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नागौर तथा उसमें स्थित भट्टारकीय दि० जैन ग्रंथ भंडार की स्थापना एवं विकास का संक्षिप्त इतिहास
0 डॉ० पी० सी० जैन नागौर का ऐतिहासिक परिचय
अणहिलपुर पाटन (गुजरात) के शासक सिद्धराज वर्तमान मे नागौर राजस्थान प्रदेश का एक प्रान्त जयसिंह ने १२वी शताब्दी में इस क्षेत्र पर अपना अधिहै जो उसके मध्य में स्थित है। पहिले यह जोधपुर का
कार कर लिया। जो भीमदेव के समय तक बना रहा। प्रमुख भाग था । नागौर इस जिले का प्रमुख नगर है तथा
महाराजा कुमारपाल के गुरू प्रसिद्ध जैनाचार्य कलिकाल यहाँ की भूमि अर्द्ध रेगिस्तानी है।
सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्र सूरि का पट्टाभिषेक सम्वत् ११६६ की
बैसाख सुदी ३ को यही पर हुआ था। रामायण कालीन अनुश्रुति के अनुसार पहिले यहाँ
इसके बाद यह नगर तथा क्षेत्र वापिस चौहानो के पर समुद्र था। लेकिन रामचन्द्र जी ने अग्नि बाण चला
मे चला गया। प्राचीन समय से ही यहाँ पर छोटा गढ कर उस समुद्र को सुखा दिया। महाभारत के अनुसार
बना हुआ था। जिसके खडहर आज भी उपलब्ध होते है, इस प्रदेश का नाम कुरू-जागल देश था । मौर्य वश का
चौहानो ने अपने मध्य में होने के कारण तथा लाहौर से शासन भी इस क्षेत्र पर रहा । विक्रम की दूसरी शताब्दी
अजमेर जाने के रास्ते में पड़ने के कारण यहा पर दुर्ग से पांचवी शदी तक यह नागौर का अधिकांश क्षेत्र नाग
बनाना आवश्यक समझा क्योंकि उस समय तक महमूद वशी राजाओ के अधीन रहा। उसी समय से नागौर
गजनवी के कई बार आक्रमण हो च के थे। नगर मे नागपुर, नागपट्टन, अहिपुर, भुजगनगर, अहिछत्रपुर आदि
विशाल दुर्ग का निर्माण वि० स० १२११ मे पृथ्वीराज विभिन्न नामो से समय-समय पर जाना जाता रहा ।
तृतीय के पिता सोमेश्वर के शासन काल मे बनना प्रारम्भ कुछ समय के लिए इस प्रदेश पर गौड़ राजपूतों का शासन
हआ था जिसका शिलालेख दरवाजे पर आज भी सुरक्षित रहा । गौड़ राजपूत कुचामन, नावां, मारोठ की ओर चले गए इसलिए वह पूरा प्रदेश गौड़वाटी के नाम से जाना
सन् १९९३ मे पृथ्वीराज चौहान (तृतीय) की हार के जाने लगा।
बाद यहां पर दिल्ली के सुल्तानो का अधिकार हो गया। बिक्रम की ७वी शताब्दी मे यहां पर चौहानों का उसी समय यहा पर प्रसिद्ध मुस्लिम सन्त तारकीन हुआ शासन हुआ। चौहानों की राजधानी शाकम्भरी (सांभर) जो अजमेर वाले ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का शिष्य था। थी। इनके शासनकाल में यह क्षेत्र सपादलक्ष के नाम से इसकी दरगाह पर परकोटे के बाहर गिनाणी तालाब के प्रसिद्ध हआ । यही कारण है कि आज भी स्थानीय लोग पीछे की तरफ बनी हुई है। इनका उर्स के अवसर पर इसे सवालक्ष कहते है।
अजमेर के मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह से चादर कब ____ इसी बीच कुछ समय के लिए यह नगर प्रतिहारो के पर ओढ़ने के लिए आती है। इसी समय से नागौर अधीन आ गया । जयसिंह सूरि के धर्मोपदेश की प्रशस्ति मुस्लिम धर्म का भी केन्द्र बन गया। मे मिहिरभोज प्रतिहार का उल्लेख मिलता है। जयसिंह सन् १३२३ के एक शिलालेख के अनुसार इस क्षेत्र सूरि ने नागौर में ११५ वि० स० मे इस ग्रन्थ की रचना पर देहली के शासक फिरोजशाह तुगलक का शासन था। की।
फिरोजशाह के शासन में ही दिगम्बर जैन सम्प्रदाय के