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'ताकि सनद रहे और काम आए'
इन्दौर से प्रकाशित अन्य अनुत्तर-योगी तीर्थकर महावीर विगम्बर आगम के विज्ड है। इस पर बहुत कुछ लिलावा रहा है और प्रबुद्ध वर्ग इस अन्य को दिगम्बर आम्नाय विरुद्ध ठहरा रहा है । गतांक में कुछ सम्मतियां प्रकाशित की गई पी सम्मतियों की दूसरी किश्त प्रस्तुत है-कई प्रबुद्धों की सम्मतियां हमारे अनुकूल होने पर भी उनकेनपाने के मापहवश हम नहीं पा रहे है।
पूज्य १०८ प्राचार्ग श्री धर्मसागर जी महाराज: विपरीत कर दिया गया है-जब कि सिद्धान्तों की पुष्टि
होनी चाहिए थी। सेठ श्री उम्मेदमल पाण्डया व. पं० धर्मचन्द्र जी शास्त्री किशनगढ़ पंच कल्याण प्रतिष्ठा महोत्सव पर .
हमारा आशीर्वाद है कि यह संकट शीघ्र दूर होगा महाराज श्री के साथ दस दिन तक रहे। 'अनुत्तर-योगी ।
हर और दिगम्बर मार्ग की रक्षा होगी। तीर्थकर महावीर' जो इन्दौर से प्रकाशित हुआ है, के बारे में पू.आचार्य श्री धर्म सागर जी महाराज व आचार्य
प्राचार्यकल्प श्री १०८ मुनिश्री शानभूषणजी महाराज कल्प श्री श्रुतसागर जी महाराज से पपचन्द्र शास्त्री द्वारा 'अनुत्तर-योगी तीर्थकर महावीर-उपन्यास दिगम्बर निखित लेख पर चर्चा हुई। आचार्य महाराज ने इस आम्नाय पर प्रत्यक्षरूप से कुठाराघात करने वाला है। सम्बन्ध में कहा कि-"तीपंकरों का जीवन चरित्र एक इसके अन्तर्गत महावीर के जीवन और उनके द्वारा प्रतिपथार्थ है और जो यथार्थ है उस पर कभी उपन्यास नही पादित जिन सिद्धान्तों को लिखा है वह दिगम्बर आम्नाय लिखा जा सकता उपन्यास में कोरी कल्पना ही होती है। पर आवरण डालकर मिथ्यामार्ग को पुष्ट करने वाले श्री पप्रचन्द्र जी शास्त्री ने इस विषय को उठा कर दिगम्बर कलंक हैं। इस प्रकार के साहित्य के प्रचार व प्रसार पर जैन सिद्धान्त की रक्षा की है। और मुझे सबसे बड़ा रोक लगनी चाहिए। 'आश्चर्य तो यह है कि यह उपन्यास की किताबें हमारी ही दिगम्बर जैन संस्था ने छपवाई हैं। इस तरह की किताबों प्राचागकल्प या १०८
प्राचार्गकल्प श्री १०८ मनिधी दर्शनसागरजी से हमारी परम्पराएँ विकत होती है। इस तरह की किताबें
महाराज: छापना उचित नहीं है।"
अनुत्तर-योगी जो इन्दौर से प्रकाशित हुआ है व माप
का अनेकान्त में लेख व विद्वज्जनों की टिप्पणियां पढ़ीं। श्री १०८ पूज्य प्राचार्य शान्तिसागर जी महाराज आपने इसकी विसंगतियों की तरफ समाज का ध्यान आक
हमने अनुत्तर-योगी तीर्थंकर महावीर' इन्दौर से र्षित कर बहुत उपयोगी कार्य किया। इस पुस्तक के कुछ प्रकाशित ग्रन्थ देखा, उसमें बहुत सी बातें दिगम्बर जैन प्रसग दिगम्बर आम्नाय के विरुद्ध हैं। कोई शास्त्रीय सिवान्तों के विपरीत पाई जो आगामी पीढ़ी को विपरीत. प्रमाणों के आधार पर नहीं है। मार्ग दिखाएंगी और दिगम्बर मान्यताबों का लोप करेंगी। बक्ष:-इस ग्रन्थ को दिगम्बर बाम्नाय-अनुसार नहीं मायिकारल १०५ श्रीज्ञानमती माताजी: मानना चाहिए और इसका प्रतिवाद होना चाहिए। ऐसा 'अनुत्तर-योगी तीर्थकर महावीर' उपन्यास की प्रशंसा न हो कि कालान्तर मे विपरीत-मत की पुष्टि हो और यह मैंने बहुत बार सुनी थी किन्तु अपने लेखन कार्य की अन्य प्रमाणरूप में प्रस्तुत किया जाय । इसकी भाषा व्यस्तता अथवा मेरे सामने उस ग्रन्थ का न बाना ही उपन्यास बनुरूप ठीक है परन्तु सिद्धान्तों को बिल्कुल कारण रहा कि जिससे मैंने उसे आज तक पढ़ा ही नहीं।