SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाकवि हरिचन्द्र का समय और प्राचार्य बलदेव उपाध्याय का मत 0 श्री अशोक पाराशर, जयपुर "धर्मशर्माभ्यूदय" और "जीवन्धरचम्पू" के रचयिता कर लिये गये हैं। फलतः इन्हे वादीभसिंह से प्रकि. महाकवि हरिचन्द्र की गणना कालिदास भारवि भोर कालीन होना चाहिए। श्रीहर्ष के "नैषध के अनेक पद्यो माघ जैसे महान् एवं उच्चकोटि के कवियों की श्रेणी में का प्रभाव 'धर्मशर्माभ्युदय" की रचना पर स्पष्टत. लक्षित । लेकिन खेद का विषय है कि हरिचन्द्र के होता है। प्रतएव हरिचन्द्र का समय वादीमसिंह (११ शती) जीवन विषयज्ञान के लिये ऐसा कोई ठोस प्रमाण हमारे तथा श्रीहर्ष (१२ शती का उत्तरार्ष) के अनन्तर होना पास नहीं है जो कि उनके समस्त जीवन-चरित्र का चाहिये। विवरण उपलब्ध करा सकें। इनके माता-पिता एवं भाई २. पाप कवि के समय के विषय में एक अन्य स्थान मादि की सूचना तो हमें 'धर्मशर्माभ्युदय' महाकाव्य की पर लिखते हैं कि "कविवर हरिचन्द्र के ऊपर नैषधचरित प्रशस्ति से प्राप्त होती है लेकिन जन्मस्थान एव समयादि । के प्रणेता श्रीहर्ष का प्रचर प्रभाव लक्षित होता है। की कोई जानकारी इनके ग्रन्थों से नहीं मिलती है। यही हरिचन्द्र की अनेक सरस मूक्तियों का उद्गम स्थल नैषध कारण है कि भारतीय एव पाश्चात्य विद्वान इनके समय काव्य है । जीवघर चम्पू (३/५१) का यह पद्य नैषध की का निर्धारण विभिन्न तो एव प्रमाणो के प्राधार पर एक प्रख्यात सूक्ति (२/३८) से निःसन्देह प्रभावित है - हवीं शती से लेकर १२वी शती के उत्तराघं तक सिद्ध सरोजयुग्म बहुधा तपः स्थितं करने का प्रयास करते हैं। इनके समय-विषयक प्रश्न पर बभूव तस्यश्चरणद्वय ध्रुवम् । जिन विद्वानो ने अपने मतो की स्थापना के लिये प्रत्यधिक न चेत् कथ तत्र च हंसकाविमो प्रयत्न किया है उनमे भारतीय विद्वान् प्राचार्य बलदेव समेत्य हृद्यं तनुतां कलस्वनम् उपाध्याय भी उनमे से एक हैं। हरिचन्द्र का समय निःसन्देह श्रीहर्ष से पीछे तथा माचार्य बलदेव उपाध्याय महाकवि हरिचन्द का १२३० ई० से पूर्व है जब इनके महाकाव्य 'धर्मशर्माभ्युदय' समय लगभग १०७५ ई. से स्वीकार करते है। मापने का पाटन में उपलब्ध हस्तलेख लिखा गया है। प्रतः कवि का समय निर्धारण करते समय दो प्रमाण प्रस्तुत इनका समय एकादश शती का अन्तिम चरण तथा द्वादश किपे है और उन प्रमाणो के प्राधार पर प्रापने अपने मत शती का पूर्वाधं है (लगभग १०७५ ई.--११५० ई.)।'' की स्थापना की है। उपाध्याय जी द्वारा दिये गये प्रमाण--- उपयुक्त दोनों प्रमाणों के प्राचार सस्कृत साहित्य के १. उपाध्याय जी अपने मत के समर्थन मे एक स्थान दो प्रसिद्ध काव्यकार है जिनके वादीभसिंह काव्यकार है पर लिखते है कि "जीवंधर चापू की कथाबस्तु का प्राधार तथा श्री हर्ष हिन्दू धर्मावलम्बी है। प्रथम प्रमाण मे बादीभसिंह के "गाचतामणि' तथा 'क्षत्रचूड़ामणि" को उपाध्याय जी ने वादीभसिंह तथा श्री हर्ष तथा द्वितीय बनाया है। इतना ही नही 'क्षत्रचूडामणि' के अनेक पद्य प्रमाण मे उन्होने कवि को श्रीहर्ष से उत्तरवर्ती कहा है। बहत ही कम परिवर्तनो के साथ जीवधर चम्पू में स्वीकृत वादीभसिंह का समय "१०वी शतो" तथा "११वी शती"" १. ग्र, भारतीय ज्ञानपीठ, वाराणसी से सन् १९१७ मे ४. सस्कृत साहित्य का इतिहास, प्राचार्य बलदेव प्रकाशित हो च का है। उपाध्याय, पृ० २४८।। २. ग्रथ भारतीय ज्ञानपीठ वाराणसी से सन १९७१ में ५ वही पृ० २४६ ६. संस्कृत साहित्य का इतिहास, प्राचार्य बलदेव प्रकाशित हो चुका है। उपाध्याय, पृ० २५६ ३. सस्कृत साहित्य का इतिहास, भाचार्य बलदेव ७. सस्कृत साहित्य का इतिहास, प्राचार्य बलदेव उपाध्याय, पृ०२४६ उपाध्याय, पृ० २४८ तथा ४०६
SR No.538033
Book TitleAnekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1980
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy