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________________ २२, ३७,कि. बन्द मन्दिर है जिसमें वेदी में म. पार्श्वनाथ की श्वेत- वेदी में भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा विराजमान है" यह पाषाण की पपासन प्रतिमा है । प्रतिमा सौम्य तथा चित्ता- प्रतिमा मथुरा वृन्दावन के बीच घिरोरा गांव के समीपकर्वक है।" मन्दिर के चारों ओर चार वेदिया है। दक्षिण वर्ती अक्रधार के पास दि. १६-८-१९६६ को भूगर्भ से वेदी पर मूलनायकमा विमलनाथ की भूरे पाषाण की प्राप्त हुई थी। इसके पीठान पर संवत १८९ अंकित है। प्रतिमा मुख्य है। इसी वेदी पर भगवान पाश्वनाथ की एक यह प्रतिमा कुषाण काल की है। इसी प्रतिमा की दायी श्वेत पाषाण की भूति है यह पद्मासन है, हाथ खण्डित है ओर की वेदी में भगवान पार्श्वनाथ की श्वेतपाषाण की इस पर कोई लेख नहीं है। पलिस कहीं कही उतर गया की प्रतिमा विराजमान है। है यह मूर्ति भगवान विमलनाथ के समकालीन लगती है। दिल्ली कलकत्ता राजमार्ग पर स्थित उत्तर रलवे ( )" पश्चिम की वेदी पर भी भगवान पवनाथ की स्टेशन पर प्रयाग नामक तीर्थस्थल है। यही चाहचन्द श्वेत पाषाण की हाय अवगाहना वाली पद्मासन प्रतिमा मोहल्ला सराव गियान में एक उन्नत शिखर से सुशोभित पार्श्वनाथ पंचायती मन्दिर है। इस मन्दिर का निर्माण स्थानीय संग्रहालय पिछोर (जिला-ग्वालियर) की नौवीं शताब्दी में हुआ। इस मन्दिर की वेदी के मध्य में स्थापना, सन् १०७६-७७ ईस्वी में म०प्र० शासन द्वारा मूलनायक भ० पार्श्वनाथ की प्रतिमा है जिसका सलेटी वर्ण है। की गई थी। इसमें ग्वालियर एव चम्बल सम्भाम के विभिन्न स्थानों से मूर्तियां एकत्रित की गई। जिनमें शैव, उत्तर प्रदेश के बरेली जिले एवं आंवला तहसील के शाक्त, वैष्णव एवं जैनधर्म से सम्बन्धित प्रतिमायें हैं इसी पास अहिच्छव नामक स्थान है। यहां स्थित प्राचीन क्षेत्र परवायी ओर एक छोटे गर्भ गृह में वदी है जिसमें तिरसंग्रहालय में मालीपुर से प्राप्त दो प्रतिमायें तीर्थंकर भग पार्श्वनाथ की है। प्रथम प्रतिमा योगासन मुद्रा में पाद खान वाले बाबा (भगवान पार्श्वनाथ) की प्रतिमा विराज मान है। प्रतिमा सौम्य एव चित्ताकर्षक है। प्रतिमा का पीठ पर स्थित है। सिर पर कुन्तलित केशराशि ऊपर निर्माण काल १०-११वी शताब्दी अनुमान किया जाता सप्तफर्ण नागमौलि की छाया है। पादपीठ पर दाये, बाये, यक्ष, धरणेन्द्र एवं यक्षणी पद्मावती के चिन्ह अंकित हैं।" बन्देलखण्ड में जैन तीर्थ के रूप मे खजुराहो एक रमदूसरी पार्श्व नाथ की प्रतिमा में कायोत्सर्ग मुड़ा में खड़ी __णीक एवं मनोहर प्रसिद्ध स्थान है। खजुराहो के जनहै। छठी शताब्दी ई०पू० में इन मूर्तियों की स्थापना मन्दिरों का निर्माण चन्देल नरेश ने नवी और बारहवी करन्दक नरेश ने स्थापित कराई थी।" शताब्दी में कराया।" ९-१० वी शताब्दी मे आर्यसेन के मथुरा में उत्खन से भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा शिष्य महासेन तथा उनके शिष्य चादिराज ने त्रिभुवन का शीर्ष भाग मिला है। इस प्रतिमा के शिरोभाग के तिलक नाम का चैत्यालय बनवाया, उसमे तीन वेदियो मे ऊपर सप्त फणावली हैं धुंधराले कुन्तलो का विन्यास त्रिभवन के स्वामी भगवान शान्ति नाथ, पार्श्वनाथ और अत्यन्त कला पूर्ण है। प्रतिमा कुषाण युग की होगी" ऐसी सुपार्श्वनाथ की तीन मूर्तियां बनवाकर प्रतिष्ठापित की मान्यता है । एक दि. जैन मन्दिर स्थित है। मुख्यवेदी मे और उसके लिए जमीन तथा मकान स०१०५४ के बैशाख भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा है। यह श्वेत पाषाण की मास की अमावस्या को दान दी।" पपासन है अवगाहना १५ इच है। मूर्ति लेख के अनुसार श्रीनगर गढ़वाल में एक प्राचीन दि० जैन मन्दिर वि० सं० १६६४ की है।" इसी वेदी में कृष्ण पाषाण अनकनन्दा के तट पर है इस मन्दिर मे केवल एक वेदी है की १८ इन्च ऊंची पपासन प्रतिमा है, इस मूर्ति पर लेख जिस पर तीन प्रतिमायें विराजमान हैं। मूलनायक भगनही है लेकिन इनके साथ जो सत्तरह मूर्तियां है उन पर वान वान ऋषभदेव और दो प्रतिमायें भगवान पार्श्वनाथ वि० सं० १५५५ अंकित है।" इस वेदी के पीछे वाली (शेष पृ० ३२ पर)
SR No.538037
Book TitleAnekant 1984 Book 37 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1984
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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