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१६ बर्ष ३५कि०३
बनेकान्त
भोजन त्याग जो प्रोषध कर,
ताको पथ्य जु औषधि दान, सो तप अनशन जिनवर कहै ॥१६॥
सुश्रूषा करि राखो मान । अल्प अहार कर जु एक बार,
इह विधि बार बार दृढ़ चित्त, तप यह ऊनोदर (आमोदर्ज) सुसार ।
यह जानो तप वैयावृत्त ॥९॥ नियम सौं गिन वस्तु जुलेई,
जिनवर वाणी पढ़ सुसार, वस्तु सख्या ता सब सुख देई ॥१०॥
__ बार बार पूछो हितकार। नीरस भोजन लेइ विचारि,
अनुप्रेक्षा द्वादश जिन कही, रस त्यागं व्रत यह दुख जारि ।
__ ते जु विचारै दिन दिन सही ॥१८॥ आसन शयन जु न्यारे कर,
बागम विचारि कही सो लेइ, विविक्त शैयासन मन तप कौं धरै ॥१॥
धर्म उपदेश सदा हित देह। देह जान बहु दुख को गेह,
यह स्वाध्याय पंचविधि भेद, यही जानि पुनि तजो सनेह ।
स्वाध्याय तप भव दुख छेद ||६|| बहुत कष्ट करि देह जु क्षीण,
कायोत्सर्ग नियम मन लावै, कायक्लेश तप कहे प्रवीण ॥२॥
पद्मासन कर निज तनू पावै । छह तप सुनि अभ्यन्तर राय,
सहै क्लेश विकलता नाखि, बहुत भेद जिन कहै बताय।।
कायोत्सर्ग तप यह बिन साखि ॥१०॥ व्रत तप मन बच काय जु कियो,
ध्यान पदस्थ विंडस्थ वखानि, निज गुरु धर्म साक्षि (माखि) लियो ॥१३॥
अरु रूपस्थ कहो गुण वाणि । जो कबहु व्रत भगहि लहै,
रुपातीत ध्यान शुभ शुद्ध, पुनि गुरु पास आनि सो कहै ।
ध्यान महातप कही सुबुद्धि ॥१०॥ जे गुरु सीख देहिं हितकारी,
जो द्वादश तप मन दै कर, पूजा जाप उपास विचारि ||
भव सागर सो लीजै तरै । इन कर मल सोधे निज हेत,
स्वर्ग लोक पद लहै सुजान, प्रायश्चित्त तप कहऊ सुचेत ।
सो पुनि जीव लहै निर्वाण ॥१२॥ दर्शन ज्ञान चरित्र जु करै,
इति तप वर्णन । वीर्य सु तप करि पातक हर शा
अथ सामायिक क्रियाताको विनय कर मनु लाइ,
दोहा-सामायिक क्रिया कही, शिक्षाक्त मे जानि । यह तप विनय महा सुख दाइ।
फिर वर्णन नहीं कीजिए, यह जिन वचन प्रमाण ॥ जे मुनि व्याधि जरा के लीन,
(अपूर्ण)
१.३॥ तप करि देह भई तहं क्षीण ॥१६॥
-शाहदरा दिल्ली-३२