SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन कला तथा स्थापत्य में भगवान शान्तिमाय 0 मृदुलकुमारी शोषछात्रा भगवान शान्ति जैन धर्म के सोलहवें तीर्थपूर हैं। जैन भगवान् शान्तिनाथ की मूर्ति लाकर मूल नायक के रूप में कला तथा स्थापत्य में भगवान् शान्तिनाथ का विशेष विराजमान की गई। इसके कारण यह शान्तिनाथ का स्थान है। प्राचीन मन्दिरों, शिलालेखों ग्रन्थों तथा मूर्तियों मन्दिर कहा जाता है।' के द्वारा इनकी महत्ता प्रकट होती है विभिन्न जैन तीर्थ हस्तिनापुर में दिगम्बर जैन मन्दिर के द्वार के समक्ष स्थल तथा उनसे प्राप्त सामग्री इसकी साक्षी है। भगवान ३१ फुट ऊंचा मान स्तम्भ बना है चारो ओर खले बरामदे हैं और बीच में मन्दिर है जिसका एक खण्ड है इसे गर्भ शान्तिनाथ का जन्म हस्तिनापुर में हुआ। आदिपुराण के गृह कहते हैं। इस मन्दिर मे तीन दर की एक विशाल अनुसार हस्तिनापुर की रचना देवों के द्वारा की गई। वेदी है। उस पर भगवान शान्तिनाथ की श्वेत पाषाण की यहीं पर सत्रहवें तीर्थंकर कुंथुनाथ और अठारहवें अरहनाथ एक हाथ ऊंची पचासन प्रतिमा है। इसके दोनों ओर कंथनाथ का भी जन्म हुआ । तीनों ने हस्तिनापुर के सहस्राम्रवन में तथा अरहनाथ की प्रतिमा है। दीक्षा तथा केवलज्ञान प्राप्त किया और पञ्चकल्याणक इस मन्दिर के पीछे एक-दूसरा मन्दिर है जिसके बायीं मनाये। ओर वेदी में भगवान् शातिनाथ की ५ फुट ११ इंच की हस्तिनापुर में दिल्ली धर्मपुरा के नये जिन मन्दिर से अवगाहना वाली खड्गासन प्रतिमा है। इसके मूर्तिलेख से वि० सं० १५४८ में भट्टारक जिनेन्द्र द्वारा प्रतिष्ठित ज्ञात होता है कि इसकी प्रतिष्ठा संवत् १२३१ बैसाख (पृष्ठ १२ का शेषाश) सुदी १२ सोमवार को देवपाल सोनी अजमेर निवासी द्वारा १. प्रमेयकमलमानण्ड-अनुवादिका श्री १०५ आयिका। हस्तिनापुर में हुई थी। यह प्रतिमा ४० वर्ष पहले इस -जिनमती जी पृ० १६६-२०० टीले की खुदाई में निकली थी, जिस पर श्वेताम्बरो ने १०. डॉ. महेन्द्रकुमार जैन : जैनदर्शन पृ. ३०६। अपनी नशिया बनवाई थी। यह प्रतिमा हल्के सलेटी रंग ११. हेतुना चेद्विना सिद्धिश्चेद द्वैतं स्याहेतु साध्ययो.।। की है। इसके चरणों के दोनों ओर चैवरधारी बड़े हैं। हेतुना चेद्विना सिद्धिद्वत वाङ्गमामतो न किम् ॥ सिर पर पाषाण की छत्र छाया तथा इन्द्र ऊपर से पुष्प -समन्तभद्र आप्तमीमांसा का० २६ वृष्टि कर रहे है। चमरवाहक स्त्री युगल खड़े हैं। पाव१२. आत्मापि सदिदं ब्रह्ममोहात्यारोक्ष्यदूषितम् । पीठ पर हरिण का लांछन है।' ब्रह्मापि स तथेवात्मा सद्वितीयतयेक्ष्यते॥ आत्मा ब्रह्मति पारोक्ष्यसद्वितीयत्वबाधनातु । मन्दिर की उत्तर दिशा में तीन मील की दूरी पर पुमर्थे निश्चित शास्त्रमिति सिद्धं समीहितम् ॥ जन नाशया बना है। सबसे पहले भगवान् शान्तिनाथ की -वृहदारण्यक वार्तिक नशियां मिलती हैं। टोक में स्वास्तिक बना है। १३. प्रो. उदयन्द्र जैन : आप्तमीमांसा तत्वदीपिका। 'बाइसवें तीर्थकद नेमिनाथ की जन्मभूमि शोरीपुर पृ० १७६-१८.। के समीप वटेश्वर नामक स्थान पर १८वीं शती के १४. अतं न बिना ताय हेतुरिव हेतुना। भट्रारक जिनेन्द्र भूषण द्वारा बनवाया गया तीन मंजिल सज्ञिन: प्रतिषेधो न प्रतिषेध्यादते क्वचित् ॥ का मान्दर है। इस मन्दिर में शांतिनाथ भगवान की मति --समन्तभद्र अप्तमीमासा २७ है जो मूर्तिलेख के अनुसार संवत् १९५० बैसाख बदी २ १५. प्रो. उदयचन्द जैन · आप्तमीमाता तत्वदीपिका। को प्रतिष्ठित हुई । इस मूर्ति के परिकर मे बायी ओर एक १६. कार्यम्रान्तिरेणु भ्रान्तिः कार्यलिन हि कारणम्। खड्गासन और दायी ओर एक पपासन तीर्थपुर उदयाभाववस्तुस्थं गुण जातीत रच्च न॥ प्रतिमा है। चरणों में भक्त श्रावक बैठे हैं उनके बीच दो -आप्तमामासा ६८ स्त्रियां मकलित कर पल्लव मुद्रा मे आसीन है। दो १७.प्रो० उदयचन्द जैन : आप्तमीमांस तत्त्वदीपिका चमरवाहक इन्द्र इधर-उधर खड़े हैं ऊपर पाषाण का पृ०२४२। छत्रत्रयी है। ऊपर वीणावादिनी और मृदङ्गवादक बैठे हैं। १६. दर्शन और चिन्तन : पं० सुखलाल जी पृ० १२५। पीठासन पर हरिण अंकित है।'
SR No.538037
Book TitleAnekant 1984 Book 37 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1984
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy