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४ बर्ष ३७,कि..
बनेकान्त गवेषणा करके कवि के व्यक्तित्व को उजागर करना, की ही एक शाखा थी और अन्ततः उसी में अंतर्भूत हो भारतीय साहित्य में उनके योगदान का मूल्यांकन और गया। भारतीय ही नहीं, विश्व के सार्वकालीन महाकवियों में कवि के पिता का नाम मारुतदेव था, जो शायद उनका स्थान निर्धारण करना, ऐसी दिशाएं हैं जिनमें स्वयं भी अपभ्रंश भाषा के एक सुकवि थे। कवि की अभी बहुत कुछ किया जा सकता है। उनके सम्पूर्ण जननी का नाम पद्मिनी था। कवि की तीन पत्नियां थीसाहित्य का तलस्पर्शी सर्वांग सांस्कृतिक अध्ययन अपेक्षित आइन्चंबा आदित्याम्बा), साभिमब्बा या अभिअब्बा है। उनकी कृतियों के स्तोत्रों तथा पूर्वापर प्रभावो पर भी (अमृताम्बा) और सुअब्बा (श्रुताम्बा)-ये तीनों ही प्रकाश पड़ना है।
विदुषी थी और कवि के लेखनकार्य मे योग देती थी। ___ अन्य अनेक पुरातन आचार्यों, मनीषियों, महाकवियो स्वयंभू की महासत्वघरिणी धर्मपत्नी सामिअब्बा तो घ्र वआदि की भांति महाकवि स्वयभू के विषय मे जो कुछ राज की पुत्रियों की शिक्षिका भी थी। कवि की संभवतया वैयक्तिक तथ्य उपलब्ध हैं, वे अत्यल्प हैं । परन्तु जैसा कि एकाधिक संतानें थीं, किन्तु उनके केवल एक सुपुत्र त्रिभुआंग्ल महाकवि शेक्सपियर के एक प्रौढ अध्येता अल्फ्रेड बन स्वयभू के विषय में ही कुछ जानकारी है। उसने आस्टिन का कहना है कि 'बहुधा यह कहा जाता है कि पिता की कृतियों के कच्चे आलेखों को सुसंपादित करके व्यक्ति विशेष के रूप में हम शेक्सपियर के विषय मे कुछ तथा उनमें पूरक अश, अन्य प्रशस्तिया आदि जोड़कर भी नहीं जानते, किन्तु मुझे तो यह प्रतीत होता है जितना उनका सरक्षण एवं प्रकाशन किया। उसने अपने बदइय, अधिक हम उस व्यक्ति के विषय मे जानते हैं, किसी अन्य गोविन्द, श्रीपाल, मदन आदि कई प्रश्रयदाताओं एवं प्रेरको व्यक्ति के विषय में नही जानते हैं-यही बात महाकवि के नाम भी दिए हैं। स्वयं कवि स्वयंभू ने अपने आश्रयस्वयंभ पर लागू होती है, किन्तु उसके पाडित्य का उतना दाता के रूप मे रयडा धनञ्जय और धवल इय या घ्र ब. विविध एवं विस्तृत अध्ययन तो हो ले जितना कि गत राज धवल इय के नाम प्रकट किए है।। जगभग ४०० वर्ष में शेक्सपियर का हो सका है। ऐसा हो कवि ने अपने पूर्ववर्ती अनेक कवियो एव साहित्यकारो जाने पर स्वयम के भी व्यक्तित्व, स्वभाव, चारित्र एव का नामोल्लेख किया है। पउमचरिउ की सूची में अतिम गुण-दोषों को बहुत कुछ उजागर किया जा सकता है। नाम अनुत्तरवादी कीर्तिधर और रविषेण के हैं-इन
कवि की प्राप्त कृतियों में उनका नाम स्वयभू या दोनो के पद्मपुराणों को ही स्वयभू ने अपनी रामायण का स्वयंभूदेव प्राप्त होता है। यह उनका मूल नाम था या मूलाधार बनाया प्रतीत होता है। संस्कृत पद्मपुराण के साहित्यिक, कहा नहीं जा सकता। कविराय, कविराज- कर्ता रविषेण (६७६ ई.) ने भी अनुत्तरवादी कीर्तिधर चक्रवर्ती, कविराजधवल, छंदचूडामणि, जयपरिवेश तथा के पुराण को अपना आधार सूचित किया है। अरिट्ठणेमि विजयप्रेषित उनके विरुद ये उपाधियां रही प्रतीत होती चरिउ में स्वयभू ने महाकवि चतुर्मुख और उनके पदाहैं। स्वय के कथनानुसार वह शरीर के दुबले-पतले, ऊंचे डियाबद्ध हरिवशपुराण को अपना पूर्ववर्ती सूचित किया कद के थे, उनकी नाक चपटी थी और दांत विरल थे। है। स्वय स्वयभू का सर्वप्रथम स्पष्ट नामोल्लेख पुष्पदत ऐसा लगता है कि काव्यों की रचना के समय वह प्रौढ़ के अपभ्र श महापुराण (९५६ ई०) में प्राप्त होता है। अनुभववृद्ध एवं ज्ञानवृद्ध थे। उनकी जाति, कुल, बंश, इस प्रकार कवि के समय की पूर्वावधि ६७६ ई० गोत्र आदि का कुछ पता नहीं है, सम्भवतया वह ब्राह्मण और उत्तरावधि १५६ ई. स्थिर होती है। इसी आधार
धर्मतः वह दिगम्बर मतावलम्बी थे। पुष्पदताय महा- पर स्व.प्रेमी जी ने स्वयं का समय ६७६ ई. और पुराण के 'स्वयंभू' शब्द के टिप्पण में उन्हें 'आपुलीसघीय'
७८३ ई० के बीच अनुमान किया था, डा. देवेन्द्र कुमार कहा गया है जिससे अनुमान लगाया गया । कि उनका ने भी इसे मान्य किया किन्तु यह हेत कि स्वयंभू ने जिनसम्बन्ध यापनीय संघ से था यह संघ दिगम्बर परम्परा
(शेष पृ०६ पर)