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________________ विद्यानुवाद और कैंसर रोग -वैद्य प्रभुदयाल कासलीवाल, भिषगाचार्य जैन साहित्य एक सर्वांग साहित्य है। अनेक महा- बढ़ता जाता है लेकिन अग्नि किरणे शमन नहीं होती काव्य जैन कवियों द्वारा लिखे हए मिलते है। ज्योतिष- क्योकि अग्नि किरणे कार्य हैं कारण नही, कारण तो वह शास्त्र मे चन्द्र प्रज्ञप्ति और सूर्य प्रज्ञप्ति जैसे महान ग्रन्थ अग्निपिण्ड है जिसका उद्गम किसी अन्य स्थान पर हुआ जेन आचार्यों द्वारा लिखे गये हैं। गणित मे तो ऊचे से है। दाहमान क्रिया के शमन हेतु प्रकृति अपनी सम्पूर्ण ऊचा साहित्य जैन आचार्यों की ही देन है। ठीक इसी तरह शक्ति लगा देती है पर रोग पर विजय नहीं मिलती। यही आयुर्वेद मे भी जैन विद्वानो द्वारा अनेक ग्रन्थों का निर्माण कारण है कि कैसर रोग की प्रन्थि बढ़ती जाती हैं और किया गया है । वाग्भट जो कि आयुर्वेद का महान् ग्रन्थकार सम्पूर्ण शरीर दुर्बल होता जाता है। अग्नि किरणें आगेहुआ है वह एक जैन विद्वान था, इसको अनेक तथ्यों द्वारा आगे और ग्रन्थि पीछे-पीछे चलती रहती है। यदि अग्निप्रमाणित किया जा सकता है । मत्र शास्त्र मे विद्यानुवाद पिण्ड का नाश हो जावे तो किरणें रुक सकती हैं अन्यथा जैसे महान् अन्थ जैन शास्त्र भण्डारों में विद्यमान है। नहीं । विद्यानुवाद में कैंसर रोग का वर्णन किया गया है, अग्नि किरणें इतनी सूक्ष्म होती हैं कि इन्हें देखा जाना ग्रन्थकार ने कैसर रोग का नाम ज्वालागर्दभ दिया है। भी सम्भव नही है, फिर भी बहुत सूक्ष्म अध्ययन, प्रश्नों इस रोग का विश्लेषण इस प्रकार किया है द्वारा लक्षणों के द्वारा अग्निपिण्ड का स्थान भी मालूम किया जा सकता है। ___ज्वाला गर्दभ मनुष्य के शरीर में प्रकट होकर मानों ज्वाला गर्दभ आठ प्रकार का होता है :मृत्यु का आह्वान करता है। यह रोग वेगो को रोकने से, (१) कपिल, (२) पिंगल, (३) विजय, (0) कलहप्रकृति के प्रतिकूल पदार्थों का सतत सेवन, ईर्ष्या, द्वेष, प्रिय, (५) कुम्भकर्ण, (६) विभीषण, (७) चन्द्रहास, (0) काम, मायाचारी आदि कषायो के कारण मनःस्थिति का . दर्दुर। सन्तुलन अधिक समय तक बिगड़ जाना अधिक धूम्रपान १. कपिल---यह ज्वालागर्दभ स्तन या उदर में होता अथवा ऐसे पदार्थों के सेवन से जो शरीर मे अग्नि पिण्डो है। का निर्माण करते हों-सेवन से उत्पन्न होता है। २. पिंगल-यह ज्वाला गर्दभ शिर में निकलता है। उपरोक्त कारणो से शरीर के किमी भी भाग में एक तथा इसकी चिकित्सा निम्न प्रकार हैअग्निपिण्ड का निर्माण होता है, उस अग्निपिण्ड से आक की जड, प्रियंग, नाग केसर इन तीनों दवाइयों अग्नि किरणें शरीर के उसी अग में जहाँ वह को चावल के पानी से पीमकर सेवन करे नथा इनका ही अग्निपिण्ड पैदा हुआ है, अथवा किसी अन्य स्थान पर लेप करें। अग्निपिण्ड से प्रकट होने वाली किरणें शरीर के उस २ ३. विजय-नेत्र में पैदा होने वाले ज्वाला गर्दभ को अंग को जलाने लगती हैं। अग्नि किरणें प्रतिक्षण शरीर विजय नाम से पुकारते हैं । कनेर की जड़ को चावलों के के उस अंग को जलाती रहती हैं, बम यह ही ज्वालागर्दभ पानी में पीसकर लेप करें तथा सेवन करें। नाम का रोग होता है, इन दाहमान, किरणों की क्रिया- ४. जपादि स्थानों में पैदा होने वाले ज्वाला गर्दभ शक्ति को शमन करने के लिए प्रकृति एक ग्रन्थि का निर्माण का नाम कलह प्रिया नाम से कहा गया है। करती है, दाहमान क्रिया के शमन हेतु प्रन्थि का आकार (शेष पृ. २८ पर)
SR No.538036
Book TitleAnekant 1983 Book 36 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1983
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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