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________________ घमण संस्कृति एवं उसकी प्रमुख विशेषताएं ४१ वाली जैन तीर्थंकर ऋषभदेव की कथा जैन धर्म की की पूजा करते थे। इसमें कोई संदेह नहीं है कि वर्षमान प्राचीनता को व्यक्त करती है।" पद्मभूषण स्वर्गीय राम- अथवा पाश्र्वनाथ तथा अरिष्टनेमि इन तीन तीर्थंकरों का धारी सिंह दिनकर ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ 'संस्कृति के चार उल्लेख पाया जाता है। भागवत पुराण से ऋषभदेव जैनअध्याय' में इस प्रकार लिखा है "बौद्ध धर्म की अपेक्षा धर्म के संस्थापक थे, इस विचार का समर्थन होता है।" जैन धर्म अधिक बहुत प्राचीन है, बल्कि वह उतना ही श्रमण संस्कृति की प्राचीनता इस बात से भी सिद्ध प्राचीन है जितना वैदिक धर्म। जैन अनुश्रुति के अनुसार होती है कि यजुर्वेदू", अथर्ववेद", गोपथ ब्राह्मण" तथा मन चौदह हुए हैं। अन्तिम मनु नाभिराय थे। उन्हीं के भागवत", आदि वैदिक साहित्यिक ग्रन्थों में भी श्रमण पुत्र ऋषभदेव हुए जिन्होंने अहिंसा और अनेकान्तवाद सस्कृति के आदि प्रवर्तक भगवान ऋषभदेव का उल्लेख आदि का प्रवर्तन किया । जैन पंडितों का विश्वास है कि मिलता है। इन सब कारणों से यह बात पूर्ण रूप से स्पष्ट ऋषभदेव ने ही लिपि का आविष्कार किया तथा क्षत्रिय, हो जाती है कि श्रमण संस्कृति विश्व की समस्त संस्कृतियों वैश्य और शूद्र इन तीन जातियों को रचना की भरत से प्राचीन है और यह प्रागैतिहासिक कही जा सकती है। ऋषभदेव के पुत्र थे, जिनके नाम पर हमारे देश का नाम इस प्रकार श्रमण सस्कृति ने भारत की सांस्कृतिक भारत पड़ा।" एकता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया और विश्वविख्यात दार्शनिक एव महानतम् विद्वान् डॉ. इस देश के निवासियो को उच्च आदर्शों का पाठ पढ़ाया। सर्वपल्ली राधाकृष्णन् भी जैन धर्म की प्राचीनता को स्वी- इस संस्कृति ने विश्व को सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य कार करते हैं । वे लिखते है कि "जैन परम्परा ऋषभदेव तथा अपरिग्रह के महाव्रतों को शिक्षा दी और विश्व शान्ति को जैन धर्म का संस्थापक बताती है जो अनेकों सदी पूर्व की स्थापना में अनुपम योग दिया। इसी कारण विश्व की हो चुके हैं। इस विषय के प्रमाण विद्यमान हैं कि ईसवी प्राचीनतम सस्कृतियों में घमण संस्कृति का महत्वपूर्ण स्थान सन् से एक शताब्दी पूर्व व्यक्ति प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव माना जाता है। -के.डी. कालेज, मवाना (मेरठ) सन्दर्भ-सूची १. श्राम्यन्तीति श्रमणाः तपस्यन्त इत्यर्थः । ११. श्री वाचस्पति गैरोला-भारतीय दर्शन, पृष्ठ ८६ -हरिभद्र सूरि, दशवकालिक सूत्र, १७३ १२. डा. वासुदेव शरण अग्रवाल-प्राक्कथन जैन २. नात्थि य सि कोइ वेसो पिओ व सव्वेमु चेव जीवेसु । साहित्य का इतिहास पृष्ठ १३ एएण होइ समणो ऐसो अन्नो वि पज्जाओ॥ १३. डा० गुनाबराय-'भारतीय संस्कृति', पृष्ठ ७५ -दशवैकालिक नियुक्ति गा., १५५ १४. वही, पृष्ठ ७६ ३. वही, १५६ १५. नवाभवन् महाभागां मुनयो हय्यशसिना । ४. उत्तराध्ययन, २५/२६-३० श्रमणवातरशना आत्मविना विशारदाः ॥ ५. नग्नत्व सहजे लोके विकारो वस्त्र वेष्टनम् । -भागवत ११/२/२० -यशस्तिलक चम्पू, पृष्ठ ५ १६. डा. विशुद्धानन्द पाठक एवं डा० जयशंकर मिश्र६ एकाकी निस्पृह शान्तः पाणिपात्रो दिगम्बरः। पु. भारतीय इतिहास और संस्कृति, पृष्ठ १९६.२०० कदा शम्भो भविष्याणि कर्म निर्मलन क्षमः ।। -वैराग्य शतक, भर्तृहरि, ८६ १७. पदमभूषण श्री रामधारी सिंह दिनकर-'संस्कृति के चार अध्याय', पृष्ठ, १२६. . ७. तैत्तिरीय आरण्यक, २७१, पृष्ठ १३६ १८. डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन्-इंडियन फिलोसोफी ८. भागवत पुराण, २०२० वोल्यूम ॥ पृष्ठ,२८७. १. तापसा मुंजते चा पि धमणारचंव मुंजते । ११. ऋग्वेद-१०.१६/2 "-बाल्मीकी रामायण १४,१-३ २०. अथर्ववेद-११/५/२४.२क १०. श्रमणावातरशना यात्म विद्या विशारदाः । २१. गोपथब्राह्मण, पूर्ण-२/८ -श्रीमद्भागवत, ११-२ २२. भागवत-५/२८
SR No.538038
Book TitleAnekant 1985 Book 38 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1985
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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