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कष्ण पाषामनोज है हमें गो
जैन कला और स्थापत्य में भगवान पार्श्वनाथ
D नरेन्द्र कुमार जैन सोरया एम० १० शास्त्री भगवान पाश्वनाथ जैन धर्म के तेईसवें तीर्थकर हैं। भगवान पार्श्वनाथ का जन्म जहाँ हुआ था, वह जैनकला और स्थापत्य में भगवान पार्श्वनाथ का विशेष स्थान वर्तमान में भेलूपुर नामक मोहल्ला के रूप में वारास्थान है। प्राचीन शिलालेखों, ग्रंथों, मन्दिरों तथा मूर्तियों णसी में जाना जाता है। यहां दो मन्दिर बने हैं। मुख्यके द्वारा इनकी महत्ता स्पष्ट प्रकट होती है। भगवान वेदी पर तीत प्रतिमायें विराजान हैं उनमें तीसरी प्रतिमा पावनाथ एक ऐतिहासिक महापुरुष थे। इनका जन्म ८७७ भगवान पार्श्वनाथ की है। सिर पर फण तथा पीठिका पर ई०पू० हुआ था। प्राचीनकाल में काशी मध्यवर्ती जनपद सर्प का लाक्षन है तथा लेख अंकित है। लेख के अनुसार था। काशी देश में वाराणसी नामक नगरी थी। राजा इसकी प्रतिष्ठा संवत १५६८ में हुई थी पीछे बाम आले अश्वसेन वहां के राजा थे' पिता अश्वसेन और माता में दो दिगम्बर प्रतिमायें हैं मूर्ति लेख के अनुसार इनका वम्मिला (वामा) से पौषकृष्ण एकादशी के दिन विशाखा प्रतिष्ठाकाल वि० सं० ११५३ है। इसी के साथ दूसरी नामक नक्षत्र में आपका जन्म हुआ था।'
मूर्ति कृष्ण पाषाण की पपासन मुड़ा में भगवान पार्श्वनाथ (पृ० २० का शेषांश)
- की है जो कि अत्यन्त मनोश है।' ग्रन्थों के मर्मज्ञ थे एवं सांसारिक लोगो से उदास रहते थे।
ग्वालियर नगर तेरहवीं शताब्दी में गोपाचल पर्वत के यद्यपि इनकी भाषा हंढारो है तथापि टोडरमल जयचन्द नाम से प्रसिद्ध था यह क्षेत्र जन कला एवं स्थापत्य की आदि विद्वानों की भाषा की अपेक्षा सरस और सरल है।
दृष्टि से पाँचवी शताब्दी का प्रसिद्ध है। यहां पर भगवान इनकी निम्ननांकित रचनाए उपलब्ध है:
पार्श्वनाथ की ४२ फीट ऊंची ३० फुट चौड़ी शातिशय १. आत्मावलोचन २. चिट्ठलास ३. अनुभव प्रकाश
मनोज्ञ प्रतिमा है। संसार को यह दुर्लभ मनोश कलावचनिका ४. गुणस्थान मेंट ५. आध्यात्म पच्चीसी ६.
कृति है। द्वादशानुप्रेक्षा ७. परमात्मपुराण ८. उपदेश रत्नमाला है.
औरंगाबाद (महाराष्ट्र) से ३० कि०मी० दूर एलोरा स्वरूपानन्द वृहद् तथा लघु १०. भारती।
नामक ग्राम है। यहां से स्थित गुफाओं के कारण यह स्थान ५. मजयराजः-ये दिगम्बर जैन श्रीमाल थे । अन्त:
विख्यात है। यहां पर कुल ३. गुफायें हैं। इन्हीं गुफाओं साक्ष्य के आधार पर इनके निवास स्थान तथा अन्य पारि
मे गुफा नं०३० से आधा किमी. दूर की ऊंचाई पर वारिक जानकारी नहीं मिलती है। इनकी भाषा शैली के पार्श्वनाथ मन्दिर है। इसमें भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा आधार पर एव जयपुर के जैन विद्वानो से -पर्क करने पर विराजमान ह। पुरातत्व विभाग के अनुसार ये गुफार्य केवल इतना ही ज्ञात हो सका कि ये जयपुर के थे एवं स्वा शताब्दा का है।" इसका समय सवत् १७०० के आसपास था । इनकी निम्न
बुन्देलखण्ड के जैन तीर्थो में श्री दि. जैन अ० क्षेत्र लिखित गद्य कृतियां उपलब्ध है:
बड़ा गांव प्रसिद्ध है । वैसाख बदी ८ सं० १९७८ को यहां १. विषारहार स्रोत की वनिका २. चतुर्दश गुण
स्थिन टीले की खुदाई कराई गई जिसमें १० दि० जैन स्थान चर्चा वनिका ३. कल्याण मंदिर भाषा टीका ४.
प्रतिमायें निकली, जिनमें ७ पाषाण की तथा तीन धातु एकीभाव स्रोत की भाषा। प्राध्यापक, हिन्दी-विभाग
की हैं" पाषाण की प्रतिमाओं पर दो को छोड़कर) मूर्ति दयानन्द महिला महाविद्यालय, लेख है उना
लेख है उनसे ज्ञात होता है कि इन प्रतिमाओं में कुछ अलवर (राज.) बारहवी शताब्दी की थी। कुछ सोलहवीं की। यहां शिखर
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