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________________ ब्राह्मी स्तोत एक समस्या पूर्ति मेरे हस्तलिखित ग्रन्थ सग्रह में एक छोटी-सी पुस्तिका हस्तलिखित है जिसमें केवल चारह पर है प्रत्येक पत्र की लं० चौ० १४ ।। सें० मी० X ७।। से० मी० है । प्रत्येक पत्र में पांच-पांच पक्तिया है तथा प्रत्येक पंक्ति में तीस-२ अक्षर हैं। प्रति अत्यधिक सुवाक्य सुन्दर शब्दो मे अकित है इसमें केवल ४४ ला संस्कृत छन्द है। इसके रचयिता श्री गुरु सेमकर्ण के शिष्य श्री धर्मसिंह हैं जिन रत्नकोव पृष्ठ २८९ पर इसका उल्लेख है, पर रचयिता का विशिष्ट परिचय उपलब्ध नही होता है । इस ब्राह्मी स्तोत्र की एक खास विशेषता है इसीलिए यह लेख लिखा जा रहा है। यह भगवती सरस्वती या जिनवाणी का वर्णन करने वाला स्तोत्र है और केवल स्तुतिपरक ही नही है अपितु जहा जिनवाणी की स्तुति है यहां भगवान आदिनाथ की स्तुति से सबंधित मुनि मानतुंगाचार्यकृत भक्तामर स्तोत्र के प्रत्येक छद की अतिम पक्ति समाविष्ट कर तीन पंक्तियां सरस्वती की स्तुति की मिलाकर पूरा जिनवाणी का स्तवन किया गया है। इस तरह वाग्देवी की स्तुति के ४४ छद प्रस्तुत कर रहा हू । एक समय था जब समस्यापूर्ति का प्रचलन हिन्दी, उर्दू, संस्कृत आदि सभी भाषाओ में हुआ करता था और यह कवि विचक्षण प्रतिभा के धनी कविगण ही कर पाते थे । धारानरेश महाराज भोज तो अपने कवियो को स्वय समस्यात्मक पक्तियां देकर उनकी पूर्ति कराते थे तथा उत्तम समस्यापूर्ति रूपक रचना पर लाख-लाख मुद्राए दान में समर्पित कर दिया करते थे। यद्यपि 'लक्षदों की उक्ति में अतिशयोक्ति भले ही हों फिर भी समस्यापूर्ति का संचलन विभिन्न भाषाओ मे विपुलता से रहा है। इसी तरह का एक महाकाव्य "पाश्वभ्युदय" जिसे श्री जिनसेनाचार्य महाराज ने महाकवि कालिदास के मेघदूत की एक पंक्ति लेकर शेष तीन पंक्तियां अपनी रचकर D श्री कुम्हनलाल जैन प्रिन्सिपल पार्श्वप्रभु का चरित्र वर्णन किया है, कितनी महान प्रतिभा थी उनमे । इसी तरह प० लालारामजी शास्त्री ने भक्तामर स्तोत्र' के चरणों को लेकर २०४ श्लोकों की रचना "शतद्वयी' के नाम से की थी। इसी तरह "प्राणप्रिय" नामक काव्य भी राजुल और नेमिप्रभु का वर्णन करने वाली समस्यापूर्ति रूपक रचना उपलब्ध होती है । जैन साहित्य में उमास्वामी और मानतुंगाचार्य दो ही ऐसे निविवाद आचार्य हुए है जिन्हें दि० और १० दोनों ही सम्प्रदाय बडी श्रद्धा और आदर के साथ पूजते हैं दोनो की कृतिया तत्वार्थ सूत्र और भक्तामर स्तोत्र बड़े भक्ति भाव से पढे और बाचे जाते हैं तथा उनकी आराधना और स्वाध्याय होता है। यह बात अलग है कि आगे चलकर कुछ विद्वानो ने दुराग्रह वश इनमें हेराफेरी कर कुछ कमी बढ कर दिया जिसका उल्लेख करना यहां अप्रासनिक होगा इस विवाद के लिए अनेकान्त वर्ष २ किरण १, पृ० ६६ पर तथा स्व० डा० नेमीचन्द्र जी ज्योतिषा चार्य कृत 'तीर्थंकर महावीर और उनकी परम्परा' को विस्तार से देखे । यहां तो मेरा मूल उद्देश्य केवल इस "ब्राह्मी स्तोष" शीर्षक श्रेष्ठ साहित्यिक कला कृति का रसास्वादन ही पाठको को कराना मात्र है। यदि भविष्य मे आवश्यकता हुईं तो 'भक्तामर स्तोत्र और तत्त्वार्थसूत्र' पर विस्तार से विशद विवेचन अगले अर्को मे करूंगा। यह साहित्यिक कलाकृति अब तक सर्वथा अप्राप्य, अज्ञात और अप्रकाश्य है, सुधी पाठकगण इन छदों की गरिमा और लालित्य को परखें तथा भावों और विचारों को कवि ने किस खुबसूरती से सजोया एवं पिरोया है वह सर्वथा पठनीय और मननीय है जिसे अविरल रूप से नीचे दे रहा हूं । वाग्देवी की स्तुति कितनी सुन्दर और चमत्कृत है यह पाठक स्वयं ही निर्णय करें ऐसी रचनायें प्रायः बहुत ही कम उपलब्ध होती हैं :
SR No.538037
Book TitleAnekant 1984 Book 37 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1984
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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