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________________ तेईसवें तीर्थकर की पावनायकी प्रतिमाएं (ख) कायोत्सर्ग-कायोत्सर्ग मुदा में निर्मित अहमद- में निर्मित तीर्थकर पार्श्वनाथ के मुख, हाथ व पैर खण्डित पुर (जिला विदिशा) से प्राप्त (सं० ऋ० ११९) तेईसवें है। सिर पर सप्तफण नागमौलि, वक्ष पर श्री वृक्ष अंकित तीर्थकर पार्श्वनाथ के सिर पर कुन्तलित केश ऊपर पांच है। सिर के ऊपर त्रिछत्र दोनों ओर विद्याधर पुष्पहार फणों का छत्र शैय्या बनी हुई है । वक्ष पर श्रीवत्स अंकित लिये प्रदर्शित है । परिकर एवं वितान में पांच पदमासन है । तीर्थकर के दायें सौधर्मेन्द्र और बाएं ओर ईशानेन्द्र में एवं छ: कायोत्सर्ग में जिन प्रदर्शित है। परिकर एवं चंवरी लिए खडे हैं। परिकर में दो कायोत्सर्ग में जिन वितान में पांच पद्मासन मे एवं छ: कार्योत्सर्ग में जिन प्रतिमाएं एव दो पद्मासन मे पार्श्वनाथ की नागफण मौलि प्रतिमाओं का अंकन हैं। तीर्थकर के दायें सौधर्मेन्द्र और युक्त लघु प्रतिमा अकित है। पादपीठ पर दो सिंहों के बायें ईशानेन्द्र चवरी लिये खड़े है। पादपीठ के नीचे दोनों बीच धर्मचक्र स्थित है। सिंहों के पास क्रमश: यक्ष घर- सिह आकृतियां एवं सिंहों के पार्श्व में यक्ष धरणेन्द्र और णेन्द्र और बाएँ यक्षी पद्मावती का आलेखन है। एस० बाय यक्षी पद्मावती का अंकन है। निकट ही दो भक्तों आर० ठाकुर ने इस प्रतिमा को जैन तीर्थकर लिखा है।' का आलेखन है।' १४वीं शती ईस्वी की यह प्रतिमा तोमर ११ वी शती ई० को यह प्रतिमा कलात्म अभिव्यक्ति को कालीन कला की उत्कृष्ट कृति है। दृष्टि से परमार कालीन शिल्पकला के अनुरूप है। इमों काल खण्ड की (सं० ऋ० ४७५) प्रतिमा भी (ब) पद्मासन--पद्मासन में निर्मित तेईसवें तीर्थकर ग्वालियर से ही प्राप्त है । पद्मासन की ध्यानस्थ मुद्रा में पार्श्वनाथ की पांच प्रतिमायें संग्रहालय में संरक्षित है। तीर्थकर पार्श्वनाथ का अकन है। तीर्थकर के दायें पढावनी (जिला मरैना) से प्राप्त मति में (सं०० १२४) सौधर्मेन्द्र और बायें ईसानेन्द्र चवरी लिए बड़े हैं पादपीठ पद्मासन मे बैठे हुए तीर्थंकर पार्श्वनाथ के दोनों पैर भग्न पर मध्य में चक्र दोनो पार्श्व मे विपरीत दिशा में मुख हैं । ऊपर सप्त फण नागमौलि का अङ्कन है । प्रभावली, किये सिंह आकृतियो का आलेख है । परिकर में दोनों और सिर पर कुन्तलित केशराशि बक्ष पर श्री वत्स का प्रतीक सिंह व्यालो का शिल्पांकन है। है। सप्तफण के छत्र के ऊपर दुन्दभिक है। दोनों ओर ग्वालियर दुर्ग से प्राप्त (सं० ऋ० १२०) तीर्थकर एक एक हायी अभिषेक करते हुए प्रदर्शित हैं। तीर्थकर पार्श्वनाथ की प्रतिमा का केवल पादपीठ ही प्राप्त हुआ है। के दाएं ओर सौधर्मेद्र और बाएं ओर ईसानेन्द्र चवरी जिस पर दोनो ओर सामने मुख किये सिंह बैठे हैं, जिनके लिए हाथियों पर खडे है। परिकर मे दोनो ओर दो-दो मध्य में धर्मचक्र और दोनों ओर भक्तगण अंजली हस्त जिन प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़ी है। प्रतिमा की मुद्रा में बैठे हुए हैं। दोनों पार्श्व यक्ष धरणेन्द्र एवं यक्षी चौकी पर दो सिंहो के बीच धर्मचक्र स्थित है। सिंह के पद्मावती का अंकन हैं । पादपीठ पर विक्रम संवत १४९६ बायी ओर यक्षी पद्मावती बैठी है । बाएं ओर स्थित यक्ष (ईस्वी सन् १५३९) का स्थापना लेख उत्कीर्ण है। घरणेन्द्र की प्रतिमा टूट चुकी है। बाहरी अलकरण मे ग्वालियर दुर्ग से ही प्राप्त (सं० ० ३०६) तीर्थकर मकर आदि व्याल आकृतियो का आलेखन है। एस. पार्श्वनाथ का केवल सिर ही प्राप्त है। जिस पर सप्तफणों आर० ठाकुर ने इन प्रतिमाओं को भी जैन तीर्थपुर लिखा मे युक्त आकर्षक नागमौलि का अच्छादन है। सिर पर है। ग्यारहवीं शती ईस्वी की यह प्रथम प्रतिमा शारी- कुन्तलित केश सज्जा का अंकन है। चेहरा अण्डाकार, र कि अवयवों को देखते हुए छपघात का प्रभाव दृष्टि- आंखें आधी बन्द है । हालाकि नाकथोड़ी ठूटी हुई है। गोचर होता है। परन्तु चेहरो की भाव दृष्टि से प्रतिमा १०वी शती ईस्वी ग्वालियर दुर्ग से प्राप्त (२०१०१३०) पद्मासन की है। सन्दर्भ सूची १. महापुराण (पुष्पदंत कृत) सं० पी० एल० वैद्य मानिक पापर्व के माता-पिता का नाम ब्राही और विश्वसेन चन्द्र दिगम्बर जीपाला पर बम्बई १९४१ में बताया गया है। (शेष पृ० १६ पर)
SR No.538038
Book TitleAnekant 1985 Book 38 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1985
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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