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________________ ओम् अहम् H ALOLITalk परमागमस्य बीजं निषिद्धजात्यन्धसिन्धुरविधानम् । सकलनयविलसिताना विरोधमषनं नमाम्यनेकान्तम् ॥ वर्ष ३६ वीर-सेवा मन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२ वीर-निर्वाण सवत् २५१०, वि० स० २००० बर-दिसम्बर १९८३ जिनवाणी-महिमा नित पीजो धी-बारी। जिनवानि सुधासम जानके मित पीजो धी-धागे॥ बोर-मुखारविन्द तें प्रगटी, जन्म जरा गव-टारी। गौतमादिगुरु उर घट व्यापी, परम सुरुचि करतारी।। सलिल समान कलित, मलगंजन, वृष-मन-रंजनहारी। भंजन विभ्रमधूलि प्रभंजन, मिथ्या जलद निवारी॥ कल्यानकतर उपवन धरनो, तरनी भवजल-तारी। बन्धविवारन पैनी छनी, मुक्ति नसनी सारी॥ स्वपरस्वरूप प्रकाशन को यह, भानु-कला अधिकारी। मुनिमन-कुमुविनि-मोवन-शशिभा, शमसुख सुमन सुवारी।। जाको सेवत, बेबत निजपद, नसत प्रविद्या सारी। तीन लोकपति पूजत जाको, जान त्रिजग हितकारी।। कोहि नीम सौ महिमा जाको, कहि न सके पविधारी। 'बोल'पल्पमति केमको यह प्रथम उपारनहारी।।
SR No.538036
Book TitleAnekant 1983 Book 36 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1983
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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