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________________ २४ ३७ कि.४ अनेकान्त सिरि हेमकित्ति जि हयउ णाणु । तहु पहवि कुमरविसेणु णामु ।। णिग्गंथु दयालउ जइ वरिहु । जि कहिउ जिणागम भउ सुहु ।। तह पहिणि विहउ वह पहाणु । सिरि हेमचन्दु मय तिमिरभाणु ॥ त यह धुरधरु वष पपीणु। वर पोमणांदि जो तवह खीणु ॥ तं पणविवि णियगुरु सीलक्षाणि । णिग्गंथु दयालउ अमियवाणि ॥ सन्धि १, कड़वक २, यमक ४।१३; ३.जि मच्छरु मोह वि वि परिहरियउ । सुहयझाणि जे णियमणु धरिपउ ।। हेमचन्दु आयरिउ बरिट्ठउ । तह सीसु नि तवतेय गरिठ्ठउ । पोमणांधर णादउ मुणिवरु। देवणांदि तछु सीसु महीवरु॥ एयारह पडिमउ घारंतउ । रायरोसमयमोह हणंतउ । सुहझाणे उपसमु भावतउ । णदउ वभलोलु समवतउ ।। सन्धि ७, कड़वक ११, यमक ६-१०; ४. तह पासजिणेदह गिहरवयण । वे पंडिय णिवसहि कणयवएण । गरुवउ जसमलु गुदागणनिहाणु । वीयउ लहुबंधउ तच्चजाणु ॥ सिरि संतिदासु गन्धत्थ जाणु। चच्चइ सिरि पारसु विमयमाणु ॥ वही, यमक ११-१३; ५. सिद्धत अत्थ भावियमणेण । पुरयण सुहयारउ सुरधघुणेण ।। तंह दिद्वउ पुणु सूरसइणिवासु । माणिक्कराजु जिणगुरहं दासु ॥ तेणवि सभासणु कियउ तासु । जो गोठि पचासइ बहुसुयासु ॥ तं जिण अचण पसरिय भुवेण । अविखउ वुह सूरा सांदणोण ।। भो माणिक पडिय, सील अखडिय, ६. अनेकान्त : वर्ष १०, किरण ४-५ पृष्ठ १६० । ७. तहिं णिवसइ पंडिउ सत्थखणि । सिरि जयसवाल कुलकमलतरणि ।। इक्खाकुवस महियलि वरिहु । वुहसूरा सांदणु सुयगरिहु । उप्पएणउ दीवा उरि खण्णु । वह माणिकु णामे वुहहि मएणु ॥ आमेरशास्त्र भडार सम्प्रति जैन विद्या संस्थान, श्री महावीर जी, वे० स० ५२१, ८. रुहियासु वि णामे भणिउ इहु । अरियण जणाह हिय सल्लु कहु ॥ अमरसेन चरिउ, सन्धि १, कड़वक ३, यमक ३; ६. रोहियासिपुरवासि सयललोउ सहणादउ । वही; सन्धि ७, पत्ता ११; १०. वही : सन्धि १, कड़वक ३, यमक ४-१६ और घत्ता३; ११. रइधू ग्रन्थावलि . पासणाहचरिउ : सन्धि १, कड़वक ३; १२. आयरिय परम्परा जैत दुद्ध जिणचन्द वि सूर सिद्ध लहु सुन्तु पिक्त्वि ललियक्त्वरेण मणि माणिविक किउ सुहगिरेण अमरसेनचरिउ : सन्धि ७, कड़वक १०, यमक ८-६, १३. सुपमाए विरुद्धउ भासिउ । तं सरसइ महु खमह भंडारी वीर जिणहो मुहणिण्णय सारी॥ वही : कड़वक १५ यमक ७-८%; १४. णायकुमारचरिउ : वही, पत्र १२३-१२४; प्रशस्ति भाग । १५. हेमपोम आयरिय विसंसि वभज्जु ण गुणगणिण णिहीसि मइ कस वहिय वण्ण धरेप्पिणु कव्वेसु वपणहु लोहवि देप्पणु ॥ अमरसेनचरिउ : सन्धि ७, कड़वक १५, यमक ९-१०; १६. विरयउ एहु चरित्तु सुवुद्धिए। जइयहु अत्थमन्थ हीणउ हुउ ॥ तामहु दोसु भन्दु म गछउ कोई । विणवइ माणिकु कइ इम ।। मझु खमंतु विवह सव्ववि तिम । अण्णु वि अमुणते हीणाहिउ । मइ जलेण जं कायमि साहिउ । त जि खमउ सुयदेवि भंडारी। सिरि णायकुमार चरिउ : वही पत्र १२३-१२४ । समवत सन्धि १, कड़वक ६, यमक ४-७, और धत्ता १;
SR No.538037
Book TitleAnekant 1984 Book 37 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1984
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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