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________________ गुना में संरक्षित 'खो' की जैन प्रतिमाएं मध्य प्रदेश के गुना जिले में कुसुम खो नामक ग्राम किसी समय वैभव सम्पन्न स्थान था परन्तु समय के साथ ही सारा वैभव उजड़ गया केवल कलाकारों की धरोहर खण्डहरों के रूप में बिखरी पडी हुई है। यहां पर वर्तमान मे खन्डहर के रूप मे जैन मंदिरों के अवशेष पड़े हुए हैं । यही से प्राप्त दस जैन प्रतिमायें जैन समाज द्वारा लाकर वर्तमान मे जैन धर्मशाला स्टेशन रोड गुना में संग्रहित किया है । सरक्षित प्रतिमाओं का विवरण निम्नलिखित है :प्रादिनाथ : प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ पद्मासन की ध्यानस्थ मुद्रा में निर्मित है। उनके केस स्कन्ध तक फैने हुए हैं। लम्बे कर्ण चाप एव सिर पर कुन्तलित केशराशि, पीछे प्रभावली का अकन है । वितान में त्रिक्षत्र है। त्रिक्षत्र के दोनो ओर विद्याधर युगल एव अभिषेक करते हुए हाथियो का शिल्पांकन है । तीर्थकर के दोनो ओर भरत और बाहुबली को आराधक के रूप में अकित किया गया है । पाद पीठ पर यक्ष कुबेर एव यक्षणी चक्रेश्वरी का आलेखन है । शान्तिनाथ : कायोत्सर्ग मुद्रा मे शिल्पांकित सोलहवें तीर्थंकर शान्तिनाथ के हाथ त सिर भग्न है। सिर के पीछे अलकृत प्रभावली एवं वक्ष स्थल पर श्री वत्स प्रतीक का अकन है । वितान में त्रिक्षत्र एवं अभिषेक करते हुए गज अकित है । परिकर में जिन प्रतिमा एवं गज व्यालो का आलेखन हे । तीर्थकर के दोनों तरफ परिचारक इन्द्र आदि आसिक रूप से खडित अवस्था में खड़े हैं। पादपीठ पर भगवान शान्तिनाथ का ध्वज लाछन हिरण तथा यक्ष गरुण यक्षणी महा मानसी का आलेखन है। पास मे ही दोनों ओर अंजली हस्त मुद्रा में भक्तगण बैठे हुए है । नेमिनाथ : बाइसवें तीर्थकर नेमिनाथ की प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा मे शिल्पांकित मूर्ति के हाथ व सिर, दांया पैर भग्न है। प्रतिमा मध्य से टूटने के कारण दो खण्डो मे है । भगवान नेमिनाथ के दोनों ओर पद्मासन एवं कायोत्सर्ग मे जिन प्रतिमाओं का अंकन है। पादपीठ दोनो पार्श्व मे चामर धारी परिचारक खड़े हैं। चौकी पर नेमिनाथ का ध्वज लक्षन शख तथा यक्ष गोमेद यक्षी अविका का आलेखन है । पार्श्वनाथ :- तेइसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की चार प्रतिमाएं संग्रहित है जिनमे से दो पद्मासन मे एवं दो कायोत्सर्ग मुद्रा मे हूँ ! प्रथम पद्सासन की ध्यानस्थ मुद्रा में निर्मित तीर्थकर के सिर पर कुन्तनित केशराणि, सिर । नरेशकुमार पाठक के ऊपर सप्तफण नागमोलि है। वितान में त्रिक्षत्र, अभिषेक करते हुए गज, विद्याधर एवं जिन प्रतिमाओं का अंकन है। तीर्थकर पार्श्वनाथ में नागफण मौलि से युक्त परिचारिका बनी है। पादपीठ पर यक्षणी पद्मावती का आलेखन है। दूसरी प्रतिमा सिंह युक्त गोलाकार अलकृत पादपीठ पर पद्मासन की ध्यानस्थ मुद्रा मे शिल्पाकित पार्श्वनाथ के दोनो पैर तथा दाहिना हाथ भग्न है। सिर पर सप्तफण नाग मौलि, वितान में छिनाली दुन्दभिक, अभिषेक करते हुए गज, विद्याधरो का अ कन है। तीर्थंकर के दायें ओर खन्डित अवस्था मे परिचारको का अंकन है। परि कर मे गज व्याल तथा जिन प्रतिमा बनी हुई है। पादपीठ पर यक्ष धरणेन्द्र और यक्षी पद्मावती का आलेखन है । तीसरी मूर्ति मे कायोत्सगं मुद्रा मे निर्मित तीथंकर पार्श्वनाथ के सिर के ऊपर सप्नकण नाग मोलि वितान मे छत्र अभिषेक रहते हुए गन, विद्याधर, परिकर में गज व्याल आदि का आलेखन है। नीचे दायी ओर चवरधारी एव बायी ओर सेबिका का शिल्पाकन है । 1 चौथी कायोत्सर्ग में उपरोक्त प्रतिमा के समान, कुन्तलित केश, कर्णचाप, सप्तकण नाग मौलि, त्रिछत्र अभिषेक करते हुए गज, विद्याधर व्यान आकृति, नावरधारी सेविका आदि का अकन है । केबल गन धरणेन्द्र व यक्षणी पद्मावती का आलेखन ही विशेष उल्लेखनीय है । लखन विहीन तीर्थंकर :--- सग्रह में दो लांछन बिहीन तीर्थकर प्रतिमाये सुरक्षित है। प्रथम पद्मासन की ध्यानस्थ मुद्रा मे अकित तीर्थंकर के दोनो हाथ टूटे हुये है सिर पर कुमलित केशराशि कर्णचाप एव सिर के पीछे प्रभावली का आलेखन है । तीर्थकर के पार्श्व मे चावधारी परिचारक वितान में विछन अघु मन्दिर अलकरण, मालाधारी विद्याधर, व्याली एब जिन प्रतिमाओ का अंकन है । दूसरी कायोत्सर्ग मुद्रा मे निर्मित तीर्थंकर के दोनो हाथ कमर से टूट जाने के कारण दो भागों मे है । सिर पर कुन्तलिकेश, वक्षस्थल पर श्रीवृक्ष प्रतीक अकित है। परिकर मे मयक, गज, व्यान, पादपीठ पर अजलीहस्त मे सेविकाओ का अकन है। जिन प्रतिमा विज्ञान : यह जिन प्रतिमा वितान से सम्बन्धित कलाकृति पर चित्रित दुन्दभिक, अभिषेक करते हुए गज एवं विद्याधर मुगलोंका आलेखन है। केन्द्रीय पुरातन संग्रहालय गुजरी महल, ग्वालियर (म०प्र० )
SR No.538037
Book TitleAnekant 1984 Book 37 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1984
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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