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________________ २२, वर्ष ३५, कि०३ अनेकान्त परमाणु शब्द रहित और शब्द का कारण हैं : उपर्युक्त परमाणुओं के परस्पर संयोग प्रक्रिया के संबंध जैन परमाणुवादियों ने परमाणु को शब्द रहित और मे जैन-दर्शन की दिगम्बर और श्वेताम्बर परम्परायें। शब्द का कारण बतलाया हैं । परमाणु शब्दमय इसलिए है एकमत नहीं है। दिगम्बर परम्परा की मान्यता है कि क्योंकि वह एक प्रदेशी है। शब्द स्कन्धो से उत्पन्न होता यदि दो परमाणुओं में से कोई एक भी परमाणु जघन्य गुण है। परमाणु शब्द का कारण इसलिए है क्योंकि शब्द जिन अर्थात् निकृष्ट गुण वाला है तो उनमे कभी भी बन्ध नही स्कन्धों के परस्पर स्पर्श से उत्पन्न होता है वे परमाणुओं होता दमके विपरीत श्वेताम्बर मत में दो परमाणुओं में के मिलने से बने हुए हैं।" अन्य परमाणुवादी वैशेषिको परस्पर मे सयोग तभी नही होगा जब वे दोनों ही जघन्य और ग्रीक-दार्शनिकों ने ऐसा नही माना है। गुण वाले हों। यदि उन दोनो मे से कोई एक परमाणु जैन परमाणुवाद के अनुसार परमाणु जघन्य और जघन्य गुण बाला और दूसरा अजघन्य (उत्कृष्ट) गुण वाला उत्कृष्ट की अपेक्षा दो प्रकार का होता है।" पचास्तिकाय होगा तो बन्ध हो जायेगा। तात्पर्यवृत्ति मे द्रव्य परमाणु और भाव परमाणु की अपेक्षा तीसरे नियम के सबध में भी दिगम्बरो की मान्यता परमाणु दो प्रकार और भगवती सूत्र में द्रव्य परमाणु क्षेत्र है कि दो परमाणुओ मे चाहे वे सदृश (समान जातीय वाले परमाणु, काल परमाणु और भाव परमाणु की अपेक्षा हो) या विसदृश्य (असमान जातीय वाले हो) बन्ध तभी ही परमाणु चार प्रकार का बतलाया गया है। ग्रीक और होगा जबकि एक की अपेक्षा दूसरे मे स्निग्धता या रूक्षत्व वैशेषिक परमाणुवाद में इस प्रकार के भेद दृष्टिगोचर नही दो गुण अधिक हो । नीन-चार-पांच सख्यात-असख्यातहोते है।" अधिक गुण वालो के साथ कभी भी बन्ध नही होगा। परमाणुओं का परस्पर संयोग-जन परमाणुवाद के इसके विपरीत श्वेताम्बर मत में केवल एक अश अधिक अनुसार दो या दो से अधिक परमाणुओ का परस्पर बन्ध होने पर दो परमाणुओ मे बन्ध का अभाव बतलाया गया (संयोग) होता है। यह सयोग स्वय होता है इसके लिए है। दो तीन, चार आदि अधिक गुण होने पर दो सदृश वैशेषिकों की तरह ईश्वर जैसे शक्तिमान की कल्पना नही परमाणुओ मे बन्ध हो जाता है। की गई है। जैन परमाणुवादियो ने परमाणु सयोग के लिए एक रसायनिक प्रक्रिया प्रस्तुत की है, जो निम्नाकित है। जैन परमाणुवाद में इस शका का भी समाधान उपलब्ध १. पहली बात यह है कि स्निग्ध और रूक्ष परमाणुओं । है कि परमाणुओ का परस्पर सयोग होने के बाद किस का परस्पर में बन्ध होता है। परमाणु का किसमे विलय हो जाता है ? दूसरे शब्दों में २. दूसरी बात यह है कि जघन्य अर्थात् एक स्निग्ध कोन परमाणु किसको अपने अनुरूप कर लेता है ? इस या रूक्ष गुण वाले परमाणु का एक, दो, तीन आदि स्निग्ध विषय मे उमास्वाति का मत है कि परमाणुओ का परस्पर या रूक्ष वाले परमाणु के साथ बन्धन नही होता है। मे बध होने के बाद अधिक गुणवाला कमगुणवाले परमाणु ३. समान गुणवाले सजातीय परमाणुओ का परस्पर को अपने अनुरूप कर लेता है ? इस विषय मे उमास्वाति बन्ध नही होता है। जैसे दो स्निग्ध गुणवाले परमाणु का . का मत है कि परमाणुओ का परस्पर में वैध होने के बाद दो स्निग्ध गुणवाले परमाणु के साथ बन्ध नही होता है। साधक गुण वाला कम गुण वाल परमाणु को अपने अनुरूप इसी प्रकार रूक्ष गुण वाले परमाणुओं के बन्ध का (स्वभाव के) कर लेता है। नियम है। उपर्युक्त मान्यता दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ४. चौथी महत्वपूर्ण बात यह है कि दो गुण अधिक सम्प्रदाय मे मान्य है । लेकिन दोनों में एक भेद यह है कि सजातीय अथवा विजातीय परमाणुओं का परस्पर मे बन्ध । श्वेताम्बर परम्परा में मान्य सभाष्य तत्वार्थाधिगम भाष्य हो जाता है। दो से कम और दो से अधिक परमाणु का सूत्र में इस विषय में एक यह भी नियम बतलाया परस्पर में बन्ध नही होता है। गया है र नेचिन बोली में एक शोधमक
SR No.538035
Book TitleAnekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1982
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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