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________________ बाहुबली-कुम्भोग वि० क्षेत्र का संकट दिगम्बरत्व पर संकट है। यहां प्रातसाथियों नेव-धर्म और गुव सभी का अपमान किया है। सरकार इसकी न्यायिक जांच कराकर अपराधियों के साथ भारतीय संविधान के अनुरूप व्यवहार करे और ऐसी व्यवस्था बनाये कि देश में समीधर्म-जाति-सम्प्रदाय के लोग अपनी मर्यादानों में सुरक्षित रह सकें। दिनों को भी प्रस्तुत प्रसंग में मुनि श्री विद्यानंद जी महाराज के निर्देश में प्रागे बढ़ना चाहिए। -बीर सेवा मन्दिर - अपनी-बात इस अंक के साथ 'अनेकान्त' का ३६वां वर्ष पूर्ण हो रहा है। हम उन सभी लेखकों, पाठकों और सहायकों का अभिनन्दन करते हैं जिन्होंने इस पुण्य कार्य में हमें सहयोग दिया है। हम यह भी जानते हैं कि हमसे गल्तियां भी हुई होंगी, जिन्हें सभी ने क्षमा किया है-कोई किसी प्रकार का उलाहना नहीं बाया। सच तो यह है कि यह कार्य बड़ी जिम्मेदारी का है और सभी के सहयोग से पूरा होता है। हमारा सम्पादक मण्डल पूरा ध्यान रखता है और समय-समय पर निदेश देता रहता है। संस्था की कार्यकारिणी का भी इधर ध्यान है। हमें खुशी है कि विद्वान पाठकों ने 'अनेकान्त' को सराहा है-बहुन से पत्र भी भेजे हैं। सभी का प्रकाशन आत्म-प्रशंसा न समझ लिया जाय इस भय से हम कुछ की कुछ पक्तियां ही उद्धृत कर रहे हैं। तपाहि१. अनेकान्त में 'विचारणीय प्रसंग', पढ़कर हर्ष हुआ। वस्तुतः लेख आगमोक्त, युक्ति-आगम-तकं से पूर्णतः संपुष्ट, विचारोत्तेजक, मध्ययन खोज व शोधपूर्ण हैं। ऐसे लेखों द्वारा आप सचमुच में आगम-मार्ग विलोपता की रक्षा कर रहे हैं।' -स्वामी श्री भ. चारुकीति जी पंडिताचार्य, महविद्री २. 'शान्त रस' के सबंध में विचारणीय-प्रसंग' तथा 'जरा-सोचिए' के अन्तर्गत विचारोत्तेजक टिप्पणियां युक्ति-युक्त एवं अच्छी लगी।' -डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन, मखनऊ 1. 'आप अनेकान्त में चिंतन के रूप में जो विचार दे रहे हैं, वे काफी सुलझे हुए और नवीन चेतना को जगाने वाले हैं।' -डॉ. दरवारीलाल कोठिया, वाराणसी ४. 'अनेकान्त ने अपना रूप निखारा है। विद्वत्तापूर्ण लेख तथा 'जरा-सोचिए' की सामयिक टिप्पणियां बड़े अच्छे होते हैं।' -डॉ. नन्दलाल जैन, रीवा हम पाठकों से निवेदन कर दें कि 'अनेकान्त' की नीति व्यक्तिगत किसी विवाद में पड़ने या खडन मंडन की नहीं है। इसके उद्देश्य सभी भांति जैन-आगमा सस्कृति और उसके मार्ग-उद्घाटन, उसकी रक्षा तथा प्रचार तक केन्द्रित हैं। अतः चिन्तन के रूप में जहाँ, जैसा जो मिलता है, लेखकों के माध्यम से पाठकों के विचारार्थ पहुंचा दिया जाता है और उसके जिम्मेदार लेखक स्वयं होते हैं। फिर भी जानेअनजाने किसी लेख से किन्हीं पाठकों को कोई ठेस लग जाय तो वे उसे सहज-भाव में ग्रहण कर हमें समा ही करते रहें हम उन्हीं के अपने है। धन्यवाद! -सम्पादक
SR No.538036
Book TitleAnekant 1983 Book 36 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1983
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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