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नागौर तथा उसमें स्थित भट्टारकीय वि० मैन अन्य भगार की स्थापना एवं विकास का संक्षिप्त इतिहास
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भट्टारक द्वारा संवत् १३९० पोश सुदी १५.को दिल्ली में उपलब्ध होती हैं। पं० मेधावी ने नागौर मे ही रह कर वस्त्र धारण करने की प्रथा का श्री गणेश हुआ। उसके संवत् १५४१ में धर्मसंग्रह श्रावकाचार की रचना की थी।' पूर्व वे सब नग्न रहते थे। इन भट्टारकों का मुस्लिम इसमें फिरोजखान की न्यायप्रियता, बीरता और उदारता शासकों (बादशाहो) पर अच्छा प्रभाव था इसलिए उन्हें
की प्रशंसा की है। मेघावी भट्रारक जिनचन्द्र के शिष्य बिहार एवं धर्म प्रचार की पूरी सुविधा थी। यही नहीं थे । इस ग्रन्थ की प्रतियां भारत के सभी जैन ग्रन्थ भंडारों मुस्लिम बादशाहो ने इनकी सुरक्षा के लिए समय-समय मे प्रायः पायी जाती है। इसी वश के नागौरीखां नवाब पर कितने ही फरमान निकाले थे। उसी समय से दिल्ली के दीवान परबतशाह पाटनी हुए थे जिनका शिलालेख श्री गादी के भट्टारक नागौर आते रहे और संवत् १५७२ मे दिगम्बर जैन बीस पन्थी मन्दिर मे लगा हुआ है। इन नागौर मे एक स्वतन्त्ररूप में भट्टारक गादी की स्थापना परबतशाह पाटनी ने एक बेदी बनवाई तथा उसकी प्रतिष्ठा की गयी।
बडी धूमधाम से करायी थी ऐसा शिलालेख में लिखा है। ___ सन् १४०० ई० के बाद नागौर को स्वतन्त्र रियासत चूने की पुताई हो जाने से पूरा लेख पढने मे नही आता स्थापित हुई जिसका सुल्तान' फिरोजखान प्रथम सुल्तान है। था जो गुजरात के राजवश' से सम्बन्धित था। जिसका सुल्तानों के शासन के पतन के पश्चात् नागौर पर प्रथम शिलालेख १४१८ ए० डी० का मिलता है। सुल्तान मुगल सम्राट अकबर का अधिकार हो गया। स्वय अकबर फिरोजखान के समय मे मेवाड के महाराजा मोकल ने भी नागौर आया था। उसने गिनाणी तालाब के किनारे नागौर पर आक्रमण किया तथा डीडवाना तक के प्रदेश दो मीनारो वाली मस्जिद बनवाई जो आज भी अकबरी पर अपना अधिकार कर लिया। मोकल के लौटने पर मस्जिद के नाम से प्रसिद्ध है। इसमे अकबर के समय का शम्मखा के पुत्र मुजाहिदखां ने इस क्षेत्र पर अपना अधि- फारसी भाषा का शिलालेख लगा हुआ है। कार कर लिया। शम्मखा ने शम्स तालाब बनवाया। जोधपुर नरेश महाराजा गजमिह के दो पुत्र थे-बड़े शम्स तालाब के किनारे अपने गुरू की दरगाह तथा अमरसिंह तथा छोटे जसवन्तसिंह । अमरसिंह बड़े अक्खड मस्जिद बनवाई। इसी दरगाह के प्रांगण मे ही शम्सखां निर्भीक और वीर थे। जोधपुर के सरदार अमरसिंह से तथा उनके वंशजो की कब्र बनी हुई हैं। इस तालाब के नाराज हो गये। उन्होंने महाराजा से मिलकर अमरसिंह चारों ओर परकोटा बना हुआ है।
को देश निकाला दिला दिया। अमरसिंह शाहजहाँ के महाराजा कुम्भा ने भी एक बार नागौर पर आक्र
दरबार में गये, शाहजहाँ ने उनकी वीरता पर खुश होकर मण किया था। जिसका शिलालेख गोठ मांगलोद के माता
नागौर का प्रदेश इनको जागीर में दे दिया। जी के मन्दिर मे लगा हुआ है। महाराजा कुम्भा ने राज्य अमरसिंह के पश्चातू शाहजहाँ ने इन्दरसिंह को को वापस पुराने सुल्तान को ही सौंप दिया। इसी वश में नागौर का राजा बना दिया । इन्दरसिंह ने शहर मे अपने मुजाहिदखाँ, फिरोजखा, जफरखां, नागौरीखा आदि सुल्तान रहने के लिए महल बनवाया जिसका उल्लेख महल के हुए । ये सुल्तान मुस्लिम होते हुए भी हिन्दू तथा जैनधर्म दरवाजे पर स्थित लेख में मिलता है। के विरोधी नही थे। इनके राज्यकाल मे दिगम्बर जैन सैकड़ों वर्षों तक मुस्लिम शासन में रहने के कारण भट्टारक तथा साधुओ का बिहार निर्बाध गति के साथ धर्मान्ध शासको ने यहां के हिन्दू एव जैन मन्दिरो को खूब होता था । उस समय जैनधन के बहुत से ग्रन्थो की रच- ध्वस्त किया। मन्दिरो को मस्जिदो में परिवर्तित किया नायें एव लिपि करने का कार्य सफल हुआ। तत्कालीन गया फिर भी नागौर जैन संस्कृति का एक प्रमुख नगर प्रसिद्ध भट्टारक जिनचन्द्र (संवत् १५०७ से १५७१) का माना जाता रहा । सिद्धसेन सूरि (१२वीं शताब्दी) ने भी यहाँ आगमन हुआ था जिनके द्वारा १५६४ मे प्रति- इसका प्रमुख तीर्थ के रूप में उल्लेख किया है। जैनाचार्य ष्ठित सैकड़ो मूर्तियाँ सम्पूर्ण देश के बड़े जैन मन्दिरो मे हेमचन्द्र सूरि के पट्टाभिषेक के समय यहाँ के घनद नाम