SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिणामि-नित्य देते है। सृष्टि का अव्यक्त और व्यक्त-समग्र परिवर्तन परिवर्तित होने की क्षमता नही होती, वह दूसरे क्षण में उसके अपने अस्तित्व में स्वय सन्निहित है। अपनी सत्ता को बनाए नही रख सकता। अस्तित्व दूसरे परिणमन सामुदायिक और वैयक्तिक-दोनो स्तर क्षण में रहने के लिए उसके अनुरूप अपने आप मे परिपर होता है। पानी मे चीनी घोली और वह मीठा हो वर्तन करता है और तभी वह दूसरे क्षण में अपनी सत्ता को गया। यह सामुदायिक परिवर्तन है। आकाश में बादल बनाए रख सकता है एक परमाणु अनन्तगुना काला है। मडराये और एक विशेष अवस्था का निर्माण हो गया। वही परमाणु एक गुना काला हो जाता है। जो एक गुना भिन्न-भिन्न परमाणु-स्कन्ध मिले और बादल बन गया। काला होता है, वह कभी अनन्तगुना काला हो जाता है । कुछ परिणमन द्रव्य के अपने अस्तित्व में ही होते है। यह परिवर्तन बाहर से नहीं आता। यह द्रव्यगत परिवर्तन अस्तित्वात जितने परिणमन होते है, वे सब वैयक्तिक होते है। इसमे भी अनन्तगुणहीन और अनन्तगुण अधिक तारहै। पाच अतिकाय (अस्तित्व) है। धर्मास्तिकाय, अधर्मा- तम्य होता रहता है। अनन्त काल के अनन्त क्षणों और स्तिकाय और - काशास्तिकाय मे स्वाभाविक परिवर्तन अनन्त घटनाओ मे किसी भी द्रव्य को अपना अस्तित्व ही होता है। जी और पुद्गल मे स्वाभाविक और प्रायो- बनाए रखने के लिए अन- परिणमन करना आवश्यक है। गिक-दोनोर के परिवर्तन होते है। इसका स्वाभा- यदि उसका परिणमन अनत न हो तो अनतकाल में वह विक परिवर्तन वैयक्तिक ही होता है। किन्तु प्रायोगिक अपने अस्तित्व को बनाए नही रख सकता। परिवर्तन सामुदायिक भी होता है। जितना स्थूल जगत् है अस्तित्व में अनत धर्म होते है, कुछ अव्यक्त और कुछ वह सब इन दो द्रव्या के सामुदायिक पारवतन द्वारा हा व्यक्त । प्रश्न हुआ कि क्या धास मे धी है ? इसका उत्तर निर्मित है । जो कुछ दृश्य है, उसे जीवो ने अपने शरीर के होगा घास मे घी है, किन्तु व्यक्त नहीं है। क्या दूध मे दो रूप में उपस्थित रूपायित किया है। इसे इन शब्दो मे भी। घी है ? दूध मे घी है, पर पूर्ण व्यक्त नहीं है। दूध को प्रस्तुतत किया जा सकता है कि हम जो कुछ दख रहे है बिलोया या दही बनाकर बिलोया, घी निकल आया। वह या तो जीवच्छरीर है या जीवों द्वारा त्यक्त शरार है। अव्यक्त धर्म व्यक्त हो गया। द्रव्य मे "ओष" और "समु प्रत्येक अस्तित्व का प्रचय (काय, प्रदेश राशि) होता चित"-ये दो प्रकार की शक्तियां काम करती है । “ओघ" है। पदगल को छोडकर शेष चार अस्तित्वों का प्रचय नियामक शक्ति है। उसके आधार पर कारण-कार्य के स्वभावतः अविभक्त है। उसमे संगठन और विभाजन नहीं नियम की स्थापना की जाती है। कारण कार्य के अनुरूप होता। पदगल का प्रचय स्वभाव मे अविभक्त नहीं होता। रीटोता है। कारण अETAH उपमे सगठन और विधान-ये दोनों घटित होत है। एक है। अब आप पूछ कि धारा मे धी है या नही? तो उत्तर परमाणु का दूसरे परमाणुओ के साथ योग होने पर स्कन्ध होगा-“ओप" शक्ति की दृष्टि से है, किन्तु "समुचित" के रूप में रूपान्तरण हो जाता है और उस स्कन्ध के सारे शक्ति की दृष्टि से नहीं है। पुद्गल द्रव्य में वर्ण, गंध, रस परमाण वियुक्त होकर केवल परमाणु रह जाते है । वास्त- और स्पर्श-ये चारों मिलते है । गुलाब के फूल में जितनी विक अर्थ में सामुदायिक परिणमन पुद्गल में ही होता है। सुगध है, उतनी ही दुर्गध है। किन्तु उममे मुगंध व्यक्त है दश्य अस्तित्व केवल पुद्गल ही है। जगत् के नानारूप और दुगंध अव्यक्त। चीनी जितनी मीठी है, उतनी ही उसी के माध्यम से निर्मित होते है । यह जगत् एक रंगमंच कड़वी है। किन्तु उसमें मिठास व्यक्त है और कड़वाहट है। उस पर कोई अभिनय कर रहा है तो वह पुद्गल ही अव्यक्त । सडान में जितनी दुर्गध है, उतनी ही सुगंध भी है। वही विविध रूपों में परिणत होकर हमारे सामने छिपी हुई है। राजा जितशत्रु नगर के बाहर जा रहा था। प्रस्तत होता है। उसमें जीव का योग भी होता है, किन्तु मंत्री सुबुद्धि उसके साथ था। एक खाई आई, उसमें जल उसका मुख्य पात्र पुद्गल ही है। भरा था। वह कूड़े-करकट से गदा हो रहा था। उसमें अस्तित्व में परिवर्तित होने की क्षमता है। जिसमें मृत पशुओं के कलेवर सड़ रहे थे। दूर तक दुगंध फट
SR No.538035
Book TitleAnekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1982
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy