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________________ राजस्थान के मध्यकालीन जैन गद्य लेखक 0 श्री रीता जैन हिन्दी साहित्य में गद्य का आविर्भाव संवत् १६०० १. क्रिया कोषभाषा (माघ शुक्ला १२ सं० १७९५) से माना जाता है लेकिन राजस्थान के जैन साहित्यकारो २. पापुराण भाषा (माघ शुक्ला , सं० १९२३) द्वारा संवत् १७०० में हिन्दी गद्य में रचनायें होने लग गई ३ हरिवंशपुराण वचनिका (चैत्र शुक्ला १५ सं०१८२९) थी। उनकी रचनायें हस्तलिखित होने से अज्ञात रही है, ४. आदि पुराण भाषा ५. श्रीपाल चरित्र भाषा इसीलिए अब तक विद्वानों का ध्यान इस ओर नहीं गया ६. परमात्म प्रकाश भाषा ७ पुरुषार्थ सिन्युपाय की टीका अन्यथा हिन्दी नद्य का आविर्भाव २०० वर्ष पूर्व से ही ८. पुण्याश्रव वनिका ६. उपासना ध्यान की टब्बा टीका माना जा सकता है। यहां उन गद्य लेखकों का व उनकी ३. श्रीटोडरमल-इनका जन्म जयपुर की प्रसिद्ध जैन कृतियों का परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है, जिन्होंने हिंदी खण्डेलवाल जाति में मोदी का गोत्रीय वैश्य परिवार में गद्य में रचनायें प्रस्तुत की है सं० १७९७ में हुआ। इनके पिता का नाम जोगीदास एवं . १. हेमराज-हेमराज का जन्म सत्रहवीं शताब्दी में माता का नाम रंभावाई था। ये दैवी प्रतिभा के धनी थे। सांगानेर (जयपुर) में हुआ था। ये पांडे स्वरूपचन्द के अल्पायु मे ही ये बड़े-बड़े सैद्धान्तिक ग्रंथों का गूढ़ रहस्य शिष्य थे। अषने अन्तिम दिनों में ये काम चले गये दे। समझने लगे। शीघ्र ही व्याकरण, न्याय, गणित आदि इन्होंने पद्य व गद्य दोनों में रचनायें की। इनकी निम्न विषयों पर पूर्ण अधिकार प्राप्त कर लिया तथा संस्कृत, लिखित गद्य रचनायें हैं प्राकृत एवं हिन्दी भाषा के अधिकृत यिवान बन गये। १. प्रवचनसार भाषा (माघ शुक्ला ई. सं० १७०६) उनकी इस विद्वता का प्रभाव राजसभा में भी अच्छा हुआ। २. गोम्मटसार भाषा (सं० १७२१) उन्हें सम्मानित पद मिला । इससे तत्कालीन ईर्ष्यालु लोगों ३. परमात्मप्रकाश भाषा (मं० १७१६) को इनसे ईर्ष्या हुई । कहा जाता है कि इस ईया-द्वेष का ४. पंचास्तिकाय भाषा (सं० १७२१) इतना भयंकर परिणाम हुआ कि ज्ञान के उदीयमान सूर्य को ५. नयचक्र भाषा (स. १७२६) ६ समयसार भाषा अल्पकाल में ही काल-कवलित होना पड़ा। २. दौलतराम-दौलतगम बसवा के रहने वाले थे, टोडरमल द्वारा रचित गद्य-कृतियां निम्नांकित हैं:परन्तु वाद में जयपुर में रहने लग गये। उनके पिता का १ सम्यक् ज्ञान चन्द्रिका २ त्रिलोकसार वनि का नाम आनंदराम था। वह जाति से कासलीवाल गोत्री आत्मानुशासन वनिका ४ मोक्षमार्ग प्रकाशक (मौलिक खण्डेलवाल थे ऋषभदास जी के उपदेशों से दौलतराम ५ पुरुषार्थ सिधुपाय टीका ६ रहस्यपूर्ण चिट्ठियां । जी को जनधर्म पर विश्वास हुआ और कालान्तर में यह इनके गद्य का नमूना दृष्टव्य है:विश्वास अगाध श्रद्धा के रूप मे परिणित हो गया। 'आपको सुखदायक उपकारी होय ताको इण्ट कहिए । दौलतराम ने गद्य व पद्य दोनो मे ही रचनाये की हैं। सो लोक मे आपका दुःखदायक अनूपकारी होय ताको अनिष्ट कवि के रूप में भी ये श्रेष्ठ है और गद्यकार के रूप में भी। कहिए । सो लोकमें सर्व-पदार्थ अपने-२ स्वभाव ही कर्ता हैं।' आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने हिन्दी साहित्य के इति- ४ दीपचन्द-दीपचन्द सागानरे के रहने वाले थे। हम में इन्हें रामप्रसाद निरजनी के पश्चात खडी बोली कालान्तर में ये आमेर आकर रहने लगे। इनकी सभी ा दूसरा श्रेष्ठ गद्यकार माना है। इनकी निम्नांकित गद्य रचनाएं १८ वीं शताब्दी के अन्त की हैं । ये आध्यात्मिक रचनायें है (शेष पृ० २१ १२)
SR No.538037
Book TitleAnekant 1984 Book 37 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1984
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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