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२०, वर्ष ३६, कि०३
अनेकान्त
जैन-विद्या सम्बन्धी शोध कायों में भी आरा के जैन- सुन्दर विवेचन किया है। गया के श्री रामचन्द्र जैन सराविद्वानों ने भारत में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया वगी डालटनगंज, चतरा, कतरास एव गया में जैनधर्म के है। इतिहास एवं संस्कृति, ज्योतिषशास्त्र एव गणित- विकास हेतु अनेक कार्य किए। वे लेखक एव विचारक विद्या, माहित्यिक ममीक्षा, अप्रकाशित हस्तलिखित ग्रन्थो विद्वान हैं। वर्तमान मे वे कोल्हुआ-पर्वत की पुरातात्विक का सम्पादन एवं समीक्षा एव प्राचीन जैन-साहित्य मे सामग्री का अध्ययन कर कुछ लिखने का विचार कर रहे वणित आर्थिक जीवन एव वैदेशिक व्यापार पर यहा के है। इसी प्रकार डा. जयकुमार जैन M L.C. भागलपुर, विद्वानो ने अनुकरणीय ठोस कार्य किए है, जिनकी शिक्षा श्री चिरजीलाल जैन गया, श्री बिमलकुमार जैन (रेड जगत ने मुक्तकण्ठ मे प्रशसा की तथा समाजसेवी मोटर) गया, श्री स्वरूपचन्द्र सोगानी हजारीबाग, थी सस्थाओ एव राज्य-मरकारों ने भी उन्हें पुरस्कृत किया बिमलप्रसाद जैन झरिया, श्री शिखरचन्द्र जैन खरखरी, है। मे विद्वानो में श्री पं० के० भुजबली शास्त्री, डॉ० श्री दयालचन्द्र जैन आरा, बद्री माद सरावगी पटना, नेमिचन्द्र शास्त्री, डॉ० दिनेन्द्रचन्द्र जैन, डॉ० रामनाथ सुबोधकुशार जैन एव डा. देवेन्द्र कुमार जैन आरा अपनेपाठक, डॉ. राजाराम जैन, डॉ० गदाधरसिंह, डॉ. चन्द्र- अपने नगरो की स्वयसेवी संस्थाओं के माध्यम से जनविद्या देवराय एव डॉ० विद्यावती जैन प्रमुख है।
के बहुमुखी विकास एव जैनधर्म के युगानुकल मर्वोपयोगी मौलिक माहित्य-प्रणयन तथा मगीत एव कला के बनाने में कार्यरत हैं। क्षेत्र में भी आरा का नाम अग्रगण्य है। श्री जैनेन्द्रकिशोर सन १९४५ के आमपाम कुछ साहित्यिक एव पुगजैन ने मन १९३० के आमपाम विविध नाटको एव ग्रन्थो तात्विक प्रमाणो के आधार पर अन्तिमरूप में वैशाली के लेखन से न केवल जैन जगत अपितु जिले के हिन्दी स्थित कुण्डग्राम को भ० महावीर का जन्म स्थान घोषित जगत को भी प्रेरणा दी। शास्त्रीय संगीत में श्री भैरव- किया गया और बिहार के डा० श्रीकृष्ण सिन्हा (तत्कालीन कमार प्रमाद जैन नथा चित्रकला के क्षेत्र मे थी प्रबोध- मुख्यमन्त्री), आचार्य बद्रीनाथ वर्मा (शिक्षा-मत्री), डा० कमार जैन एव सुबोधकुमार जैन के नाम उल्लेखनीर है। अल्टेकर, डा. योगेन्द्र मिथ, थी जगदीशचन्द्र माथर इन चारो व्यक्तियो ने आरा को साहित्य, संगीत एव कला (तत्कालीनन शिक्षा सचिव), श्री आर० आर० दिवाकर का त्रिवेणी-मगम बना दिया है।
(राज्यपाल) आदि ने उस क्षेत्र की सार्थकता बढाने हेतु वर्तमानकालीन गया, हजारीबाग, राँची एव भागल- वहा प्राकृत एव जैन-विद्या के उच्च अध्ययन एव शोधपर भी जैन समाज के प्रमुख केन्द्र माने जाते है । वहाँ की कार्य हेतु एक बहत योजना तैयार की तथा साहू शान्तिसमाजो ने वहा मुरुचिमम्पन्न भव्य जिनालयो के निर्माण प्रसाद जैन के लगभग साढे छह लाख रुपयो के अनुदान मे तो कराए ही, मार्वजनिक हितों की दृष्टि से भी वहा वैशाली मे मन् १६५८ में प्राकृत जैन शोध-मस्थान की कन्या पाठणालाए, हाई स्कूल एव कालेज बनवा कर स्थापना की गई। उसमके मस्थापक निदेशक के रूप मे शिक्षा के प्रचार-प्रमार में महत्वपूर्ण योगदान किया है। डा. हीरालाल जैन ने प्राकृत एव जैन-विद्या सम्बन्धी इनके अतिरिक्त भी मार्वजनिक स्थानो पर पानी की एम० ए० का पाठ्यक्रम तैयार कर उसके अध्यापन तथा टकियां, ब्लड बैंक, नेत्रदान शिविर, ग्रन्यालय, वाचनालय उच्चस्तरीय शोध की व्यवस्था की । शोध संस्थान की आदि का निर्माण कर भ० महावीर के सर्वोदय का मच्चे योजनाओ को माकार करने मे डा० जगदीशचन्द जैन, अर्थ में प्रचार किया है। रॉची के रायबहादुर श्री हरख- डा. नथमल टाटिया, डा० गुलावचन्द्र चौधरी, डा० चन्द जैन इस समय जैन समाज के प्रमुख नेताओं में माने राजाराम जैन, डा० नेमिचन्द्र शास्त्री, डा. विमलप्रकाश, जाते हैं। उनकी सत्प्रेरणा एव सहायता से श्री पी० सी० डा. गमप्रकाश पोद्दार, डा देवनारायण शर्मा, डा. म्वरूप राय चौधरी ने Jainism in Bihar नाम ग्रन्थ लिखकर चन्द्र जैन, एव डा० रजनसूरि का प्रमुख हाथ रहा । डा. पुरातत्त्व की दष्टि मे बिहार के प्राचीन जैन-वैभव का हीरालाल जैन की प्रेरणा मे मगध विश्वविद्यालय ने भी