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१५ वर्ष ३७, कि०२
बनेकान्त इस मन्दिर के द्वितीय तल पर भी एक गर्भालय हैं, जिसमें होम के बल से कांचीपुर के फाटकों को तोड़ने वाले तीन सौ एक तीर्थकर मूति है और जिसकी छत कुछ स्तूपाकार है। महाजनों ने सेडिम मे मन्दिर बनवा कर भगवान् शान्तिनाथ निर्माण की यह प्राचीन पद्धति विशेषत: कर्नाटक क्षेत्र में की मूर्ति की प्रतिष्ठा कराई थी और मन्दिर पर स्वर्ण प्रचलित रही है। इसका आरम्भिक उदाहरण ऐहोल का कलशारोहण किया था। मन्दिर की मरम्मत और नैमित्तिक लाट खां का मन्दिर है। शान्तीश्वर बसवि के सामने एक पूजा के लिए २४ मत्तर प्रमाण भूमि, एक बगीचा और सुन्दर शिल्पांकन युक्त मानस्तम्भ है।२०
एक कोल्हू का दान दिया था।"५२ इसके अतिरिक्त विभिन्न शिलालेखों तथा ग्रंथों के
"१३-१४वी शती में त्रिकूट रत्नत्रय शान्तिनाथ द्वारा भगवान् शान्तिनाथ के मन्दिरों एवं मूर्तियों का
जिनालय के लिए होयसल नरेश नरसिंह ने माघनन्दि विवरण प्राप्त होता है
आचार्य को कल्लनगेरे नाम का गांव दान में दे दिया था। "९-१०वीं शताब्दी में आर्यसेन के शिष्य महासेन तथा
दौर समुद्र के जैन नागरिकों ने भी शांतिनाथ की भेंट के उनके शिष्य चांदिराज ने त्रिभुवन तिलक नाम का चैत्यालय
लिए भूमि और द्रव्य प्रदान किया था।" बनवाया उसमें तीन वेदियों में त्रिभुवन, के स्वामी शान्तिनाथ
"सन् १२०७ में बान्धव नगर मे कदम्ब वंश के किंग पाश्र्वनाथ और सुपार्श्वनाथ की तीन मुतियां बनवा कर
ब्राह्मण के राज्य में शान्तिनाथ वसदि की स्थापना हुई। प्रतिष्ठित की और उसके लिए जमीन तथा मकान सन् १०५४ मे बैसाख मास की अमावस्या सोमवार को दान दी।"
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शक संवत् १११९ में महादेव दण्डनायक ने 'एरग' ११वी शती के आचार्य शान्तिनाथ भुवनकमल्ल
जिनालय बनवा कर उसमे भगवान् शांतिनाथ की प्रतिष्ठा - (१०६८-१.७६ तक) पराजित लक्ष्य नमति के मत्री थे। कर १३वी शती के सकलचन्द भट्टारक के पाद प्रक्षालन
इनके उपदेश से लक्ष्य नृपति के बालिग्राम मे शान्तिनाथ पूर्वक हिडगण तालाब के नीचे दण्ड से नाप कर ३ मत्तलभगवान् का मन्दिर बनवाया। यह शक संवत् १६० के चावल की भूमि, दो कोल्हूं और एक दुकान दान की।"५ गिरिपुर के १३६वें शिलालेख से ज्ञात होता है।
अत: जैन कला के अन्तर्गत शिलालेख, ताम्रपत्र, लेखक, "११वी शताब्दी के आचार्य प्रभाचन्द ने चालुक्य प्रशस्तियों मूर्तिलेखो आदि उपलब्ध साधन सामग्री से भग. विक्रम राज्य सवत् ४८ (११२४ ई०) में अग्रहार ग्राम बान् शांतिनाथ की महत्ता स्पष्ट होती है। स्थापत्य की दृष्टि सेडिम्ब के निवासी नारायण के भक्त चौसठ कलाओ के से भगवान् शांतिनाथ के मन्दिर प्राप्त मतियां तथा जानकार, ज्वालामालिनी देवी के भक्त तथा अपने अभिचार भग्नावशेष का जैन कला में एक विशिष्ट स्थान है।
सन्दर्भ-सची १. आदिपुराण-१६।१५२ ।
१३. श्री नीरज जैन : खजुरहो के जैन मन्दिर, पृ०३३-४०। २. आयिका ज्ञानमती: ऐतिहासिक तीर्थ हस्तिनापुर खजराना
पृ० १०-१२। ३. भारत के दिगम्बर जैनतीर्थ, भाग १, पृ०७४।
१५. खजुराहो का जैन मन्दिर, पृ० ४३-४४ । ४. जैन धर्म का प्राचीन इतिहास, भाग १ (चित्र फलक १६. जन कला एव स्थापत्य खण्ड २, पृ०५७६।
पृ० ६) तथा ऐतिहासिक तीर्थ हस्तिनापुर, पृ०१४। १७. वही पृ० ३०४ । ५. बलभद्र जैन: भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ, भाग १, १८. जैन कला एवं स्थापत्य खण्ड २०३४५-३४ पृ०२६।
१९. जैन कला एवं स्थापत्य भाग २ पृ. ३४४ । ६. भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ पृ०७४ ।
२०. वही पृ० ३७७। ७. भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ पृ० ५४ ।
२१. जैन शिलालेख संग्रह भाग २ पृ० २२७-२२८ । ८. विमलकुमार जैन सोरया : कला तीर्थमदनपुर पृ० १४
२२. परमानन्द शास्त्री : जैन धर्म का प्राचीन इतिहास ६. कला तीर्थमदनपुर पृ० १६ ।
भाग २, पृ. ३७६।। १०. कला तीर्थमदनपुर पृ० १७ ।
२३. जैन लेख संग्रह भाग ४ पृ० २५८ । ११. भारत के विवम्बर जैन तीर्थ पृ० १२८१ १२.० लक्ष्मीनारायण साह: उडीसा में जैन धर्म. २४. मिडियावल जैनिज्म पृ०२०९। चित्रफलक ।
२५. जैन लेख संग्रह, भाग ३, पृ० २४१ ।