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________________ बिहार में चैनधर्म २०वीं सदी के प्रारम्भ में आरा नगर बिहार के एक जैन केन्द्र के रूप में उभरकर सम्मुख आया और पिछले लगभग ८० वर्षों में उसने ऐसे अनेक ऐतिहासिक कार्य कार्य किये हैं, जो समूचे भारतीय जैन समाज के लिये प्रेरणा के स्रोत बन गए। ऐसे कार्यों में प्रथमतः भारत विख्यात जैन सिद्धान्त भवन की स्थापना है, जिसमे लगभग १०,००० प्राचीन ताडपत्रीय एव कर्गलीय (सचित्र सामान्य) तथा लगभग सहस्र दुर्लभ ग्रन्थ एवं जर्नल्स एक विशाल कलापूर्ण भवन में सुरक्षित हैं। इसके निर्माता सस्थापक एव संचालक श्री देवकुमार जी जैन एवं उनके सुपुत्र श्री बाबू निर्मलकुमार जैन के नाम जैन-इतिहास में अविस्मरणीय रहेंगे। जैन सिद्धान्त भवन ने अनेक महत्त्वपूर्ण जैन ग्रन्थों का प्रकाशन तो किया ही, साथ ही उसने सन् १९०३ के आसपास जैन सिद्धान्त भास्कर एवं जैन @टिस्बेरी (हिन्दी-अंग्रेजी दोनों में) नामक एक उच्चस्तरीय शोध-पत्रिका का भी नियमित प्रकाशन किया और उसके माध्यम से जैन-विद्या के शोध के क्षेत्र मे एक स्वर्णिम अध्याय का सूत्रपात किया । वर्तमान मे उक्त भवन देवकुमार मैन ओरिटल रिसर्च इंस्टीट्यूट आरा के नाम से एक शोध संस्थान के रूप मे मगध विश्वविद्यालय द्वारा स्वीकृत है और जैन विद्या के विविध अगो पर वहां शोधकार्य चल रहा है। जैन धर्म के विकास के क्षेत्र में द्वारा की जैन समाज का दूसरा महत्त्वपूर्ण कार्य है Sacred Books of the Jaina series का प्रकाशन । आरा के एक उत्साही युवक कुमार देवेन्द्र ने न केवल जैन साहित्य के अंग्रेजी अनुवाद एवं समीक्षा कर अहिन्दी भाषियों के लिये उक्त सीरीज के प्रकाशन की कल्पना की, अपितु देश के अनेक गण्यमान्य विद्वानों को प्रेरित कर जैन विद्या के लगभग २५ प्रत्यो का अंग्रेजी अनुवाद, समीक्षा तथा तुलनात्मक अध्ययन अंग्रेजी में उक्त सीरीज के अन्तर्गत प्रकाशित कर जैन इतिहास के एक नवीन अध्याय का प्रारम्भ भी किया। इन ग्रन्थों के कारण विदेशों में भी जैन धर्म की लोकप्रियता बढी । बारा जैन समाज की तीसरी देन है श्री जैन बाला विश्राम, जिसकी स्थापना ब्रह्म० पं० चन्दाबाई जैन ने बतील एवं वर्तमान १६ सन् १९२१ में की थी। इस प्रथम एवं अनुपम जैन धर्म कन्या शिक्षण संस्था ने जैन महिला जगत में शिक्षा की धूम मचा दी । उसी का सुफल है कि आज देश के कोनेकोने में आरा की प्रशिक्षित जैन महिलाएं जैन समाज तथा विविध सार्वजनिक सेवाकार्यों मे सलग्न है । प० चदा बाई जी का अभी हाल मे दुखद निधन हो गया है किन्तु ब्रह्म० पं० ब्रजबाला जी के तत्त्वावधान में उक्त संस्था प्रगतिशील कार्यों मे सलग्न है। आरा की चौथी देन है श्री आदिनाथ ट्रस्ट जिसने भोजपुर एवं रोहताम जैसे पिछडे हुये जिलों में सार्वजनिक शिक्षाप्रसार का संकल्प किया। इसके सस्थापक थे श्री हरिप्रसाद दास जैन उनके स्वर्गवास के बाद ट के पदाधिकारियो ने उनके नाम पर आग में हरप्रसाद दाम जैन कालेज और हर प्रसाद दास जैनको स्थापना की। ये दोनो शिक्षा सस्थाएँ बिहार के उच्च संस्थानों मे प्रथम स्थान रखती है। इनके अतिरिक्त टुट की ओर विशाल जैन धर्मशाला, औषधालय, ग्रन्थालय, वाचनालय, एवं दानशाला तथा अन्ध-मूक बधिर विद्यालय जैसी सस्थाए भी सचालित है। आरा नगर की पांचवी देन है यहां के ४५ जैन मन्दिर बिहार मे इतने अधिक जैन मन्दिर किसी भी अन्य नगर में नही हैं। इन में से कुछ जैन मन्दिर भव्य, विशाल एवं कलापूर्ण होने के कारण दर्शनीय है। यहां की चौबीसी, नन्दीश्वर एवं चन्द्रप्रभ मन्दिर स्त्र वर्णित हैं । सम्मेद शिखर एवं पावापुरी के जल-मन्दिर की भी अनुकृतियां यहाँ उपलब्ध हैं । उक्त जल-मन्दिर जीर्ण-शीर्ण हो चूका था किन्तु भ० महावीर के २५००वे निर्वाणमहोत्सव वर्ष की स्मृति मे उसका जीर्णोद्वार कर उसे सन् १९७४-७५ में विकसित किया गया था तथा वर्तमान मे भी उसे नगर के एक दर्शनीय स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है। इस कार्य मे गर्वश्री मण्डल, पद्मराज परेशचन्द्र एवं अविनयकुमार जैसे की सुरुचि एवं सत्प्रयत्न सराहनीय है। अन्य कलात्मक वस्तुओ मे मानस्तम्भ, कीर्तिस्तम्भ, सहस्रकूट - चंन्याला एवं बाहुबलि की विशाल सौम्य - मूर्ति दर्शनीय है ।
SR No.538036
Book TitleAnekant 1983 Book 36 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1983
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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