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भानुकोति
२०, वर्ष ३६, कि०२ के श्रेष्ठि ने अपनी अपार सम्पत्ति का उपयोग किया था। भट्टारक परम्परा:१३वी शताब्दी में पेथडशाह ने यहां एक जिन मन्दिर का नागौर की परम्परा में निम्न भट्टारक हुएनिर्माण कराया था। तपागच्छ की एक शाखा नागपुरिया १. भट्टारक रत्नकीर्ति संवत् १५८१ का उद्गम भी इसी नगर से माना जाता है। १५वीं
, भुवनकोति
॥ १५८६ १६वी शताब्दी में यहाँ कितनी ही श्वेताम्बर मूर्तियों की
धर्मकीति
, १५६० प्रतिष्ठाएं हुई। उपदेशगच्छ के कक्कसूरि ने ही यहाँ शीतल
विशालकीति नाथ के मन्दिर की प्रतिष्ठा कराई थी।
५. , लक्ष्मीचन्द भट्टारकीय वि० जन शास्त्र भण्डार की स्थापना एवं विकास- ६. , सहस्रकीर्ति १६३१ संवत् १५८१, श्रावण शुक्ला पचमी को भट्टारक रत्न
नेमिचन्द्र
१६५० कीति ने यहाँ भट्टारकीय गादी के साथ ही एक बृहद् ज्ञान
यशःकीति १६७२ भण्डार की स्थापना की। जिनचन्द्र के शिष्य भट्टारक
११६० रत्नकीर्ति के पश्चात् यहाँ एक के बाद दूसरे भट्टारक होते १०. ॥ श्रीभूषण
१७०५ रहे । इन भट्टारको के कारण ही नागौर मे जैन धर्भ एवं ११. , धर्मचन्द्र
१७१२ साहित्य का अच्छा प्रचार प्रसार होता रहा। मागौर का १२. , देवेन्द्रकीर्ति १७२७ ग्रन्थ भण्डार सारे राजस्थान में विशाल एव समृद्ध है। १३. सुरेन्द्रकीर्ति
१७३८ पाण्डुलिपियो का ऐसा विशाल संग्रह राजस्थान में कही नही १४. , रत्नकीति द्वितीय , मिलता है। यहाँ करीब २० हजार पाण्डुलिपियों का संग्रह १५. ज्ञानभूषण है जिनमें दो हजार से अधिक गुटके है। यदि गुटकों में
चन्द्रकीर्ति संग्रहीत ग्रन्थों की संख्या कम की जावे तो इनकी संख्या
पद्मनन्दि भी १०,००० से कम नही होगी। भण्डार में मुख्यतः
सकलभूषण प्राकृत, अपभ्रश, संस्कृत, हिन्दी एवं राजस्थानी भाषा में
सहस्रकीर्ति निबद्ध कृतियां सर्वाधिक संख्या में है। अधिकांश पाण्डु
अनन्तकीर्ति लिपियाँ १४वी शताब्दी से १९वी शताब्दी तक की हैं २१. , हर्षकीर्ति जिससे पता चलता है कि गत १५० वर्षों से यहां ग्रन्थ २२. , विद्याभूषण संग्रह की ओर कोई ध्यान नही दिया गया। इससे पूर्व २३. , हेमकीर्ति यहाँ ग्रन्थ लेखन का कार्य पूर्ण वेग से होता था। सम्पूर्ण २४. सेमेन्द्रकीर्ति भारतवर्ष के शस्त्रागारों में सैकड़ों ऐसे ग्रन्थ हैं जिनकी २५. , मुनीन्द्रकीर्ति पाण्डुलिपियाँ नागौर में ही हुई थी। प्राकृत भाषा के ग्रंथों २६. , कनककीर्ति में आचार्य कुन्दकुन्द के समयसार की यहाँ सन् १३०३ २७. , देवेन्द्रकीर्ति की पाण्डुलिपि है, इसी तरह मूलाचार की सन् १३३८ भट्टारक देवेन्द्रकीर्ति नागौर गादी के अन्तिम भट्टारक की पाण्डुलिपि उपलब्ध होती है। कुछ अनुपलब्ध ग्रन्थों थे। नागौर गादी का नागपुर, अमरावती, अजमेर आदि में वराग-चरिउ (तेजपाल) वसुधीर चरिउ (श्री भूषण), नगरों में भी सम्बन्ध रहा है तथा महाराष्ट्र के अन्य नगरों सम्यक्त्व कौमुदी (हरिसिंह) णेमिणाह चरिउ (दामोदर), मे जहाँ मारवाड़ी व्यापारी रहते थे वहां भी वे जाया जगरूपविलास (जगरूप कवि) कृपणपच्चीसी (कल्ह) करते थे। भट्टारुक देवेन्द्रकीर्ति के पश्चात् नागौर ग्रन्थ सरस्वती लक्ष्मी सवाद (श्रीभूषण) क्रियाकोश (सुखदेव) भण्डार बन्द पड़ा रहा। अनेक वर्षों के बाद पं० सतीशके नाम उल्लेखनीय है।
(शेष पृ० २५ पर)