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________________ पूर्व मध्यकालीन भारत में नैतिक धर्म का पतन [१००० ई० से १२०० ] प्रदीप श्रीवास्तव व्याख्याता : अग्रवाल कालेज, जयपुर सतीत्व को नष्ट किया ।' कथासरित्सागर में राजाओं के सोमेश्वर के "मानसोल्लास" से इस काल के राजाओं नैतिक पतन की अनेक कथाएँ हैं।' हम्मीर महाकाव्य से के जीवन पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। दक्षिण-पश्चिमो- हमे ज्ञात होता है कि चाहमान राजा हरिराय ने अपने भारत के चालुक्य राजा ऐसे प्रासादो में रहते थे जिनमे राज्य की पूरी आय स्त्रियो और नर्तकियो के चक्कर में ऋतुओ के अनुरूप कक्ष थे। वे ऋतुओ के अनुरूप ही खाद्य उड़ा दी थी।" और पेय का सेवन करते थे। उनकी अनेक रानियां होती मद्यपान : थी। वे अपना अधिकतर समय अस्त्र-शस्त्रों की प्रतियो- मानसोल्लास के अनुसार राजा को मद्यपान नही गिताओ, हाथियों के प्रदर्शनों, घोडो के पोलो जैसे एक करना चाहिए किन्तु विवाह के अवसर पर सब लोग खेल, पहलवानों की कुश्तियों, मृगों, बटेरो, मेढ़ो, भैसों मदिरा सेवन करते थे। गोष्ठियों मे राज-परिवार के लोग, कबूतरो के युद्धों को देखने मछली मारने, शिकार करने, गुड, चावल के आटे, अमूरो और नारियल, कटहल और सगीत और कहानी सुनने में बिताते थे। राजसभा में आम के रस से बनी मदिराओं का सेवन करके मनोअनेक प्रदेशों की सुन्दरियां राजा का मनोविनोद करती विनोद करते थे। इन अवसरो पर स्त्रियां भी मदिरापान थी। इसी प्रकार का भोगविलास का जीवन तत्कालीन करती थी।' ग्यारहवी-बारहवी शताब्दी मे पानोत्सवों अन्य राजा विताते थे। उनमें उम कर्तव्य-परायणता का का राजकीय परिवारों में सामान्यतः आयोजन किया पूर्ण अभाव था जिस का उल्लेख कौटिल्य ने अपने अर्थ- जाता था। हेमचन्द्र के अनुसार जब सिद्धराज गर्भ में शास्त्र में किया है कि प्रजा के सुख मे ही राजा का था रानी मयणल्ल देवी को मदिरापान छोड़ना पड़ा सुख है। था।"लक्ष्मीधर" और चंडेम्बर" के अनुसार ब्राह्मणों नैतिकता की दृष्टि से इन राजाओं का जीवन बहुत को गुड़, शहद और चावल से बनी शराब नहीं पीनी गिरा हुआ था। वे बनेक प्रदेश की सुन्दरी स्त्रियों के साथ चाहिए किन्तु क्षत्रिय और वैश्य उत्सवों के अनुसार ऐसा रंग-रलियां करने में अपना अधिकतर समय व्यतीत करते कर सकते हैं। नैषधचरित से हमें ज्ञात होता है कि थे उन्हें प्रजा के सुख की लेशमात्र भी चिंता न थी।' विवाह में व्यवस्था में सम्मिलित होने वाले व्यक्तियों को कुंतल नरेश परमर्दी नंगी स्त्रियों का नृत्य देखकर अपना मदिरा दी जाती थी।" कथा-सरित्सागर से ज्ञात होता मनोविनोद करता था।' बंगाल का राजा लक्ष्मणसेन एक है कि अनेक व्यापारी मदिरापान करते थे। कल्हण के चांडाल स्त्री के साथ सहवास करता था।' वाराणसी के वर्णन से भी इस बात की पुष्टि होती है।" क्षेमेन्द्र ने राजा जयचन्द्र ने एक नागरिक की पत्नी सुहवा का अप- "तक्षक यात्रा" नामक उत्सव का वर्णन किया है जिसमें हरण करके उसे अपनी पटरानी बनाया ।' कल्हण ने भी लोग खूब शराब पीते थे।" बिल्हण से ज्ञात होता कामीर के कई राजाओं के व्यभिचार-पूर्ण जीवन का है कि स्त्रियां भी काम-कीड़ा से पूर्व मद्यपान करती थीं। विशद वर्णन दिया है। कलश और हर्ष अपना पूरा समय कुमार-पाल ने गुजरात में शराब बनाने व पीने पर प्रतिविषयासक्ति में बिताते थे। हर्ष ने अपनी बहनों तक के बन्ध लगाना चाहा था किन्तु वह ऐसा करने में असमर्थ
SR No.538038
Book TitleAnekant 1985 Book 38 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1985
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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