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१२, वर्ष ३८, कि..
अनेका पाश्र्वाभ्युदय मेघदुत पर समस्या पूर्ति के रूप में गिरा देता है, जिससे मरुभूति मर जाता है । अनन्तरं लिखा गया है । अतः मेघदूत के पाठ निर्धारण में महत्त्व- दोनों अनेक जन्मों में एक दूसरे को कष्ट देते रहते हैं। पूर्ण आधार का काम करता है। जिनसेन मेघदूत के कुल मरुभूति का जीव वाराणसी में पार्श्वनाथ होता है । दीक्षा १२० श्लोकों से परिचित थे यह उक्त बिवरणी में स्पष्ट धारण के पश्चात तपश्चरण करते समय कमठ का जीव, कर दिया गया है । मेघदूत के समान ही इस काव्य में जो इस जन्म मे शम्बर नाम का देव है, उसे देखता है मन्दाक्रान्ता छन्द व्यवहृत हुआ है । छः श्लोकों में छन्द और उसका पूर्वकालीन बैर जाग्रत हो जाता है वह सिंह परिवर्तित है।
के समान गर्जना करता है और युद्ध के लिए ललकारता मेघदत के उपजीव्य के सन्दर्भ में विद्वान् एक मत
है। युद्ध में मृत्यु पाने के बाद स्वर्गस्थित अलकापूरी जाने नही हैं । कुछ विद्वानों ने ऋग्वेद मे आये सरमापणि सवाद
का परामर्श देता है, जहा शम्बर की प्रेयसी को मेघदूत के रूप मे स्वीकार किया है।"मेघदूत के
वसुन्धरा विद्यमान है। पार्श्वनाथ के मौन रहने पर शम्बर प्रसिद्ध टीकाकार मल्लिनाथ का कथन है कि भगवान
उसे पूर्व भवों की याद दिलाता है और युद्ध मे पार्श्वनाथ राम ने सीता के लिए हनुमान के द्वारा जो सन्देश भेजा
के मारे जाने की सम्भावना को लेकर स्वयं मेष रूप उसी को ध्यान में रख कर कालिदास ने मेघदूत को रचना
धारण करने के कारण पार्श्वनाथ को भी मेघ का रूप की है।" डा० भीखनलाल पात्रेय प्रभृति विद्वानो की
देकर उत्तर दिशा में स्थित अलकापुरी आने का परामर्श दृष्टि मे योगवाशिष्ठ रामायण मे मेघदूत का मूल है किंतु
देता है। रामायण के उक्त अश में प्रक्षिप्तता तथा योगवाशिष्ठ
इतने पर भी पार्श्वनाथ शान्त रहते हैं। शम्बर पुन: का काल निश्चित न होने के कारण स्वय डा. आत्रेय
युद्ध के लिए प्रेरित करता है तथा माया शक्ति से स्त्रियो दोनों के पूर्वापर का निर्धारण नहीं कर सके है । "कुछ
का गाना प्रारम्भ करा देता है जब पार्श्वनाथ विचलित विवेचकों की दृष्टि में कुवेर ने यक्ष को जो शाप दिया
नही होते तो वह पाषाण की वर्षा प्रारम्भ करता है तभी उसका आधार ब्रह्मवैवर्तपुराण में योगिनी नामा आषाढ़
धरणेन्द्र और पद्मावती नागदेव वहां आते हैं । और कृष्ण पक्ष एकादशी के महात्म्य में एक कथा आती है।
उपसर्ग दूर करते हैं। पार्श्वनाथ को केवलज्ञान हो जाता और कुछ विद्वानों की दृष्टि में स्वयं महाकवि कालिदास
है तथा शम्बर क्षमा याचना करता हुआ धर्म ग्रहण करता के जीवन में कोई ऐसी घटना घटी जिसे उन्हें अपनी परम आकाश से फलो की वर्षा होती है। प्रिया का वियोग सहन करना पड़ा, तभी उनकी हृदयतंत्री
मेघदूत का कथानक जहा एकदम स्पष्ट है और संदेश से अचानक मेघदत फूट पड़ा । इसके विपरीत पाश्वर्वाभ्यु- तथा संदेश के वचन भी एकदम स्पष्ट है वहां पाश्र्वाभ्युदय दय का कथानक पुराण प्रसिद्ध है। जैन पुराणों में २३वें
का कथानक कुछ उलझा हुआ है। डा० नेमिचन्द शास्त्री तीर्थकर पाश्वनाथ का चरित्र विशदता से वर्णित है और
का यह कथन कि--"काव्य शैली की जटिलता के कारण कमठ द्वारा उपसर्ग की घटना और भी विशिष्टता से
पाम्युिदय की कथावस्तु सहसा पाठक के समझ नहीं वणित है। जिनसेन ने इसी घटना से अपना ग्रन्थ प्रारम्भ आ पाती।" ठीक ही है।" कवि ने मेघदूत के ही कथानक किया है। पुराण की कथा को काव्योचित रीति से परि- को पल्लवित करने का सफल प्रयास किया है। किन्तु मेघ. वर्तित परिवषित किया गया है। स्वय जिनसेन कथा गुणभद्र दत की ही तरह वर्णनों के लोभ के कारण जिनसेन काव्य रचित आदि पुराण को पाश्र्वाभ्युदय का मूल कहा जा में उतना चमत्कार नही ला सके हैं। यदि किसी दूसरे सकता है। पाश्र्वाभ्युदय की कथा संक्षेप मे इस प्रकार है- कथानक को जिनसेन उठाते तो निश्चय ही वह इस
पोदनपुर नरेश अरविन्द के द्वारा बहिष्कृत किया कथानक से अधिक हृदयावर्धक होता। हुआ कमठ सिंधु नदी के तट पर तपस्या करता है । मरु- इसी प्रकार पाश्वयुदय के संदेश-वचन भी स्पष्ट भूति कमठ के समीप आता है, जिसे देखकर कमठ की नहीं है । डा. गुलाब चन्द्र चौधरी का यह कहना ठीक ही क्रोधाग्नि भड़क उठती है और वह ऊपर पाषाणशिला है कि-"वैसे पाश्र्वाभ्युदय, मेघदूत की समस्यापूर्ति में