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१८, वर्षे ३७, कि०१
अनेकान्त
का व्यापार है परन्तु व्यापार मे हिंसा होती है वह भी करता जैसे-(१) किसी को झूठी बात कह कर गलत जैसे-जैसे रांग हटता है उससे बचता जाता है। धन की रास्ते लगा दे-सूठा उपदेश दे दे। दूसरे की गुप्त बात तृष्णा नहीं रही, जो है उसमें सतोष है इसलिए व्यापार को प्रगट करके उसे नीचा दिखा दे, उसको नुकसान पहुचा की जरूरत ही नहीं रहती।
दे। (२) खोटे खाता-पत्तर बनाये, झूठा स्टाम्प बना लेवे (३) आरम्भी हिंसा-घर-गृहस्थी के कार्य मे आदि। (३) किसी ने भूल से अपना देना कम बता दिया जीवो की विराधना होती है अब देख शोध कर सब काम उसकी गलती उसको समझावे। यह नहीं कहता उसने कर रहा है झाड़ भी निकाली जाती है तो विवेक से कम बताये। तो कहा-आपके दो सौ ले जाओ। निकाली जाती है। गेहूं को ज्यादा इकट्ठी नही करता (४) किसी की बात चेहरे वगैरह से जानकर प्रगट न करे। जो कुछ मगाता है उसको धूप मे देता है जिससे उनमे हित-मित प्रिय वचन बोले। किसी को चभती बात न जीवो की उत्पत्ति ही न हो। बिनने पर जो जीव निकलते कहे जिससे उसके परिणाम बिगड़ जावें। सत्य भी ऐसा सबसे अलग जगह पर रख देता है परों मे कड़े घर मे सत्य कहे जो अहिंसा से गभित हो । काने को काना कहना नही फैकता। मच्छर को मारने का उपाय नहीं करता सत्य नही है क्योकि इसमे हिंसा गर्भित है। झूठी गवाही परेत यह कैसा प्रयत्न है कि मच्छर उत्सन्न ही न हो। दना आदि कार्य न करे। व्यापार मे भी किसी को खोटे हर तरह से कम से कम आरम्भ करता है और जिन रास्ते नही लगावें, उसके नुकसान होने का मार्ग जानकर सूक्ष्म जीवो को नहीं बचा सकता वहा अपने प्रमाद का न बतावे । असत्य की प्रवृति क्रोध मे, लोभ मे आयेगीराग का दोष मानता है और उस प्रमाद्र को दूर करने का भय से और हसी मे होती है इससे इनसे बचाव करते हैं उपाय करता है।
लोभ कषाय इतनी घट गयी है कि अन्य के धन की चाह (४) बिरोधी हिंसा-अभी तक दूसरे को चलाकर ही नही अन्याय से कमाने का तो सवाल ही नही-न्याय उसको छुरा मारना नहीं चाहता परन्तु अपने देश पर, मार्ग से कमाने में भी कमी करने की चेष्टा करता रहता है अपने घर पर कोई आक्रमण करे तो तलवार लेकर बाहर अन्याय को परिभाषा हरेक व्यापारी वर्ग में अलग-अलग निकलता-देश की रक्षा करता है-घर की रक्षा करता है-डाक्टर, वकील, प्रोफेसर, इजीनियर, नौकरी करने है । अपने सामने अपनी स्त्री का शील कोई लूटे और वह वाला, व्यापारी सभी व्यक्ति अपना व्यापार करते हुए कहे कि मेरे को कषाय नही करना उसको तो कायर कहा भी ऐसा आचरण नही कर जो एक मानव की मानवता गया है वह तो तीव्र कषायी है । कमजोर की रक्षा करना को तिरस्कार करने वाले हो-जहा मानवता रो पड़े अन्याय का प्रतिकार करना यह तीव्र राग नही परन्तु ऐसा आचरण तो सज्जन पुरुष के लायक नही है जहा अन्याय के आगे झुक जाना यह तोव कषाय है। अभी पैसा तो आ सकता है परन्तु मानवता चली जाती है । कोई गृहस्थ में है इसलिए अभी साधु जैसी कषाय नही चली तरह का व्यवहार किसी भी क्षेत्र मे करते हुए चाहे वह गयी। इस प्रकार विरोधी हिंसा मे प्रवृति होते हुए भी सामाजिक क्षेत्र हो, चाहे राजनैतिक, चाहे धार्मिक हो, यही समझे अभी मेरे मे कितना राग है यह मेरा स्वरूप चाहे पारिवारिक देखना यह अगर ऐसा व्यवहार कोई नही, यह उपादेय नहीं। लड़ाई में जीत कर भी यही मेरे साथ करता तो क्या मेरे को सुहावना लगता, क्या समझे कि देखो राग के कारण इस प्रकार की प्रवृति मेरी आत्मा को चोट नहीं पहुंचती। यह विचार, यह करनी पड़ी। यह राग न होता तो किसका देश किसका देखते ही हमे रास्ता दिखा देता है कि हमे दूसरे के साथ घर ? मेरा अपना तो अपना शरीर भी नही है मैं अपने कैसे बोलना चाहिए-कैसा व्यवहार करना चाहिए और स्वरूप स्वभाव में ठहर सकता तो इनसे क्या प्रयोजन था। जहा कषाय कम होती है वहा वैसा अकारण होता ही है ___इसी प्रकार सत्यरूप प्रवृति करे-दूमरे को ठगने का अन्यथा प्रकार नहीं होता। तो सवाल ही नही परन्तु ऐसे कामों में भी प्रवृति नही अब निज में तो चोरी करता ही नहीं परन्तु दूसरे