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________________ उत्तम ब्रह्मचर्य : एक अनुशीलन • चर्य है । जो नारी के मर जाने से ब्रह्मचारी बन जाते हैं वेश्याओं से सम्बन्ध रखते । काम सेवन के लिए निश्चित तथा ब्रह्मचारी बन जाने पर भी जिनकी नारियों के प्रति अंगों को छोड़कर अन्य अंगों से काम-सेवन करते हैं और आसक्ति नही घट पाती वे ब्रह्मचर्य को दूषित करने काम-सेवन की तीव्र अभिलाषा रखते हैं ।" ऐसे लोग वाले दोषों से नहीं बच पाते । वे तो "मारि मुयी हुए ब्रह्मचर्य की साधना नहीं कर पाते । अतः इन्हें ब्रह्मचर्य सन्यासी" कहावत को चरितार्थ करते है। का घातक जान परित्याग करें। इनके रहते संते इस व्रत सांसारिक उत्तरदायित्व का निर्वाह करने या वंश की साधना सम्भव नही है। परम्परा चलाने हेतु जो लोग उत्सुक है, ऐसे लोगो के सम्प्रति कुसंगति भी एक प्रधान बाधा है। जो इस लिए आचार्यों ने स्वदार-सन्तोष वन धारण करने के लिए कुचक्र में पड़ जाते हैं : वे बुरी आदतों से अपने को बचा कहा है। ऐसा मानव पाप के डर मे मन, वचन, काय से नही पाते । क्योकि कहा भी है कि "काजल की कोठरी में पर स्त्री का सेवन नही करता तथा दूसरो को भी मन, कसो ह सयानो जाय, एक दाग काजर की लागि है 4 वचन, काय से सेवन नही कराता । वेश्याओ को भी नही लागि है।" अतः आवश्यक है कि सगति की जावे अवश्य सेवता, न सेवन हेतु दूसरो को कहता है। किन्तु सुसमति ही जो कि व्रत साधना में सहायक सिख प्रश्न होता है कि ऐसा क्यों कहा गया ? क्या इसमे हो। बाधक नही। हिंसा नही होती ? हिंसा तो अवश्य होती है, परन्तु गृहस्थ काम की प्रबलता-पचेन्द्रिय विषयों मे स्पर्श जनित की मर्यादा बनी रहे, मा नाजिक नैतिकता और व्यवस्था काम वेदना के आगे ज्ञानियो का ज्ञान भी बेकार हो जाता भंग न हो इस दृष्टि मे ऐसा करना न्यायोचित प्रतीत है। इस तथ्य मे एक साधु सहमत न था। लेखक ने होता है । इस व्रत के कथन मे आचार्यों की दूरदर्शिता ही परीक्षार्थ एक युवती के रूप में उसके निकट जाकर परीक्षा परिलक्षित होती है। ऐसा व्रती स्वदार सेवक तो अवश्य चाही। सूर्यास्त हो रहा था युवती के रूप मे उमने साधु है, किन्तु अनासक्ति पूर्वक । से कहा कि मुझे एक रात कुटिया में रहने दीजिए, किन्तु इस उल्लेख का तात्पर्य यह नही है कि स्वदार सतोष साधु ने स्वीकृति न दी। रात में मनोहर गीत गाये । गीत व्रत को केवल पुरुष ही माने । स्त्रियो का भी कर्तव्य है सुन साधु से रहा न गया, वे अपने आप को भूल गए । कि वे स्व-पुरुष में हो सन्तुष्ट रहें । परपुरुष का मन में काम वेदना से पीड़ित हो उन्होने कपाट खोलने चाहे किंतु भी चिन्तवन न कर अपने आभूषण शील की रक्षा करें। युवती ने बाहर की साकल दन्द कर दी थी। माधु ने ब्रह्मचर्य पालन में सहायकअग ब्रह्मचर्य पालन हेतु एक सांकल बन्द करने का कारण पूछा-तो युवती ने कहाओर जहा बाह्य परिस्थितियो का आचार्यों ने उल्लेख आप ही अपने मन से पूछिए कि मेरे ऐसा विकल्प क्यो किया है । दूसरी ओर आन्तरिक परिस्थितियों को भी हो रहा है ? आपके हृदय मे कल कमय भाव उत्पन्न हुए दर्शाया है । बाह्य कारणो को उन्होंने अतिचार और अन्तर बिना मेरे ऐसे भाब नही हो सकते । आप पुरुष हैं किन्तु से सम्बन्धित कारणो को भावना नाम से सम्बोधित किया विकृत हो जाएं तों इस निजन वन मे मेरी कौन रक्षा है। स्त्रिगे म राग-1ईक कथाओ का श्रवण, उनके मनो- करेगा। साधु ने बार बार आग्रह किया किन्तु जब युवती हर अङ्गो का दर्शन, भोगे हुए विषयों का स्मरण, काम- ने कपाट नहीं खोले तब साधु कुटी का छप्पर काट कर वर्द्धक गरिष्ठ भोजन और शारीरिक मस्कार ये पाच काम-वेदना शान्त करने के लिए बाहर आए और उन्होंने भावनाएं है।" जिनका चित पर प्रभाव पड़े बिना नहीं देखा कि वह युबती वहा पर नहीं है, युवती के स्थान पर रहना, ब्रह्मचर्य की भाधना । इनस बाधा उत्पन्न होती है। वही पुरुष है जिमने कहा था कि काम-वेदना के आगे इसी प्रकार जो दूसरो के पुत्र-पुत्रियो का विवाह करते ज्ञानियों का ज्ञान बेकार हो जाता है । साधु लज्जित हुआ कराते हैं, पति सहित या रहित स्त्रियो के पास आते- और उसने इस कथन को स्वर्णाक्षरों मे लिखने हैं लेन-देन रखते हैं, राग-भाव पूर्वक बातचीत करते हैं। को कहा।
SR No.538038
Book TitleAnekant 1985 Book 38 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1985
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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