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________________ हमारा व्यवहारिक प्राचार श्री गालाल जैन यता', कलकत्ता अज्ञानी बाहरी वस्तु का त्याग करता है परन्तु क्या क्या हमारे जीवन से वस्तु की महिमा चली गई है क्या समझ करके त्याग कर रहा है। वह कहता है यह वस्तु वस्तु की Importance नही रही क्या वस्तु Meaningतो मेरी है मैं इसका मालिक हैं परन्तु मुझे इमको छोड less हो गई अगर नहीं तो अभी हम वहीं पर है कोई . फरक नहीं पड़ा। देना चाहिए अगर नही छोडना हू तो नरक जाना पडेगा अगर छोड़ देता है तो स्वर्ग की प्राप्ति होगी। इससे पहले वह तो ज्ञानरूप रहना चाहता है, इसलिए पहले उन चीजों को छोड़ता है जो ज्ञान को मतवाला ज्यादा चीज वहा पर मिल जायेगी-समाज में प्रतिष्ठा बनाने वाली है अपने को भुलाने वाली है वास्तव में शराब हो जायेगी, लोग मुझे त्यागी कहेगे, मेरा नाम हो जायेगा ऐसा मानकर वह त्याग करता है परन्तु अभी भी वस्तु मे नाम ही शराब नही परन्तु वे सभी वस्तु शराब है जिसको आनापना नही गया। एक वह व्यक्ति है जो वस्तुआ मे पीकर जिसको पाकर यह अपने को भूल जाता है मानवता बैठा है और उसमे मे रापना नही है जैसे कोई नुमाइश देख को भूल जाता है इसलिए मानव बनने को उस आचरण से उन चीजो के सेवन से परहेज करेगा जो मानवता को रहा हो । एक वह है जहा वस्तु नही परन्तु मेरापना है। अपने को भुला देती है ऐसी चीज है मांस और मदिरा । अब विचार करता है सच्चा रास्ता क्या है ? ज्ञानी कहता दूसरे जीव का मास खाकर अपना पेट भरे वहां मानवता है भाई ये परवस्तु मेरी नही, मैं गलती से इन्हें अपनाया कहाँ है वह तो पणुता को ही प्राप्त नहीं हुआ परन्तु पशु यह नेरी गलती है अब मुझे मेरी गलती समझ मे आ गयी हो गया यह कहना चाहिए । शराब तो नाम है किसी भी जितना पर का ग्रहण है वह मेरी गलती है और जितना प्रकार का नशा उसके साथ मे शामिल है वह अपने पर छूट गया वह मेरी गलती छूटी है मैंने कुछ किया आपको-मानवता को भुला देता है वह व्यक्ति को अपने नही। अज्ञानी समझ रहा है मैने कुछ किपा है धन को आप से दूर करता है इसलिए ऐसी चीज़ो से बचता है। छोड कर परिग्रह को त्याग करके कोई बड़ी बात की है संसार के समस्त प्राणी मात्र को अपने जसे निज आत्मइसलिए उसे अहकार हुए बिना रहता नही। वत् दिखता है तब यह कैसे चाहेगा मेरे द्वारा किसी जीव ___ अगर यह व्यक्ति यह मानना है कि परवस्तु में, धन को कष्ट हो किसी की विराधना हो उससे बचने के लिए मे, स्त्री मे, पुत्र मे, मकान-महल मे, गाड़ी-मोटरो मे सुख रात्रि भोजन का त्याग, पानी छानकर पीना, अन्य खाने ता है अगर उनमे मुख मान रहा है तो उनको छोड़ते हुए के सामान को देख शोध कर काम में लेना। चलने में, भी ममस्त परिग्रह का त्याग करने पर भी अभी पर छूटा बैठने में किसी की विराधमान हो इसलिए समस्त क्रियाओं नही हे वह पर को पकड़ हुए है बाहर में छोड़ दिया परतु मे स्वच्छ वृत्ति को छोड़ता है। ऐसे व्यापारो से बचता है अतर में पकड़े हुए है। जैसे कोई अमरूद खाने में आनन्द जहां जीवों की विराधना होने का डर होता है। उस तो माने परन्तु डाक्टर के मना करने से नही खाता अथवा हिंसा वृति को भी चार भागों में बाटा हैवायु बढ़ जाने के डर से नही खाता परन्तु उसमें आनन्द (१) संकल्पी हिंसा-किसी जीव का सकल्प करके मानता है तो वस्तु छोड़ते हुए भी परिग्रह नहीं छूटा। एक चीटी को भी नही मारता है यद्यपि उसके चलने में, अमरूद की Importance नही मिटी। वह परिग्रह इसलिए उठने में, व्यापार में, घर के काम-काज में जीवों की छोड़ रहा है कि भोगने से नरक जाना पड़ेगा। नहीं विराधना होती है पर यह चीटी है इसको मार दूं ऐसा भोगगा तो स्वर्ग मिल जायेगा। शास्त्र में मना किया है संकल्प करके एक जीव की भी विराधना नहीं करता। इसलिए नहीं भोगता है त्याग कर देता है परन्तु वस्तु की (२) उबोगी हिंसा-उसे कहते हैं जो व्यापार में महिमा अभी बनी हुई है। क्या यह हमारी दशा नहीं है होती है। यद्यपि ऐसा व्यापार नहीं करता जो बीवहिंसा
SR No.538037
Book TitleAnekant 1984 Book 37 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1984
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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