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बिजोलिया अभिलेख [वि. सं. १२२६] में जैनदर्शनविषयक सिद्धांतोंके उल्लेख
श्री कृष्णगोपाल शर्मा
ऐतिहासिक दृष्टि से विजोलिया अभिलेख' (वि. सं. नीतिक इष्टकरों (political expedients) मे समीकृत १२२६) मुख्यतः इसलिए महत्वपूर्ण है कि यह सांभर एवं किया जा सकता है-संधि, विग्रह, यान, आसन, वेधी. अजमेर के चौहानों की वंशावली पर प्रकाश डालता है। वंशावली पर प्रकाश सालमा भाव एवं आश्रय ।
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दिगम्बर जैन सिद्धान्त के अनुसार पृथ्वी के छ: खण्ड अभिलेख का उद्देश्य दिगम्बर जैन लोलाक द्वारा पार्श्वनाथ
हैं (षट्खण्ड)। उनमें से एक आर्य खण्ड है जो गंगा एवं मंदिर की स्थापना को लेखांकित करना है । अभिलेख में ।
सिंधु नदी के मध्य स्थित है। इस खण्ड से बाहर स्थित यत्रतत्र जनदर्शनविषयक सिद्धांतों के प्रच्छन्न उल्लेख भी :
भी सभी प्रदेश म्लेच्छ खंड के अन्तर्गत आते हैं। हैं। उन्ही पर हम विचार करना चाहते हैं।
'षड्दृष्टि' का प्रयोग षड्दर्शन के लिए किया गया अभिलेख के श्लोक ४१ का पाठ है
प्रतीत होता है जो इस प्रकार हैं-लोकायतिक, सौगत, 'षट(ट्वं)डागमबद्ध सौहृदभराः षड्जीवरक्षेश्वराः
सांख्य, योग, प्रभाकर एवं जैमिनीय । षट् (इभे)देद्वियवस्यता परिकरा: षर्मक(क्ल)प्तादराः अभिलेख के श्लोक ४८ का पाठ है[१]षट्वं (ट्खं ) डावनिकीर्ति पालनपरा: ष(षा)ट्गु(गु)
___ 'पंचाचारपरायणात्ममतयः । पंचांगमंत्रीज्व(ज्ज्व)लाः।
पंचज्ञानविचारणासुचतुराः। पंचेद्रियार्थोज्जयाः। श्रीमत्पंचण्य चिंताकराः षट्(इ)दृष्टयंवु(बु)जभास्करा[:]समभवः
गुरुप्रणाममनसः पचाणुशुद्धव्रता पंचते तनया गृहीतवि]पटदे(उदे)शलस्यांगजाः ॥
नयाः श्रीसीयकवेष्ठिनः ।। 'षटखंडागम' से सम्भवत: अभिप्राय सृष्टि के छ: 'पंचाचार' हैं-दर्शनाचार, ज्ञानाचार, वीर्याचार, खन्डों से सम्बद्ध आगम साहित्य से है। ये छः खन्ड छः ।। चरित्राचार एवं तपाचार जैसा कि नेमिचन्द्रकृत द्रव्यसंग्रह द्रव्योंके आधार पर विभाजित है-जीव, पुद्गल, आकाश,
के अध्याय तीन की माथा ५२ से स्पष्ट है :काल, धर्म और अधर्म।
दसणणाणपहाणे वीरियचारित्रवरतवायारे ।
अप्प परं च मुंजइ सो आयरिओ मुणी क्षेत्रो॥ षड्जीव है-पृथ्वी, अप, तेजस, वायु, वनस्पति
'पंचांग मंत्र' से सम्भवतः अभिप्राय उपासना की एवं त्रस । प्रथम पांच स्थावर है एवं एकान्द्रय हैं, स प्रक्रिया से सम्बद्ध पांच मत्र युक्त चरणों से है-आह्वान, उस जीव को कहा जाता है जिसके पास एक से अधिक स्थापन, संनिधिकरण, पूजन एवं विसर्जन । इन्द्रियां हैं।
पंचज्ञान की जानकारी इस सूत्र से मिलती है-मतिइंद्रियों पांच है-स्पर्शरसनध्राणचक्षुधोत्राणि किन्तु शतावधिमन. पर्ययकवलानि ज्ञानम । उपर्यक्त श्लोक में उल्लिखित 'षड्-इन्द्रिय' में 'मनस 'जिसे 'पंच इंद्रियार्थ' हैं-स्पर्शरसगंधवर्णशब्दास्तदा।' ईषदिन्द्रिय माना जाता है, शामिल प्रतीत होता है।
पचगुरु है-अहंत, सिद्ध, आचार्य उपाध्याय एवं सर्व एक श्रावक के 'षट्कर्म का विवरण उमास्वामी साधु जैसाकि बहुश्रु त जैनमंत्र से ज्ञात होता हैश्रावकाचार के इस श्लोक से मिलता है
णमो अरहंताणां णमोसिखाणं णमो आइरीयाणां । देवपूजा गुरुपास्तिः स्वाध्यायः संयमस्तपः ।
णमो उवज्झायाणं णमो लोए सब साहणं ॥ दानं चेति गृहस्थानां षट्कर्माणि दिने-दिने ।
'पंचव्रत' हैं-हिंसानृतस्तेयाब्रह्मपरिग्रहेभ्यो विरति'षड्गुण' का क्या अभिप्राय है, कह पाना मुश्किल वतम् । -५०६, गोविन्दराजियों का रास्ता है। श्री अक्षयकीर्ति व्यास के अनुसार इसे छः मान्य राज
चांदपोल बाजार, जयपुर १. यू.जी०सी० रिसर्च फैलो, इतिहास एवं भारतीय है। देखें इपिग्राफिया इंडिका, vol, xxvi, पृ०.
संस्कृति विभाग राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर । ८४-१०२. २. यहाँ प्रस्तुत पाठ एवं उसकी व्याख्या ५० असयकीति ३. वही, पृ० १०७, पादटिप्पणी १.
व्यास के पत्र "बिझोली राक इन्सक्रिप्सन आव ४. उमास्वामी, तत्वार्थसंग्रह, अध्याय १ सूत्र १. चाहमान सोमेश्वर : वि. स. १२२६" पर आधारित ५. वही, अ. २, सू० २० ६ . वही, अ.७, स्.१