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________________ जैन और यूनानी परमाणुवाद । एक तुलनात्मक विवेचन निश्चित नहीं होता है। अतः आकार की अपेक्षा उनमें अभौतिक आत्मा के कारण नही है। भेद है।" परमाणु अचेतन है-परमाण भौतिक और बचेतन (e) सभी परमाणु एक ही तरह के हैं.--जैन-दर्शन में अर्थात् अजीब के उपादान कारण होने से जैन-दर्शन में सभी परमाणुओं को एक ही तरह का माना गया है। परमाणुओं को जड़ और अचेतन कहा गया है । ग्रीक और ग्रीक दार्शनिको के मतानुसार परमाणुओं में मात्रागत वैशेषिक परमाणुवादियो का भी यही मत है। (Quantity), आकारगत तौल, स्थान, क्रम और बनावट परमाणु एक ही भौतिक द्रव्य के हैं : (Shape) की अपेक्ष्य माना गया है ।" वैशेषिकों के जैन-दर्शन में परमाणु एक ही प्रकार के भौतिक द्रव्य अनुसार परमाणुओं में गुणात्मक और परिमाणत्मक इन पुद्गल के माने गये है। ग्रीक परमाणुवादियों का भी यही दोनों की अपेक्षा भेद माना गया है ।* जैन-दर्शन की यह मत है। लेकिन वैशेषिको ने चार प्रकार के भौतिक द्रव्य भी विशेषता है कि उसमे परमाणुगो मे गुणमात्रा आकार के परमाणु माने हैं। आदि किसी भी प्रकार का भेद नही माना है। परमाणु सावयव प्रौर निरवयव है: (१०) परमाणु आदि-मध्य और अन्तहीन है-जैन- जैन-परमाणुवाद के अनुसार परमाणु सावयव और दर्शन मे परमाण को आदि मध्य और अन्तहीन बतलाया निरवयव है । परमाणु सावयव इसलिए है कि उसके प्रदेश गया है। ग्रीक और दर्शन में परमाणुओं को ऐसा नहीं होते है। ऐसा कोई द्रव्य ही नहीं हो सकता जो सर्वथा माना गया है। ग्रीक दर्शन में कुछ परमाणुओ को छोटा प्रदेश शून्य हो दूसरी बात यह है कि परमाण का कार्य और कुछ बड़ा बतलाया गया है ग्रीक दर्शन मे कुछ सावयव होता है। यदि परमाणु सावयव न होता तो परनाणुओं को छोटा और कुछ बड़ा बतलाया गया है।" उसका कार्य भी सावयव न होना चाहिए। अतः स्कन्धों परमाण गतिहीन और निष्क्रिय नहीं है: को सावयव देखकर ज्ञात होता है कि परमाणु सावयव है।" जैन और ग्रीक दर्शन मे परमाणु को वैशेषिकों की परमाणु निरवयव भी है क्योंक परमाणु प्रदेशी मात्र तरह गतिहीन और निष्क्रिय नहीं माना गया है। जैन-ग्रीक है। जिस प्रकार अन्य द्रव्यों के अनेक प्रदेश होते हैं उस दार्शनिको ने परमाणु को स्वभावत' गतिशील और सक्रिय प्रकार परमाणु के नहीं होते है। यदि परमाणु के एक से कहा है वैशेषिको ने परमाणुओं मे गति का कारण ईश्वर अधिक प्रदेश (प्रदेश प्रचय) हो तो वह परमाणु ही नहीं माना है जबकि जैन और ग्रीक दार्शनिको को ऐसी कल्पना कहलायेगा।" परमाणु के अवयव पृथक-पृथक नहीं पाये नही करनी पड़ी है। जाते है । इसलिए भी परमाणु निरवयव है।" परमाणु कार्य और कारगरूप है: अतः जैन परमाणवादियो ने अनेकान्त सिद्धान्त के जैन दार्शनिकों ने परमाणु को स्कन्धो का कार्य माना द्वारा परमाणु को सावयव और निरवयव बतलाया। है क्योकि उसकी उत्पत्ति स्कन्धो के तोड़ने से होती है। द्रव्याथिक नय की अपेक्षा परमाणु निरवयव है और इसी प्रकार परमाणु स्कन्धो का कारण भी है। लेकिन पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा सावयव है। इसके विपरीत वैशेषिक और ग्रीक दर्शन मे परमाणु केवल कारण रूप ही ग्रीक और बैशुद्धिक परमाणुवादी दार्शनिकों ने परमाणु को है कार्य रूप नहीं। निरवयव ही माना है। भौतिक परमाणु प्रात्मा का कारण नहीं है : परमाणुकाल-संख्या का भेदक है-जैन-दर्शन के अनुग्रीक परमाणुवादियों के अनुसार आत्मा का निर्माण सार परमाणु काल संख्या का भेद करने वाला है। बाकाश परमाणओं से हुआ है। लेकिन जैन और वैशेषिक परमाणु- के एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश तक जाने में समय रूप जो वादी ऐसा नहीं मानते हैं। जनपरमाणुवाद के अनुसार काल लगता है उसको भेद करने के कारण परमाणु काम परमाणु शरीर, वचन, द्रव्य मन, प्राणापान, सुख, दुख, अंश का कर्ता कहलाता है। अन्य परमाणुवादियों ने ऐसा जीवन, मरण आदि के कारण हैं। भौतिक परमाणु नही माना है।
SR No.538035
Book TitleAnekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1982
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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