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________________ २२ वर्ष अनेकान्त क्रुसेड छड़े जाते है और गहित नरसंहार होते रहे है । यह उस का दुरूपयोग जरूर करती है। इतिहास में ऐसा होता सब धर्म-भावना के ही विरूद्ध है और उसी धर्म की जड़ भी रहा है। भीड़वादी उन्माद में पड़ कर कोई धर्म परम खोदते हैं जिसकी ये जय बोलते हैं। मैं यह नहीं कहता मागल्य का वाहन नहीं करता। भीड़ सदैव ही अध कि पूजा, पर्चा, नमाज, रोजे, अथपारायण, र्कीतन आदि विश्वासों की वाहिका होती है। बुरी बातें हैं, किन्तु ये अच्छी और उपादेय तभी हैं जब यह नही, कि अंधविश्वास और मदांधता केवल धर्म इन के पीछे वास्तविक धर्म-अनुभूति छिपी हो, सही रूप के ही क्षेत्र में होती हो, वह धर्म के अतिरिक्त क्षेत्रों मे में ईश्वर या अल्लाह से जुड़ी आस्था बैठी हो और उसी भी समान रूप से दग्गोचर होती है । मदांधता अपने लिए से सहजत. फटी हो । बिना आस्था और अनूभूति के ये अच्छे अच्छे नारों का बहाना बढती रही है, जब जो मिल सब बुरी तो नहीं, लेकिन निरर्थक जरूर है । आस्था अधी जाए । गजनी के महमुद को अपनी मदाधताजन्य लूटमार नहीं होती। उस मे ईश्वरीय प्रकाश उद्दीप्त होता है। और हिंसा के लिए इस्लाम का बहाना मिल गया, किन्तु इसलिए आस्थाजनित पूजा अर्चा अधी नही होती और वह उस के पूर्व हूणों शकों को ऐसा कोई धार्मिक बहाना नहीं व्यक्ति और समूह के लिए हितकर होती है। किन्तु विशेष मिला तो भी वे वैसे ही क्रूर रहे। ईरान के अयातुल्लाह बात यह है कि आस्था व्यक्तिगत स्तर पर ही हुआ करती खोमैनी को अपनी क्रूरता और हिंसा के लिए इस्लाम ने है, सम हस्तर पर नहीं । समूह मे आस्थाभास होता है। मुखोटा दिया तो उसी देश के शाह को आधुनिक पूजीवाद इसलिए समूह के कधों पर चलने वाला धर्म अधा ही होता से वैसी ही प्रेरणा मिली। यहाँ तक कि बौद्ध धर्म का है। सच्चा धर्म व्यक्ति ही पालता है, वह भी समूह या अनुयायी चगेज खां और हलाक अहिंसा धर्म की जय भीड़-भावना से अलग हो कर । हाँ, अधिक से अधिक यह बोलता हुआ इतिहास के क्रुरतम विजेताओ में गिना गया। हो सकता है कि समूह स्तर पर पाली गई धार्मिक क्रिया ईसा प्रेम और करूणा की मूर्ति हुए, किन्तु उनके अनुयाकाण्ड का आधार अधविश्वास न हो, प्रबुद्ध विश्वास हो, इयों को और कोई नही, उन्ही के उपदेशो मे न जाने लेकिन यह भी तभी हो पाता है जब धर्म का आस्था कहां से और कैसे हिंसक क्रुसेड करने की प्रेरणा मिल सस्थागत धर्म के नियमो को सावधानी पूर्वक लागू करवाए गई, तो सच पूंछो ।, मदांधता का कोई धर्म और ईमान और दीक्षित व्यक्तियों की सही ढग से परख हो। जिहाद नहीं होता। बह तो मनुष्य की लिप्साओ और क्रूर हताऔर धर्म-युद्ध तो प्रायः उन्माद ही पैदा करते रहे हैं। शानो की अभिव्यक्ति होती है । धर्म का इस से कोई पैगम्बर मुहम्मद के बाद जितनी जिहादे हुई वे सब की लेना देना नही । मदांधता ने सस्थागत धर्म अथवा सम्प्रसब शुद्ध-रूपेण युद्धोन्माद थे। सिक्ख गुरू गोविंद सिंह के दायो कों, सम्प्रदायों ने वास्तिविक धर्म को बदनाम किया बाद कोई भी धर्म-युद्ध युद्धोन्माद के अलावा और कुछ है और शैतान ने ईश्वर का 'नाम ने ले कर अपना काम नहीं रहा । इसलिए धर्म-शास्ताओं को भी धर्म के नाम बनाया है। यही आज तक का इतिहास बोलता है। पर युद्ध छेड़ना वाजिब नहीं है । और यदि वें देश-काल वास्तविक धर्म की उपयोगिता अपनी जगह है । वह रही की मजबूरी के कारण कभी सशस्त्र युद्ध छेड़ते भी हैं तो वह उन्हीं तक सीमित रहना चाहिए, उसे परम्परा में है और वह रहेगी। नहीं डालना चाहिए। वरना उनके अनुयाइयों की भीड़ राजकीय इण्टर कालेज राम नगर (नैनीताल)
SR No.538038
Book TitleAnekant 1985 Book 38 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1985
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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