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________________ जैन कला तथा स्थापत्य में भगवान शान्तिनाथ उसकी पीठिका पर संवत् १०८५ का एक पक्ति का मूर्ति का बहुत सुन्दर अलंकरण किया गया है। जगती के दक्षिण लेख और हरिण चिह्न है। इस मन्दिर में वर्तमान १२ पश्चिमी कोने में एक छोटा पूजास्थल है जिसमें चतुर्मुख वेदियों में से तीन प्राचीन मन्दिर ही थे उनकी जघा, गर्भ- नन्दीश्वर दीप की रचना है । गूड मण्डम में सादी संवरणा गृह, मण्डप आदि अभी भी ज्यो के त्यो हैं। ऊपर कुछ राजस्थान के जैसलमेर में सन् १४८० के निर्मित नवीन निर्माण करके उन्हें इस बड़े मन्दिर का अग बना शान्तिनाथ मन्दिर की छतें और संवरण (घण्टे के आकार लिया गया है। शेष वेदियो और द्वारों आदि पर भी प्राचीन मन्दिरों की सामग्री प्रचुर मात्रा में लगी हुई है ।" की छत) अपनी जटिलता के कारण विशेष उल्लेखनीय है। शान्तिनाथ मन्दिर के आंगन मे पहचते ही बायी ओर । शान्तिनाथ मन्दिर के गुम्बदो और कंगरों की उपस्थिति .दीवार में २३वें तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ के सेवक धरणेन्द्र __ तथा तदनुरूप बाह्य सरचना की सरलता और और पद्मावती की सुन्दर मूर्ति लगी है। इसमे यक्ष दम्पति सादगी सल्तनत स्थापत्य के प्रभाव को प्रदर्शित करती है।" एक सुन्दर और सुडौल आसन पर ललितासन में मोदमग्न चित्तौड़गढ मे तीर्थकर शान्तिनाथ को समर्पित शृगार बैठे हैं । इनके हाथ मे श्रीफल है।" चोरी चित्र २२०) स्थापत्य की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वशान्तिनाथ मन्दिर के मुख्य गर्भाशय की दायी ओर पूर्ण है। सन् १४४८ का निर्मित यह मन्दिर पचरथ प्रकार दीवार पर भगवान् महावीर की शासन देवी सिद्धायिका का है। जिसमे एक गर्भगृह तथा उत्तर और पश्चिम दिशा की सुन्दर मूर्ति है अम्बिका की मनोज्ञ प्रतिमा नम्बर २७ मे से सलग्न चतुस्किया है। गर्भगृह भीतर से अष्टकोणीय है है। इसी मन्दिर में संवत् १२१५ की श्याम पाषाण की जिस पर एक सादा गुबद है। मन्दिर की बाह्य सरचना सलेख प्रतिमा तीसरे तीर्थकर सम्भवनाथ की है, जिसके अनेकानेक प्रकार की विशेषताओ से युक्त मूर्ति शिल्पो से मूर्तिलेख से ज्ञात होता है कि यह प्रतिमा उन्ही पाटिल सेठ अल कृत है और जंधाभाग पर उद्भुत रूप से उत्कीर्ण के वशधरों द्वारा प्रतिष्ठित कराई गई जिन्होंने दो सौ वर्ष दिपालो दिक्पालो अप्सराओ, शार्दूलों आदि की प्रतिमाये हैं। मानवो पर्व खजुराहो मे विशाल कलात्मक पाश्र्वनाथ मन्दिर का या देवी-देवताओ की आकर्षक आकृतियो के शिल्पांकन भी निर्माण कराया था।" यहा पर उपलब्ध है। मुख्य प्रवेश द्वार की चौखट के "राष्ट्रीय संग्रहालय मे भगवान् शान्तिनाथ की कांस्य ललाट बिम्ब में तीर्थकर के अतिरिक्त गगा और यमुना, प्रतिमा विद्यमान है। इस प्रतिमा मे तीर्थकर को सिंहासन विद्या देवियां तथा द्वारपालो की प्रतिमाए अकित हैं । गर्भ पर ध्यानमद्रा में बैठे हुए दर्शाया गया है। उनकी आखें गह के मध्य में मुख्य तीर्थरप्रतिमा के लिए एक उत्तम श्रीवत्स चिल आदि चादी और ताबे को पच्चीकारी से बने आकार की पीठ है तथा कोनो पर चार स्तम्भ हैं जो है। उनके पात्र मे दोनो ओर बने आयताकार देवकोष्ठको वृत्ताकार छत को आधार प्रदान किए हुये है छत लहरदार मे तीर्थंकरो को बैठे हए दिखाया गया है। इनके नीचे भी अलकरणयुक्त अभिकल्पनाओ से सुसज्जित है जिसमे पपकायोत्सर्ग तीर्थकर अकित है। सिंहासन के पार्श्व में शिला का भी अकन है। इसके चारो ओर गजताल तीर्थकर के यक्ष एवं यक्षी अकित है और पादपीठ के अन्तरावकाशो से युक्त अलकरण है। इस मन्दिर के सम्मुख भाग पर नवग्रह, चक्र और उसके दोनो ओर हिरण मूर्तिशिल्प का एक उल्लेखनीय पक्ष यह है कि मन्दिर के आदि अंकित हैं। सिंहासन के आगे सिंहो के मध्य में बाहरी भाग के भीतर अष्टभुजी विष्णु और शिवलिंग जैसी तीर्थकर का लाछन अंकित है। प्रतिमा के पीछे संवत् हिन्दू देवताओ की उद्भत प्रतिमाएं भी हैं। चारित्रिक १५२४ का ओभलेख उत्कीर्ण है।" विशेषताओं की दृष्टि से यह शिलांकित आकृतियां विशुद्ध कुम्भरिया स्थित शान्तिनाथ मन्दिर (१०८२ ई.) रूप से परम्परागत है। एक सम्पूर्ण चविशति जिनालय है, जिसमें पूर्व और मूडीबी से २० किलोमीटर दर वेणर मे क पश्चिम दोनो दिशाओं में आठ देवकूलिकायें हैं तया रग- मन्दिर हैं जिनमे से शान्तीश्वर बसदि विशेष पसे मण्डप के प्रवेश स्थल के दोनों ओर चार देवलिया है। उल्लेखनीय है। इसमे १४८९-९.६.का जो उल्लेख है इस मन्दिर के त्रिक में छह चतुस्कियां हैं और इसके बरकों वह यहां सबसे प्राचीन है । आमूल चूल पाषाण से निर्मित
SR No.538037
Book TitleAnekant 1984 Book 37 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1984
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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