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________________ बिहार में जैन धम: अतीत एवं वर्तमान सन् १९५८ से प्राकृत भाषा एवं जैन-विद्या को अपने पाठ्यक्रम मे स्वीकृत किया । वर्तमान में बिहार इण्टरमीडियट एजुकेशन कौसिल ने भी उसे इण्टरमीडियट स्तर तक स्वीकृत किया है, जिसके फलस्वरूप बिहार के सभी विश्वविद्यालयो में इण्टर कक्षा तक छात्र-छात्रायें उसका अध्ययन कर सकते है । इस प्रकार १२वी २०वी सदी में बिहार में जैन धर्म ने अपने अतीतकालीन गौरव को प्राप्त करने का यथासम्भव प्रयत्न किया है। उनके अनुयायियो ने एक ओर अपने सत्यनिष्ठ आचरण, शुद्ध सात्विक जीवन, शाकाहारी मात्विक ज्ञान व मधुर व्यवहार एवं उदार आचरण से जहां स्थानीय जन-जीवन को प्रभावित किया तो वही राष्ट्रिय स्वतन्त्रता आन्दोलन को सफल बनाने तथा स्वातन्त्र्योत्तर काल मे राष्ट्रिय एवं प्रान्तीय आधिदैविक एवं आधिभौतिक विषम समस्याओं के समाधान हेतु भी उन्होने तन, मन एव धन मे सदा सदा सक्रिय योगदान दिया। अपने गुरुवार्थ एवं परिश्रम से जहा एक ओर विपुल धनार्जन किया, वही उन्होंने अनेक सर्वापयोगी धर्मशालाओ सन्दर्भ-सूची १. दे० जैनेन्द्र तिद्धान्तकोप ३।५८१-८३ । २. तिलोयपत्ति - ८१५६८ । ३. वही- ४१५८५। ४. हरिवशपुराण -- ६६।१५-२७. ५. सुयगडमुत्त- २७ ॥ ६. भगवती सूत्र १३ । ७ श्रमण-साहित्य में वर्णित विहार-डा० राजाराम जैन । ८. विविध तीर्थकल्प [ कोटि शिला कल्प गाथा- २ ] । ९-१०. श्रमण साहित्य में बिहार - पृ० ८३ । ११. अशोक स्तम्भ लेख म० ७ १० १६ । १२-१३. दे० भारत के दि० जैनगी मा० २, पृ० १२.१८५ १४. भोजपुर आरा जिले का एक छोटा ग्राम । १५. संथाल परगना का एक प्रमुख नगर । १६. ६० श्रमण-साहित्य मे बिहार - पृ० ४२ । २१ शिक्षा संस्थाओं, चिकित्सालयों, वाचनालयो, ग्रंथालयो एवं दानशालाओ के भी निर्माण कराए। विविध उद्योग-धन्धों के माध्यम से उन्होने अपने नगरो एवं बिहार प्रान्त के आर्थिक समुन्नयन में महत्त्वपूर्ण योगदान किया है। जैनतीयों के जीर्णोद्वार एवं लोकप्रियता बढाने में उन्होने करोडो-करोड रुपये व्यय कर जहाँ कलाओं को एवं श्रमिको के नियोजन की व्यवस्था की, वहीं देश के लाखों लाख जैन यात्रियो को आकर्षित कर राज्य के राजस्व में भी प्रतिवर्ष करोडो रुपयों की आय का एक स्थायी साधन बना दिया। जैन धर्मानुयायियों ने प्रारम्भ से ही बिहार को अपने तीर्थकरो, महापुरुषों एवं पूर्वजो को मातृभूमि एव तीर्थभूमि मानकर उसकी प्रतिष्ठा एव गौरव की अभिवृद्धि मे उन्होंने निरन्तर ही पुत्रवत् सेवाकार्य किया है। सक्षेप मे हम यही कह सकते हैं कि कला, सस्कृति, साहित्य उनका आर्थिक समुन्नयन करके पवित्र तीर्थभूमियों के गौरवपूर्ण प्रदेश के रूप में महान यशस्वी इस बिहार के नव-निर्माण में जैनधर्म के रचनात्मक योगदान को कभी भी विस्मृत नहीं किया जा सकेगा। महाजन टोनी नं० २ आरा (बिहार) १०. बिहार एवं पू० पी० की सीमा विभाजक एक नदी १८. दे० श्री बाबूलाल जमादार द्वारा लिखित - सराक हृदय जैन सरकृति के विस्तृत प्रतीक एवं प्राप्य जैन मराक शोधकार्य नामक ग्रन्थ [ अहिंसा निकेतन बेलचापा द्वारा प्रकाशित ] । १६. दे० डा० राजाराम जैन द्वारा सम्पादिन - आ० भद्र बाहु चाणक्य चन्द्रगुप्त कथानक की प्रस्तावना । २०. दे० हाथीगुम्फा - शिलालेख प० स० १२ । २१. दे० रामचन्द्र मुमुक्षुकृत पुण्याश्रवकथा कोप ( उपबास फल प्रकरण) । २२. दे० जैनागम माहित्य में भारतीय समाज - डा० जगदीशचन्द्र जैन पृ० ४६२ । २३. दे० विविध तीर्थकल्प (निधी सीरीज ०६६ २४. साहित्य में वर्णित बिहार १० ३४ ॥ (शेष पृष्ठ २२ पर) २५. दे० मागधम् ६।८५ 1
SR No.538036
Book TitleAnekant 1983 Book 36 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1983
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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