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मेषतौर पाश्र्वान्युबचानकों का तुलनात्मक अध्ययन
रचा गया है इससे इसे सन्देश काव्यों की श्रेणी में रख है। अलका में पूर्व जन्म की पत्नी वसुन्धरा से मिलन का सकते हैं पर इसमें दूत या सन्देश शैली के कोई लक्षण वर्णन किया है। इस प्रकार कुल मिलाकर जिनसेन ने नहीं है । इसे हम एक अच्छा पादपूर्ति काव्य कह सकते मेघदूत के कथानक को ही पल्लवित किया है। किन्तु
अपनी प्रतिभा से उसमें विलक्षणता ला दी है, किसी पलोक मेघदूत की तरह पाश्र्वाभ्युदय मे रामगिरि से अलका के चरण को लेकर पूरे श्लोक और कथानक मे सयोजन तक के मार्ग का वर्णन किया गया है। रामगिरि मे करना कितना दुष्कर कार्य है। यह पाठकों से छिग नहीं आम्रकूट पर्वत, नर्मदा नदी, विन्ध्यवन, दर्शार्ण देश और है। पाश्र्वाभ्युदय में कमठ यक्ष के रूप में उसकी प्रेयसी उसकी राजधानी विदिशा, वेतवती नदी उसके पश्चात प्रातृपली वसुन्धरा यक्षपत्नी रूप मे अरविन्द कुबेर रूप में नीचः पर्वत, निविन्ध्या नदी तथा सिन्धु नदी का उल्लेख तथा पाश्र्वनाथ मेघराजरूप में कलित है। वसुन्धरा की है। तदनन्तर उज्जयिनी में जिनेन्द्र के मन्दिर में जिन विरहावस्था का वर्णन मेघदूत की यक्षप्रेयसी की विरहावस्था स्तुति करने तथा महाकाल नामक वन में जिनालयों के के समान सरस तथा भावुकतापूर्ण है। पर सन्देश मेघदूत दर्शन करने की सलाह पाश्र्वानाथ (मेघ) को शम्बर ने से भिन्न है। शम्बर पावनाय के धैर्य, सौजन्य सहिष्णुता दी है । मेघदूत की तरह ही उज्जयिनी का वर्णन है। और अपारशक्ति से प्रभावित होकर स्वयं वैर भाव का आगे गम्भीरा नदी, देव गिरि पर्वत, चर्मण्यवती नदी, त्याग कर उनकी शरण मे पहुचता है और पश्चाताप दशपुर नगर, ब्रह्मावर्त देश, कुरुक्षेत्र, कनखल, हिमालय, करता हुआ अपने अपराध की क्षमा याचना करता है। क्रौंचरन्ध्र का वर्णन किया है। ये सभी स्थान मेघदूत में इस प्रकार काव्य की समाप्ति शृगार में न होकर शान्त आये हैं इस दृष्टि से इसे परापरमगत वर्णन कहा जा रस मे होती है। सकता है । अलकापुरी का भव्यचित्र जिनसेन ने खीचा कुन्द कुन्द जैन डिग्री कालेज, खतौली (उ.प्र.)
सन्दर्भ १. डा० नेमिचन्द्र शास्त्री : आदि पुराण में प्रतिपादित २।२१ से ३६, ४७, ५०, ५३, ५६, ५६, ६२, ६३,
भारत, गणेश प्रसाद वर्णी प्रथमाला वाराणसी, पृष्ठ ६४, ६८,७४,७६, ७७ । ३१ ।
१०. वही ४१६५ से ७१।। २. पार्वाभ्युदय : सम्पा० मो० गौ० कोठारी, प्रकाशक
११. डा० नेमिचन्द्र शास्त्री : संस्कृत काव्य के विकास में गुलाब चन्द्र हीराचन्द बम्बई, ४१३६ तथा ३६ ।
जैन कवियों का योगदान, भारतीय ज्ञानपीठ काशी ३. वही ४१३७ तथा ४०। ४. वही सर्ग प्रथम १ से १००।
१२. 'सीता प्रति रामम्य हनुमत्सग्देशं मनसि निधाय मेघसर्ग द्वितीय-१ से २०, ३७ से ४६, ४८, ४६, ५१,
सन्देशं कवि कृतवानित्याह:-मेघदूत के प्रथम ५२, ५४, ५५, ५५, ५८, ६० ६१, ८१ से ११८ । श्लोक पर मल्लिनाथ कृत टीका। " सर्ग तृतीय-१८ से १५। ।
१३. डा. भीखन लाल आत्रेय, (योगवाशिष्ठ में मेषदूत सर्ग चतुर्थ-१ से २४, ३० से ३५, ४६, ४७, ५१, शीर्षक लेख) कालिदास ग्रन्थावली, अलीगढ़। ५२, ५४ से ६५।
१४. आचार्य शेषराज शर्मा कृत मेघदूत की व्याख्या, चौ० ५. वही २२६५, ६६, ७३, ७५। ३।३८, ४०, ४८,
विद्या भवन वाराणसी देखें। ५०,५२।
१५. डा० नेमिचन्द्र शास्त्री, संस्कृत गीतिकाव्यानुचिन्तनम ६. वही २०६६, २३६ तथा ३८ ।
__सुशीला प्रकाशन धौलपुर १९७०, पृष्ठ ६६ । ७. वही २।११३।
१६. डा. गुलाब चन्द्र चौधरी : जैन साहित्य का वहन १. वही २०६७, ७०,७१, ७२२३८, ४१ से ४६, १४।।
इतिहास भाग ६, पाठ विद्याश्रम शोध संस्थान १. १११०१ से ११२, ११४, ११५ से ११०।
वाराणसी पृष्ठ ५४७।