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________________ निमित्ताधीन दृष्टि श्री बाबूलाल जैन, कलकत्ता वाले कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि परवस्तु हमारा बिगाड़ सही बात यह है कि हमने स्त्री को देखकर राग कर लिया करती हैं जैसे स्त्री राग कर देती है इसलिए राग गलती हमारी है। अगर अपनी गलती समझेंगे तो अपने से बचने को स्त्री को छोड़कर जंगल में चले जाते हैं परंतु को ठीक करने की चेष्टा करेंगे। वह मन की स्त्री तो सूक्ष्म रूप सजाकर मन मे प्रविष्ट व्यवहार में भी यही कहा जाता है कि कोई चिढ़ता हो जाती है जिसको पहचानना भी मुश्किल हो जाता है, है नो लोग चिढाने लगते हैं तो कहा जाता हैं कि चिढ़ाने समझना यह है कि क्या स्त्री राग कराती है। एक स्त्री वालों को चिढाने दे तू चिढना छोड़ दे। चुपचाप अपने रास्ते जा रही है उसको यह भी मालूम बाहरी निमित्त कोई प्रेरणा नही देते परन्तु हम उसके नहीं है कि उसे कोई देख रहा है। और किसी ने उसे देखा साथ जिस रूप का सम्बन्ध स्थापित करते हैं वैसी ही पर और राग किया फिर कहता है कि स्त्री ने राग करा दिया णति हो जाती है वजन हमारे सम्बन्ध स्थापित करने पर यह तो सरासर झूठ और बेईमानी है। अगर हम यही है। हम सही तरह से भी देख सकते हैं । कोई आदमी समझते रहे तो दोष तो दूसरे का हैं उसको ठीक करने हाथ का थप्पड दिखा रहा है हम उसे देख कर अनदेखा की चेष्टा करेंगे परन्तु अपने को ठीक कैसे कर सकते है। भी कर सकते हैं, हम उसे पागल भी समझ सकते हैं, हम यह भी सोच सकते हैं कि यह मेरे को थप्पड़ दिखाता है। (पृष्ठ २१ का शेषांश ) यह सब बातें हमारे पर निर्भर है कि हम कैसे हैं ? अगर २६. दे. भारत के दि० जैनतीर्थ ३४१ । शात परिणामी हैं तो देखा अनदेखा कर देंगे अगर तीव्र २७. वही। परिणामी हैं दो क्रोध मे पागल हो जायेंगे। २८. एंशिएंट ज्याग्राफी आफ इंडिया (कनिषम) पृ० ५१७ इसलिए ऐसा समझना चाहिए कि पर वस्तु ने राग २९. दे० स्वेनच्चांग (जगमोहन वर्मा) पृ० १२६ । नही कराया परन्तु उसका अवलम्बन लेकर मेरा भीतर १०. दे. भारत के दि० जैन तीर्थ ३।४१।। का रूप बाहर मे आ गया। अगर भीतर न होता तो बाहर ३१. दे० संक्षिप्त जैन इतिहास (डा. कामताप्रसाद जैन) कहां से आता । एक कुये मे मैला पडा है हमने बाल्टी डाली पृ० १९१-२। बाल्टी ने मला पैदा नहीं किया परन्तु अगर मैला था तो ३२. वही। बाल्टी मैले से भरकर आ गई । बाल्टी का अवलम्बन ३३. दे० मारत के दि० जैनतीर्थ २।१६७ । लेकर जो भीतर था वह बाहर आ गया । दोष बाल्टी का ३४. दे. भारत के दि० जैन तीर्थ २।३७ । नहीं । हमारे भीतर क्या पड़ा है हम कैसे हैं इसका है। ३५.३० वही ३१७१। एक साधु जंगल में बैठा है, एक राजा आता है यह ३६. दे. वही ३१६६ । उसके गले में एक मरा हुआ सांप डाल देते हैं। रात को ३७. तिलोयपण्णत्ति १२६५। अपनी रानी से कहते हैं मैंने ऐसा किया है। रानी राजा ३८. दे. भारत के दि. जैन तीर्थ ३११८ । को लेकर साधु के पास आती है, लाखों चीटियां साधु के ३९. विविध तीर्थ कल्प पृ० । शरीर को चिपक जाती हैं रानी बड़ी सावधानी से चीटियां ४०. विशेष से लिए देखिये-शोध पत्रिका (आरा ना० अलग करती है साधु ध्यान से हटते हैं और दोनों को प्र० स०) १२५ आशीर्वाद दे देते है । सवाल है कि दोनों को समान आशी
SR No.538036
Book TitleAnekant 1983 Book 36 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1983
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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