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ओम् अहम्
رسال
TASHA
PUTNIR
परमागमस्य बीजं निषिद्धजात्यन्धसिन्धुरविधानम् । सकलनयविलसितानां विरोधमथनं नमाम्यनेकान्तम् ॥ वीर-सेवा मन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२
वीर-निर्वाण सवत् २५१०, वि० स० २०४०
अ५ }
वष ३७ किरण २
बीर-तेवर मन्दिर, २१
अप्रैल-जन
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१९८४
अध्यात्म-पद चित चिनके चिदेश कब, प्रशेष पर वमं । दुखदा अपार विधि-दुचार-की चमं दम ॥ चित०॥ तजि पुण्य-पाप थाप प्राप, आप में रमा कब राग-प्राग शर्म-बाग-दाघनी शर्मू ॥ चित०॥ दृग-ज्ञान-भान ते मिथ्या अज्ञानतम दमूं। कब सर्ब जोव प्रारिणभूत, मत्त्व सौ छम ।। चित०॥ जल-मल्लालप्त-कल मुकल, सुबल्ल परिन । बल त्रिशल्लमल्ल कब, अटलपद पमं ॥ चित०॥ कब ध्याय प्रज-अमर को फिर न भव विपिन भम। जिन पूर कौल 'दौल' को यह हेतु हो नमू॥चित०॥
-कविवर दौलतराम कृत भावार्थ-हे जिन वह कौन-सा क्षण होगा जब में सम्पूर्ण विभावों का वमन करूंगा और दुखदायी अष्टकों की सेना का दमन करूंगा। पुन्य-पाप को छोड़कर आत्म में लीन होऊगा और कव सुखरूपी बाग को जलाने वालो राग-रूपी अग्नि का शमन करूंगा। सम्यग्दर्शन-ज्ञान रूपी सूर्य से मिथ्यात्व और अज्ञानरूपो अधेरे का दमन करूंगा और समस्त जीवो से क्षमा-भाव धारण करूंगा। मलीनता से युक्त जड़ शरीर को शुक्ल ध्यान के बल से कब छोडगा और कब मिथ्या-माया-निदान शल्यों को छोड़ माक्ष पद पाऊंगा। मैं मोक्ष को पाकर कब भव-वन में नहीं घूमूंगा? हे जिन, मेरी यह प्रतिज्ञा पूरी हो इसलिए मैं नमन करता हूं।