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महात्मा मानवधन काव्य-समीक्षा
दिया है । घरबार में मन नहीं लगता पौर जीवन से राग वर्षा का जल पोर सर, सरिता तथा सुरविन्दुमबल छटता जा रहा है। विरह को वेदना प्रथाह है, कोई थाह किसी की उष्णता मिटाता हो, विरहिणी का विरह-ताप नहीं ले सकता ऐसा कौन हवीब तवीब है, जो उस वेदना कम करने में असमर्थ है। ताप का कम होना दूर, इसके को मिटा सके। कलेजे में गहरा घाव है, जो तभी पुरेगा, उलटे वह पौर अधिक सूख जाती है। जब दुनिया हरीजव प्रिय मिलन हो
भरी होती है, उसका घट-सर सूख जाता"भोयन पान कथा मिटी, किसकुं कहुं मूषो हो।
गाल लगाय के, सुर-सिन्धु समेली हो। प्राज काल घर पान की, जीव मास विलुद्धि हो। असुपन नं.र बहाय के, सिन्षु कर ली हो। वेदन विरह अथाह है, पाणी नव नेजा हो।
श्रामण भादं धन घटा, बिच बीच झबला हो। कौन हबीब तवीब है, टार कर घाव करेजा हो।"
सरिता सरवर सब भरे, मेरा घट सर सुका हो। कबीर की विरहिणी को भी दिन में चैन नही, तो रात को
जायसी का कथन है-"अब मघा नक्षत्र मकोरनीद नही । तडफ-तड़फ कर ही सबेरा हो जाता है । तन
झकोर कर बरस रहा था, सब कुछ हरा-भरा ही गवावा, मन रहंट की भांति घमता है। सुनी सेज है, जीवन मे तब विरहिणी भरे भादो मे सूख रही पी। 'पुरवा' नमन कोई प्रास नही । नन थक गये है, रास्ता दिखाई नही
के लगने से पृथ्वी जल से भर गई, किन्तु वह पनि पाक देता। सांई बेदरदी है, उसने कोई सुध नहीं ली। दुख
भौर जवास की भांति झुलस रही थीबह रहा है कैसे कम हो--
"बरसा मघा झकोरि-मकोरी। तलफ बिन बालम मोर त्रिया,
मोर दुइ नन चुवै जस मोरी॥ दिन नहिं चन गन नहिं निदिया,
धनि सूख भरे भावो माह | तलफ-तलफ के भोर किया।
प्रबहुं न प्रारम्हि न सीचिन्हि नाहाँ ।। तन-मन मोर रहट-जम डोलं,
पुरबा लागि भूमि जल पूरी। सून मेज पर जनम छिया ।
प्राक-जवास भई तस री॥" नैन किन भये पथ न सूझ,
महात्मा प्रानन्दघन मध्ययुगीन हिन्दी के उत्तम कोट साँई बेदरदी सुध न लिया।
के कवि थे 'मामपद सग्रह' मे संकलित उनकी रचनाएं कहत कबीर सुनो भाई साधो,
अध्यात्ममूला भक्ति की निदशन है। वह केवल धर्मग्रन्थ हगे पीर दुख जोर किया।
नही है उसमें साहित्य रस है। भाषा प्रौढ है, तो काव्यपानी बरसता है तो हरियाली फैलना स्वाभाविक है, प्रतिभा जन्मजात । हिन्दी साहित्य में उनका अपना एक किन्तु विरहिणी भोर अधिक सूख जाती है, ऐसा सभी न स्थान है, इस स्वीकार करना हो होगा -माज या कल। लिखा है। जायसी ने लिखा तो यानन्दघन ने भी। दोनों
प्रध्यक्ष, हिन्दी विभाग, मे समानता है। मानन्दघन का कथन है कि श्रावण-भादो
दिगम्बर जैन कालेज, बड़ौत (मेरठ)