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श्रुत-स्वाध्याय का फल
उष्ट्र देश के धर्मनगर का राजा यम सम्पूर्ण शास्त्रों हो, यम मुनि अपने इस कर्म की निर्जरा के लिए उपाय का जानने वाला बड़ा भारी विद्वान था। उसकी मुख्य पूछ तीर्थक्षेत्रों की वन्दना को अकेले ही निकल पड़े। रानी का नाम धनमती था। उसके दो सन्तान थीं । एक मार्ग में एक यव (जी) के खेत के पास से एक पहब पत्र जिसका नाम गर्दप था, और एक पुत्री जिसका नाम गधे के रथ पर चढा हा जा रहा था । सो वह कभी तो कोणिका था । राजा की और भी बहुत सी रानियां थीं, गधे को यव चगने के लिए उस रथ को खेत मे ले जाता जिनसे पांच सौ पुत्र उत्पन्न हुए थे। राज्य मंत्री का नाम और कभी बाहर ले आता था। यह देख कर यम मुनि ने दीर्घ था।
निम्नलिखित खण्ड श्लोक बना कर पढ़ा;एक बार एक निमित्तज्ञानी ने आकर कहा कि जो "कडलं पणणिक्खेवसि रे गहहा जब पच्छेसि बादि" कोई पुरुष कोणिका को ब्याहेगा वह समूर्ण पृथ्वी का
अर्थात् “रे मूर्ख, तू जवो को खिलाने के लिए गर्दभ स्वामी होगा। तब राजा यम ने इस डर से कि कमा वह को क्यो बार बार निकालता और पठाता है ?" मेरा भी राज्य न छीन ले, कणिका को एक भोहरे (भूमिगह) में छपा दिया। केवल एक दो सेवक इसको खाने-पीने
पश्चात् आगे चलकर दूसरे दिन मार्ग में कुछ बालक आदि की सार संभाल के लिए रख दिए गए, वे ही इस
खेल रहे थे, उनके खेलने की एक काठ की कोणिका किसी विषय को जानते भी थे। उन्हें इस बात की कठिन आज्ञा
गड्ढे में जा पड़ी । बालक उसको ढूढ़ने के लिए इधरथी कि इस विषय को किसी से न कहें।
उधर फिरने लगे। सो उन्हें देखकर यम मुनि ने एक
दूसरा खण्ड श्लोक पढ़ा :एक बार धर्मनगर में पांच सौ यतियों के सब सहित
"अण्णत्व किं पलोवसि तुम्हे एत्यम्मि श्री सुधर्माचार्य का आगमन हुआ । उनकी वन्दना के लिए
णिन्ब ड्डिया छिद्दे अच्छा कोणिया" सम्पूर्ण नगर निवासी बड़े उत्साह के साथ चले जा रहे थे।
बर्थात् "रे मूर्ख बालको, तुम यहां वहां क्यों ढूंढ़ते उन्हें देख कर राजा यम अपनी विद्या के घमण्ड में आकर
फिरते हो, कोणिका बिल में पड़ी है।" मुनियों की निन्दा करने लगा; और शास्त्रार्थ में हरा देने
पश्चात् वहां से चलकर एक दिन उन्होंने एक मेंढक के विचार से उनके पास गया । परन्तु जिस मतलब से वह
को अपने घर से कमल पत्र में छिपते हुए देखा। परन्तु वहां से चला था, उसे भूल गया । वहा पहुंचते-पहुंचते
जिस ओर को वह जा रहा था, उस ओर से एक सांप आ मुनिराज के प्रभाव से उसका घमण्ड जाता रहा, इसलिए
रहा था। तब आपने तीसरा खड श्लोक बनाकर पढ़ा:उसने सुधर्म गुरु को नमस्कार किया और धर्म श्रवण कर
"अम्हादो णत्थि भयं दीहादो भयं दीसते तुम्भ ।" अपने गर्दभ पुत्र को राज्य दे अन्य पांच सौ पुत्री सहित वह मुनि हो गया । कुछ काल में वे सब मुनि (पुत्र) तो अर्थात् "रे मेंढक, तुझे मुझसे भय नहीं करना चाहिये, सम्पूर्ण बागमों के पाठी हो गए, परन्तु यम मुनि को पंच- परन्तु दीहादि अर्थात् सांपादि से तुझे भय की संभावना नमस्कार का उच्चारण मन्त्र भी ठीक से नहीं आया। है।" इस प्रकार तीन खंड श्लोक बनाकर यम मुनि ने यह दशा देख गुरु ने बहुत निन्दा की। तब उससे लज्जित आगे गमन किया । और अन्य कोई पाठादि न माने