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________________ २०१० स्त्री आदि का दर्शन-स्मरण भी छोड़ना होता है क्योकि है। ब्रह्मचर्य के बिना जितने काय-क्लेश किये जाते हैं वे इन सद्भाव में ब्रह्मचर्य की साधना सम्भव नहीं है। सब निष्फल है। अत: आचार्यों के निर्देशानुसार ब्रहमबाचायों ने अलग इन्द्रिय विषय सेवन के त्याग की चर्चा चर्य का पालन करे। विषयों की रुचि छोड स्त्रियों को न कर उन्हें स्पर्शन इन्द्रिय के विषय सेवन त्याग में उसी माता, बहिन, पुत्री के समान माने । क्योकि जैसे कुम्हार प्रकार सम्मिलित कर दिया है जैसे तीर्थकर पार्श्वनाथ ने के चाक का बाधार कीली है, चाक पर रखे हुए मिट्टी के अपने चातुर्माम में (परिग्रह में) ब्रहचर्य को सम्मिलित पिंड से जैसे विविध रूप बनते हैं । इसी प्रकार ससार कर दिया था। रूपी चाक का आधार स्त्री है, जीव उससे सम्बन्धित अनेक अतः केवल मैयन के अभाव को ही ब्रह्मचर्य मानना प्रकार के विकार करके चारो गतियों में भ्रमता है।" या कहना युक्ति सगत नहीं है। आचार्यों को भी ऐसी इसी धर्म की रक्षार्थ केवली जम्मू स्वामी नव-विवाहिता भावना नहीं थी। इस धारणा से तो ऐकोन्द्रय जीवो को पत्नियों को हम दीक्षत हुए थे। भी ब्रह्मचारी मानना पड़ेगा । आचार्यों के कवन मे उक्त इम धर्म के सम्बन्ध में मुख्यतया पुरुष को सकेत कर भावना अन्तनिहित रही ज्ञात होती है कि ब्रह्मवर्य की कहा गया है, परन्तु पुराणो में ऐसे कथानक भी उपलब्ध साधना के लिए सभी इन्द्रिय विषयो का त्याग अपेक्षित हैं जहां नारियों ने पुरुषो को शील से च्युत करने का है। आचार्य उमा स्वामी ब्रह्मवर्य सम्बन्धी अनाचार और प्रयास किया है । सेठ सुदर्णन के ऊपर झूठा आरोप रानी भावनाओं का उत्लेख क्यों करते यदि उनकी या परमाग · ने लगाया ही था, उस माती भी लगवा ६ थी किन्तु सेठ गत अन्य आचार्यों की दृष्टि मे स्पर्शन इन्द्रिय विषय के के ब्रह्मचर्य का महा म्य था कि शूली भी फूत की सेज बन सेवन का त्याग ही ब्रह्मचर्य होता हो । गई थी। इसी प्रकार गीता के लिए अग्नि कुण्ड, नीर हो सारांश यह है कि ब्रा को साधना ज्ञान के बिना गया था। अन. आवश्यक है कि जीवन सफल बनाने के नही । अतः हम रवाध्याय करें। ब्रहमवत्र से ही जीव लिए ब्रहमचर्य व्रत को धारण करें, यही है इस धर्म के ससार से पार होता है। उसके बिना व्रत तर सब असार उपदेश का मार। सन्दर्भ-सूची १. उत्तम क्षमामादंवा वशीचसत्यसयम तपस्त्यागाकिंचन्य जन्मवर्मसु कण्डूति जनयन्ति तथा विधाम् । ब्रहमचर्याणि धर्मः तत्वार्थ सूत्र: अध्याय ६, सूत्र ६। प० बलभद्र जैन, अहिंसाध्वनिः पृ. २३२ टिप्पण-२ २. देशयामि समीचीनं धर्म कर्म निबर्हणम् १०. सोऽस्ति स्वदार सन्तोषी योऽन्यस्त्री प्रकटस्त्रियो संसार दु:खतः सत्वान् यो धरत्युत्तमे सुखे ॥ न गच्छत्हसो भीत्या नान्यर्गमयति विधा। रत्नकरण्ड श्रावकाचारः श्लोक २ पं० आशाधर जी, मागार धर्मामृत; ४/५२ 1. शुक्रवाणी : ई० १९७६, पृष्ठ ८ ११. स्त्रीरागकथाश्रवणतन्मनोहराङ्ग निरीक्षण पूर्व रता. ४. पं० दौलतराम छदढालाः ढाला १ पत्र २ नुस्मरण वृत्येष्ट रसस्वशरीरं सस्कार त्यागा: पंच । तत्वार्थ सूत्रः अध्याय ७, सूत्र; ७; ५. तत्वार्थसूत्र: अध्याय ७, सूत्र १६ १२. परविवाह करणेत्वरिका परिगृहीतापरिग्रहीता गम६. यवेदरागयोगान्मथुनमभिधीयते तदब्रहम नानग क्रीडाकामतीवाभिनिवेशा: । -पुरुषार्थसिन्युपायः श्लोक १०७; वही, अध्याय ७, सूत्र २८और सागारधर्मामृत: ४/५% ७. महकुमचन्द्र भारिल्ल, धर्म के दश लक्षण : उत्तम ब्रहमचर्य टिप्पण-१-२ १३. बलवानिन्द्रियग्रामो विद्वांसमयकर्षति उपदेश दृष्टान्त मालिका : भाग २' पृ०६० ८. हिंस्यन्ते तिलनाल्यो तप्तायसि विनिहते तिलायत १४. दिता तपति तिग्नांशूर्मदनस्तु दिवानिशम् बहवो जीवा योनी हिंस्यन्ते मैथुने तद्वत् ।। समस्ति वारणं भानोर्मदनस्य न विद्यते। पुरुषार्थ सिद्धयुपाय: श्लोक १०८ पपपुराण : पर्व १०६, फ्लोक ५०१ ९. रक्तजाः कमयः सूक्ष्मा: मृदु मध्यादि शक्तयः (शेष पृ०२२ पर)
SR No.538038
Book TitleAnekant 1985 Book 38 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1985
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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