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बिहार में जैनधर्म : अतीत एवं वर्तमान
जैन धर्म के विषय मे लेखन-कार्य हेतु प्रेरित किया। सभ- एक प्राचीन किंबदन्ती के अनुगार धम्मापुरी (भागलवत उसी समय से बिहार के प्राचीन जैन तीर्थों के पुनरु- पुर) मे ११वी सदी में एक जैन-मन्दिर का निर्माण कराया रुद्धार, नव-निर्माण एव उनकी लोकप्रियता को बढाने हेतु गया था किन्तु मुगलकाल मे सम्राट शाहजहा ने उस पर नए-नए प्रयत्न किए गये।
अधिकार कर उसे तथा आसपाम के कुछ गाव चाँदबाई प्राचीन जैन तीर्थ मतियों का जीर्णोद्वार
नाम की एक ब्राह्मणी को राखी बापने के उपलक्ष्य में उमे एवं नव-निर्माण
भेट कर दिया था" उसके बाद उसका क्या हुजा, इसकी सन् १८२५ ई० के आसपास पवित्र गिरिराज सम्मेद जानकारी नही मिलती। शिखर (पारसनाथ पहाड जिला हजारी बाग) को तत्कालीन पाल नरेश से खरीदकर तथा उसका जीर्णोद्धार कर
सन् १९११ मे चम्पापुरी में स्थित मन्दागिरि पर्वत
किसी स्थानीय जमीन्दार के अधिकार में रहने के कारण जैन समाज ने उमको अधित्यका में अगेक नवीन शिखर
बह बडा अव्यवस्थित था लेकिन गादर मत्रीचन्द जैन बन्द जैन मन्दिरो का निर्माण कराया और प्रशासन से सुरक्षा की गारण्टी प्राप्त कर उसकी तीर्थ यात्रा के लिए
कैमरे हिंद (तत्कालीन जनरल नरिटाफ पलिम, देश के कोने-कोने से जैनियो को आकपित किया गया ।
बिहार, बगाल एव उद्दीमा) के अथक प्रनो में वह एतद्विषयक अनेक पूजा-पाठ एव स्तुतियो का प्रणया किया
जैनियों के अधिकार में आ गया"। नाश्चात् उम क्षेत्र का गया । हिन्दी के एक जन कवि द्यानतराय ने उस तीर्थ- बहुमुखी विकास हुआ। वहीं सर्वोपयोगी अनेक जैन-धर्मराज की महिमा मे लिखा है -
शालाओ का निर्माण कराया नया । गन् १९४३ मे बाराएक बार बन्दे जो कोई ताहि नरक पशु-गति नहिं होई।
मती (महाराष्ट्र) के थीमन्त श्री नलकचन्द कस्तूरचन्द ने आगे चलकर उसकी उपत्यका में भी अनेक जन ८५०००) रुपयों की लागत से विशाल भव्य जैन मन्दिरी आर दर्जनो विशाल धर्मशालाओ तथा गगनचुम्बी
मन्दिर का निर्माण कराया तो उभी के आगपाम एक अन्य उत्तग मानस्तम्भी का निर्माण कगया गया इनके अतिरिक्त
जन धमांनुरागी श्री घनश्यामदास मरावगी ने भी एक सार्वजनिक औषधालय, वाचनालय, ग्रन्थालय एवं विद्या
जैन मन्दिर का निर्माण कराया। कहा जाता है कि इस लयों की भी स्थापना की गई जिससे स्थानीय जनता भी मन्दिर मानन्द एव मौर्यकालीन जन-मुनिया सुरक्षित है। लाभान्वित हो सके । इस तीर्थ का वर्णन तीमरी-चौथी मन् १९०० के आगपाग में कु, तीर्थकरो की जन्म, सदी के जैन-साहित्य में भी प्राप्त होता है।
तप एव ममवशरण की पुण्यम गजगही का क्षेत्र ___ सन् १९०१ ई० के आसपास सुप्रसिद्ध पुरातत्त्ववेत्ता विकसित हुआ । तीमरी-वाया दामन माहित्य में उसे डॉ एम० ए० स्टेन तथा सर विलियम हण्टर ने भद्रिकापुरी पचर्णलपुर के रूप में स्मृत किया गया है। २०वी सदी (वर्तमान भदिया, हजारी बाग) की खोजकर उसे तीर्थकर के प्रारम्भिक वर्षों में सभी पहाडियो के प्राचीन जैनशीतलनाथ की जन्मभूमि सिद्ध करते हुए घोषित किया मन्दिरो का जीर्णोद्धार एव नवीन मन्दिरो का निर्माण कि उसके आसपास के सतगवां, कुन्दकिला, बलरामपुर, कराकर श्रेणी मार्ग बनवाये गए तथा यात्रियों की सुविधा बोरम, छर्रा, द्वारिका, उल्मा, कतरासगढ़, पवनपुर, पाक- के लिए अनेक धर्मशालाए और सार्वजनिक औपधालय, वीर एव तेलकुप्पी आदि नगर जैनियों के प्रधान केन्द्र थे। ग्रन्थालय, वाचनालय, विद्यालय एव दानशाला का निर्माण उक्त विद्वानो ने वहाँ की जैन-मूर्तियो के कला-वैभव एव कराया गया। १९३६ ई० में आग को ब्रह्मचारिणी चन्दा अन्य प्रमाणो से आधार पर यह भी सिद्ध किया कि वहा बाई जी ने रत्नागिरि पर्वत पर दशाश्रुतम्कन्ध का निर्माण पर १३-१४वी सदी मे एक विशाल कलापूर्ण जैन मन्दिर कराकर एक ऐतिहासिक कार्य किया । सन् १९४८ मे यहाँ था, जिसमें दूसरी-तीसरी सदी की जैन मूर्तिया सुरक्षित भ० महावीर के प्रथम समवशरण के आगमन की पुण्य
स्मृति में एक कलापूर्ण मानस्तम्भ का निर्माण कराया गया