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पूर्व मध्यकालीन भारत में मैतिक धर्म का पतन
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रहा।" इसका यही अर्थ है कि गुजरात में अधिकतर अत्याचार से बचना चाहिए।"मानसोल्लास से" बोर व्यक्ति मद्यपान करते थे। इससे यही निष्कर्ष निकलता है। राजनीति-रलाकर में भी कायस्थो के विषय में ऐसे ही कि भारत में इस समय धनी परिवारो मे मद्यपान को विचार व्यक्त किए गए हैं। कल्हण ने कायस्थों की तलना बुरा नही समझा जाता था।
दीमक से की है। क्षेमेन्द्र नेनर्ममाला में कायस्थों की आत्म हत्या:
बेईमानी, मूठे व्यवहार और उनकी रिश्वत लेने की आदत लक्ष्मीधर ने मत्स्यपुराण को उद्धृत करते हुए लिखा का स्पष्ट उल्लेज किया है। उनके अत्याचारो के कारण है कि वाराणसी में अपने को अग्नि मे जलाकर, प्रयाग जनता को निश्चय ही बहुत कष्ट सहन करने पर होंगे। मे संगम पर डूब कर और अमर कटक. पर्वत से कूदकर व्यापारी वसाहकार : नर्मदा नदी मे डूबकर आत्महत्या करने से मनुष्य पुण्य का भारत के व्यापारी अपनी ईमानदारी के लिए प्रसिद्ध भागी होता है। चौलुक्य राजा मूलराज ने ६E ई० मे थे कि दूर-दूर से व्यापारी यहा व्यापार करने के लिए सिद्धपर अग्नि में प्रवेश करके प्राणत्याग किया था।" आते थे।" किन्तु कल्हण के वर्णन से ज्ञात होता है कि १००२ ई० मे चदेल राजा धग ने प्रग में आत्महत्या कश्मीर मे अनेक साहूकार ऐसे थे कि ऊपर से तो अपनी की थी। इसी समय शाहीय राजा जयमाल ने महमूद धार्मिकता का दिखावा परते थे किन्तु वैसे धरोहर का गजनबी से पराजित होकर अग्नि में प्रवेश किया था। माल उठाकर जाते थे। व्यापारियो को भी कल्हण ने कलचूरि राजा गागेय देव ने १०४० ई० मे अपनी सो घोखेबाज कहा है।" हेमचन्द्र के वर्णन से ज्ञात होता है रानियो के साथ प्रयाग में आत्म-हत्या की थी।" १०६८ कि गुजरात में भी अनेक बेईमान व्यापारी थे।" कथाई० मे चालुक्य राजा सोमेश्वर प्रथम ने तुगभद्रा मे डूब मग्लिागर में भी बेईमान व्यापारियो की अनेक कथाएं कर" पाल राजा रामपाल ने ११२० ई." मे और है।४ उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि ग्यारहवी तथा जयचन्द्र ने ११९४ ई० मे आत्महत्या को । उपर्युक्त बारहवी शताब्दी के भारतीय व्यापारी अपने उच्च नैतिक विवेचन से स्पष्ट है कि इस काल के राजा कई बन्धन मे स्तर से बहुन गिर गए थे। मुक्त होने का बहाना करके आत्म हत्या करने मे ही पुण्य वेश्या: समझते थे। इन आत्म हत्याओ से ममाज का क्या पूर्व मध्यकालीन भारत में प्रायः सभी नगरी में कल्याण हो सकता था । उपनिषदो के अनुसार तो आत्म- वेश्याएं रहती थी। सख्याकर नन्दी ने रामावती की हत्या करना भीरता है और कर्तव्य विमुख होना है इस- वेश्याओ का विशद वर्णन किया है।"धोपी के अनुसार लिए हमे इसे नैतिक पतन का द्योतक मानने में लेशमात्र लक्ष्मणसेन की राजधानी विजयपुर मे भी अनेक वेश्याए' भी सन्देह नहीं है।
रहती थी।" क्षेमेद्र ने भी मथुरा और श्रावस्ती की भ्रष्टाचार:
वेश्यामो का उल्लेख किया है। क्षेमेन्द्र के वर्णन से शात भागवत पुराण के अनुसार राजा को अमात्यों और होता है कि धनी व्यक्तियो के इकलौते पुत्र ऐसे नवयुवक चोरों से प्रजा की रक्षा करनी चाहिए। क्षेमेन्द्र के अनु- जिनके पिताओ की मृत्यु हो गई थी, राजाओ के अमात्य सार भी राजा को ऐसे मन्त्रियों को तुरन्न पद से हटा व्यापारियों के पुत्र, वैद्य, कामुक तपस्वी और राजकुमार, देना चाहिए जो रिश्वत लें।" लक्ष्मीधर ने लिखा है कि सगीता विद्वान और शराबी सभी वेश्याओं के पास राजा को मन्त्रियों की गतिविधि की पूरी जानकारी रखनी जाते थे।" ये गणिकाएं अनेक कलाओं में प्रवीण होती चाहिए। कल्हण ने ऐसे अनेक मन्त्रियों के उदाहरण दिए थी।" कुमारपाल ने व्यभिचार, जुए और पशुहिंसा को हैं जिन्होंने अवैध ढंग से अपार-धन सम्पत्ति इकट्ठी कर रोकने के लिए अनेक प्रयत्न किए किंतु वेश्यावृत्ति को ली थी।"धनपाल ने भी दुष्ट अमात्यो का उल्लेख किया समाप्त करने के लिए कोई प्रयत्न नहीं किया। मानसोहै। लक्ष्मीधर ने लिखा है कि राजा को कायस्थों के ल्लास से स्पष्ट है कि राजा लोग जब कवियों और