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पानी बिनु मोती है जैसो,
शीन बिमा नर लागै तेसो ॥५२॥ कवित्त-जो अपजस की डंक बजावत,
लावत कुल कलंक परधान । जो चरित्र को देत जलांजलि,
__ गुनवन को दावानल दान ।। सो शिव पंथ को वारि बनावत,
आवति विपति मिलन के थान । चिंता मणि समाज जग जो नर,
सील रतन निज करत मिलान ॥१३॥ चौपाई-ज्ञान ध्यान ब्रत संयम धरना,
यज्ञ विधान शुभ तीरथ करना। पूजा दान बहु कोटिक कर,
शील बिना नहिं फल को लहै ॥५४॥ दोहा-रावण आदि जु क्षय भए, पर नारि के काज ।
सेठ सुदर्शन शील ते, पायो शिवपुर राज ॥५॥ निज नारी पुनि छोड़ो जानि, आठ पांचं, चौदसि मान । दिवस पुनि छोई निज हेत, चौथो अणुव्रतधरहु सुचेत ॥५६ अथ परिग्रह प्रमाणुव्रतप्राणी तृष्णा लियो अति धनी, पूरी होय न क्योंकर तनी। तीन लोक की लक्ष्मी पावै, तीन तृष्णा पूरण पावै ॥५७ यही जान परिग्रह प्रमाण, अणुब्रत पचम कही सुजान । धरि संतोष तुष्णा वश कर, भवसागर सो लीजं तरै ।।५८ क्षेत्र गेह धन धान्य जु वीर, द्विपद, चतुष्पद, आसन वीर । भंडार सयन आभूषण पान, भोजन भोग करी प्रमाण ॥५ परिग्रह जानह दुख की खानि,
पाप मूल पुनि कही बखानि । व्यों ज्यों करहि जु प्राणा आशा
दुर्गति आवै त्यों त्यों पासा ॥६॥ मथ सवैया-कलह गयंद उपजायवे कों,
विन्ध्यागिरि क्रोध गीत के अघाइवे को सु मसान है। संकट भुजंग के निवास करिबे कों चील,
वैर भाव चोर को महा निशा समान है। कोमल सुगुन धन खंडिवै को महा पौन (पवन)
पुण्य वन दहिवे की दावानल दान है।
नीति नय नौरवकों नसाइवें को हिम राशि,
ऐसो परिग्रह राग द्वेष का निधान है ॥६॥ दोहा-सत्यघोष अति लोभते दु:ख सहे अधिकार ।
शालिभद्र संतोष ते, भए सिद्ध गुणधार ॥२॥ इति पंचाणुव्रत समाप्यते । अथ तीन गुण व्रत कथ्यते । दिशा अरु विदिशा जानहु वीर,
संख्या की धरि ब्रत धीर । प्रथम अणुव्रत एह सुजान,
पुनि तुम देस करहु प्रमाण ॥६॥ व्रत आचार की यात्रा छीन,
तहीं देश नही जाय प्रवीन । द्वितीय गुणवत जातें बढ़े,
धरि संतोष धर्म अति बढ़े ॥६॥ पृथ्वी खोद कर बहु पाप,
जल अति हारि कर संताप । वायु अग्नि प्रज्वाल घनी,
काटि वनस्पति हिंसा जनी ॥६५॥ मूठ वचन चोरी पर नारी,
बहु मारम्भ कर मन धारि। क्रोध लोभ माया मद जान,
विकथा विकगान विर्षे रति मानि ॥६६ ए सब अवर अनर्य जु दंड,
कहि गुरु पास लेइ तह दंड। तृतीय गुण व्रत यातें लहै,
अनर्थ दंड यह जिनवर कहै ॥६७॥ समता सब सों संयम भाव,
धर्म ध्यान इक चित में लाव । सहइ परीवह दृढ़ धरि चित्त,
जिन पद जपं कर सब नित्त ॥६॥ तीन काल सामायिक धरै,
दोय घड़ी करि पातक हरे। सामायिक भव्य जीव लो लावै,
मध्यम प्रैवेयक पद पावै ॥men भव्य जीव सामायिक साधि,
नियमा करि जिनवर बाराधि।