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________________ १४, वर्ष १८ कि.२ अनेकान्त विद्वानों की गोष्ठियों का आयोजन करते थे उस समय के समय भी नवयुवक और नवयुवतियां, गाते नाचते और गणिकानों को भी आमन्त्रित किया जाता था।" इन्द्र- अनेक प्रकार से मनोविनोद करते।" मदनोत्सव के समय ध्वज के उत्सव के समय भी गणिका-निगम को निमन्त्रण भी पुरुष और स्त्रियां काम-क्रीड़ाएं करते थे। भेजा जाता था।" इससे स्पष्ट है कि समाज मे गणिकाओं समाज में इतना नैतिक पतन होने का प्रमुख कारण का पर्याप्त आदर था और सन्त और जैन श्रावक भी संभवतः तंत्रयान की लोकप्रियता थी। तंत्रयान में सभोग उनके साथ सहवास करने में अपनी प्रतिष्ठा की हानि ने धार्मिक कृत्य का स्वरूप ले लिया। बौद्ध तात्रिकों का नहीं समझते थे । विश्वास था कि बिना स्त्री-सभोग किए मोक्ष नही मिल देवदासियां: सकता।" वे माता, बहन वा अन्य सम्बन्धिनी स्त्री से भी कुछ व्यक्ति अपनी कन्याओ को मन्दिरों को अपित समोग करना अनुचित नही समझते थे। इस प्रकार की करते थे। ये कन्याएं वेश्यावृत्ति से जो धन कमाती थी अनैतिक विचाराधारा के फैलने से जनसाधारण की शक्ति मन्दिरों के पुजारियो को देती थी। इनमें से कुछ देव- निश्चय ही बहुत कम हो गई होगी। ऐसे निःशक्त जनता दासियां मन्दिरों में नृत्य करती थी। हम गुप्तोत्तर काल विदेशियों के आक्रमणों का कैसे डटकर मुकाबला कर के विवेचन मे कह चुके हैं कि कुछ सच्चरित्र व्यक्तियो ने इस प्रथा को समाप्त करने का प्रयल किया किंतु राजाओ कवियों का स्तर: के विरोध के कारण वे अपने इस कार्य मे सफल नहीं इस काल के कवि जैसे बिल्हण और जयदेव सहवास हए। ऐसा प्रतीत होता है कि इस काल में देवदासियों का विस्तत विवरण देने मे लेशमात्र की सख्या बहुत बढ़ गई थी। करते । बिल्हण का और चौरपंचशिका का वर्णन निश्चय ___ गुजरात के मन्दिरों मे ही २० हजार से अधिक देव- ही व्यभिचार का वर्णन प्रतीत होता है। जयदेव के गीत दासिया थी .५. बंगाल के घुम्नेश्वर" और ब्रह्म श्वर गोविन्द मे भी मथुनिक प्रेम का स्पष्ट विवरण मिलता गोविन्ट मे भी थनिक पेस । मन्दिरों में भी अनेक देवदासियाँ रहती थी। कटक के है। लक्ष्मणसेन ने अपनी रतिक्रीडाओं का वर्णन अपने एक निकट शोभनेश्वर शिव मन्दिरो मे भी अनेक देवदासिया अभिलेख में किया है। इससे समाज के नैतिक पतन का रहती थी।" एक साधु द्वारा स्थापित बदायूं (उत्तर अनुमान लगाया जा सकता है। कश्मीर के लेखकोमें क्षेमेद्र प्रदेश) के एक शिव-मंदिर मे भी देवदासियां रहती थी।" और दामोदर गुप्त का उल्लेख तो हम पहले ही कर और दामोटर गएत का उल्लेख तो - कश्मीर" और सामनाथपुर" के मदिरो में भी अनेक चके हैं। देवदासियां रहती थी। जोजल्लदेव चाहमान के दो अभि- जिला. लेखों (१०९०ई०) से स्पष्ट है कि उसने स्वय इस प्रथा गोल भारतीय कला में शिधयों निवा: को प्रोत्साहन दिया और अपनी सन्तान का इस प्रथा का उद्देश्य धार्मिक तथा दार्शनिक था। यह सष्टि और पवित्र इस प्रथा को बन्द करने का आदेश दिया।" इसका यह प्रेम का प्रतीक समझा जाता था। मनुष्य और स्त्री दोनों परिणाम हुआ कि धार्मिक उत्सवों के धार्मिक स्वरूप का जीवन के लक्ष्य के पूरक समझे जाते थे। किंतु खजुराहो इस काल में कोई महत्व न रहा । वे आमोद-प्रमोद और और पुरी के जगन्नाथ मदिर मे जो मैथुनक्रियाओं के दृश्य व्यभिचार के अवसर बन गए । लक्ष्मीधर ने कृत्यकल्पतरु दिखलाए गए हैं वे निश्चय ही कामोत्तेजक हैं।" भोज ने के नियतकालकांड में उदक-सेवा, महोत्सव का जो वर्णन अथ समरांगण सुधार मे लिखा है कि स्त्रियों को प्रेमी के दिया है उससे स्पष्ट है कि इस उत्सव के समय मनुष्य, साथ सहवास करते हुए चित्रित करना चाहिए ।" मंदिरों स्त्री और बालक सभी निर्लज्ज होकर शराब पीकर में पूजा करने के लिए हजारों बादमी प्रतिदिन जाते थे। अश्लील गाने गाते और सम्भवतः चाहे जिसके साथ मह- उपर्युक्त वर्णन से हमें यह नहीं समझ लेना चाहिए वास करना भी बुरा नहीं समझते थे।" कौमुदी महोत्सव कि समाज में सच्चरित्र, परोपकारी और दानशील व्यक्ति
SR No.538038
Book TitleAnekant 1985 Book 38 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1985
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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