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________________ गायकुमारचरित की सूक्तियां और उनका अध्ययन ५ १२ सोहह कइयण कहए सुबदए । ८३,२ ७. मोहें गाणु हंतु किम्जह । कवि जन सुविरचित कथा से शोभते हैं। होते हुए भी शान मोह से ढक जाता है। ६. सोहह मुणिवरिदु मण सुद्धिए । ६, ३, ३ ७१ मोहें पसरइ मिच्छादसणु । मुनिवर मन की शुद्धि से शोभते हैं। मोह से मिथ्यादर्शन का प्रसार होता है। . ६४ सोहह विढउ सपरियण रिदिए। ७२ जिम्मलु कि परवहरे डिय। ..५ वैभव परिजनों की ऋद्धि से शोभता है। जो निर्मल स्वभावी है वे दूसरों के प्रति बैरभाव के ६५ सोहइ माणुसु गुण संपत्तिए । वशीभूत कैसे हो सकते हैं ? मनुष्य गुण रूपी संपत्ति से शोभता है। ६६ सोहा कज्जारंभ समत्तिए। ६,३,६ ७२ मयण अणाइ अणंतु अमाणु वि। १,११, कार्यारम्भ कार्य की समाप्ति से शोभता है। आकाश अनादि अनन्त और असीम है ? ६७ सोहह सहदु सुपोरिस राहए । ६,३,७ ७४ धम्मु अहिमा परम जए। ६,१३ पत्ता सुभट पौरुष के तेज से शोभता है। अहिंसा धर्म ही श्रेष्ठ है। 1. सोहा वह बहुयए धवलच्छिए। ६.८ ७५ तित्थई रिसि ठाणाई हवित्तह। , १३ पत्ता पर की शोभा उसकी धवलाक्षी वधू से है। तीर्थ वे हैं जहाँ मुनीन्द्र का वास रहा है। . १. लोहा महिरुह कुसुमिय साहए। ६.३,७ वृक्ष फूली हुई शाखाओं से शोमता है। -जनविद्या संस्थान, श्रीमहावीरजी (राज.) । हा (पृ. २४ का शेषांश) तिलक आदि लगाय के, बहत परिगह भेद ! सम्मेद शिखर महात्म्य लिखा। सम्मेद शिखर के विभिन्न सो कबहूं राखे नहीं, तीन काल निखेद ! कुटों-अविचल, प्रभास, निर्जरा आदि का वर्णन २१ सौ अब इस दूखम काल में, सां गुरु दीसे नाहिं ! में है। इसकी भाषा साधारण बज हैतिन बिन और गुरु नहीं, नमैं सु सम्यक्नाह ! सज ऐरावत इन्द्र बाइयो ले सुमेर प्रमुक पापियो सर्व सुखराय:-बनारसी दास के पुत्र सर्व सुख एक हजार वसुकलस इलाय राय जहानाबाद से शकूराबाद में आ बसे थे! यहा इन्होने जिनवर को अभिषेक कराये ॥६॥ पदमावती पुरवाल गोत्रीय जैन 'लाल जी' के निवेदन पर शान्तिनाथ अभिधान कराय समवसरण पूजा की रचना की! ग्रन्थ रचना काल माघ मात पिताकु सोप्यो बाय । ८ संवत १८३४ है। भासा सरल व बोधगम्य है। ताडव करि स्वर्ग कुगये जय पन्ध कुटी सोमै सुतीन जय वापर कमल रची इन्द्रादिक मन हर्षित भये ॥१०॥ नवीन जय तापर प्रतिमा एक जानि, श्री सिद्ध रुपतनी उक्त कवियो की विविध रचनाए मध्यकालीन हिन्दी बखानि जय तीने छ। सोम महान जय चमर मिले आनन्द कान्य की नई दिशा का स्पष्ट संकेत है जिसको महत्व खान: ४८ मिलना मब अनिवार्य हो रहा है। १. लाल बन्द :-यह लोहाचार्य मट्टरक जगत्कीति केबिष्य थे। इन्होने बार्या चौपाई दोहा आदि छंदों में ११० ए, रन्जीत नगर भरतपुर ३२१००२
SR No.538038
Book TitleAnekant 1985 Book 38 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1985
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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