः क्रम से अक्षमाला सनालपप, समालपन एव सर्ग तथा पपासन में जिन प्रतिमा एवं मकर व्यालों का बायी नीचे की भुजा भग्न है। नीचे देवी के वाहन हस का आलेखन है। मंकन दोनों पावं मे परिवारिका प्रतिमा बनी हुई जैन शिल्प खण्ड: है। वितान में पद्मासन में जैन तीर्थकर प्रतिमा कित जैन प्रतिमा शिल्प खण्ड से सम्बन्धित तीन कलाहै। देवी करण्ड मुकुट, चक्र कुडल,उरोजों को स्पर्श करता कृतियां बावड़ी से प्राप्त हुई है। प्रथम जैन प्रतिमा का हुवा हार, केयूर, बलय, मेखला, नूपर से अलंकृत है। दायाँ भाग है, जिममें एक कायोत्मग एवं एक पपामन में लांछन विहीन तीर्थकर प्रतिमाएं : तीर्थकर प्रतिमा अकित है। दाएं पार्श्व में चामरधारी हनुमान मन्दिर के सामने से प्राप्त प्रथम प्रतिमा एवं मकर व्याल का बंकन है। में पद्मासन की ध्यानस्थ मुद्रा में तीर्थकर अकित द्वितीय में दो जिन प्रतिमा एवं दायीं ओर एक है। वक्ष पर श्रीवत्स का आलेख है। पार्श्व में सिर विहीन चांवरपारी का शिल्यांकन है। परिचारिका का त्रिभंग मुद्रा में अंकन है । मूर्ति का सिर व पादपीठ भग्न है। तृतीय पर पपासन की ध्यानमुद्रा में जिन प्रतिमाओं दूसरी प्रतिमा में भी तीर्थकर पद्मासन में अंकित है। का बालेखन है। बावड़ी से प्राप्त तीर्घकर का ऊवं भाग ही शेष है। -केन्द्रीय संग्रहालय, प्रतिमा कुन्तलित केशराशि से युक्त सिर के पीछे प्रभा गूजरी महल, ग्वालियर।
SR No.538038
Book TitleAnekant 1985 Book 38 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1985
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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