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________________ मानानंद बावकाचार : एक परिचय प्राजीविका की क्या बात ? सो हाय ! हाय ! हंडाव. कौन पुरुष मग्न नहीं हो। पृ० (६४.६७) भट्टारकों की सर्पणी काज्ञ के दोष से पचम काल मे कैसी विपरीतता ऐसी स्थिति होते हुए भी उनको प्रशंसा के गीत कहीं कहीं फैली है ? काल या दुकाल मे कोई गरीब लड़का भूखे सुनने को मिलते थे उसके सम्बन्ध में इस प्रथ मे निम्न मरने की स्थिति प्राने पर चार रुपये में नौकर रखा पंक्तियां मिलती है: जाता है। फिर भी वह दास की तरह निर्माल्य खाकर उनकी (भट्टारको को) श्रावक प्रशंसा करते है कि बडा हा। उसने जिन मंदिर में ही रहने का घर क्यिा माप हमारे सतगुरु हैं प्रोर भट्टारक उन्हें 'पुण्यात्मा धावक' पौर उसके शुद्ध देव गुरु धर्म के विनय का प्रभाव हुमा बताते है। इस कएन पर 'ऊंट का व्याह भौर गधे गीत और वह कुगुरादि सेवन का अधिकारी हुआ, उसने ऐसा गाने वाला' दष्टात लाग होता है। मधे गीत गाते हैं कि पोरों को उपदेश भी दिया। (जययुर के एक मदिर मे वर का स्वरूप कामदेव जैसा है पौर ऊँट कहता है कि ऐसे पत्र मिले है जिनमे किसी पाण्डे द्वाग किसी के लडके गधे किन्नर जाति के देवों के मधुर कंठ के जंता राग को खरीदने का विवरण है) अधे जीव उसी का प्राश्रय गाते हैं इस प्रकार इन श्रावक और उनके गुरुषों की शोभा लेकर धर्म साधना चाहते है। वह अपने को पुजाकर महत जाननी (पृष्ठ १८) इममे ज्ञात होता है कि भट्टारकों के मानने लगा और वह स्वयं अपने मुख से कहता है कि हम प्रतिशयोक्तिपूर्ण विशेषणों को सत्यता स्वीकार करने में भट्टारक दिगम्बर गुरु हैं, हमे पूजो नही पूजोगे ता दण्ड कितनी सावधानी की पावश्यकता है। नया मिरा भरो... वकी को ग्रंथ मे अन्यत्र भट्टारको को लिगी बताने हुए लिखा साथ लिए फिरते हैं। वस्तुतः भट्रारक नाम तो तीर्थकर गया है ---"कुलिंगी मंदिर को अपने घर की तरह बनाकर केवली का है। जितना-जितना परिग्रह कम हो उतना- गादी तकिये लगाकर ऊँची चोकी पर बैठकर बड़े महत उतना संयम बहना जाय । जबकि वह हजागे रुपए की पुरुषों की तरह अपने पापको पुजाते हैं, इसका फल उन्हे सम्पदा, चढने के लिए हाथी, घोडा, रथ पालकी, नौकर- कैसे मिलेगा यह हम नहीं जानते । • वे गहस्थों को चाकर रखता है, मोती कड़ा पहनता है मानो वह नरक जबरदस्ती बुलाकर माहार लेते है। (पृ० ६६) वे उनसे लक्ष्मी के पाणिग्रहण की तैयारी करता है। वह चेला पाहार और भेंट स्वरूप भंवर-नगदी लेते थे। प्रादि की फौज रखता है वह ऐसी विभूति रखता हा भट्टारकों की इन व अन्य शास्त्र विरुद्ध चर्चायो को राजा के सदृश्य बन कर रहता है, फिर भी अपने पापको देखकर धर्मात्मामो की प्रतिक्रिया का उल्लेख प्रय में इस दिगम्बर (नग्न) मानता है। सो है दिगम्बर, हम कैसे प्रकार किया गया है:-"प्रब क्या करना? केवली उमे दिगम्बर जाने ? वह एक दिगम्बर नही है, वह तो श्रुतकेवली का तो प्रभाव हो गया और गहस्थाचार्य पहले मानो हंडासर्पनी की पंचम काल के विधाता द्वारा घड़ी ही भ्रष्ट हो गए थे प्रब राजा और मुनि भी (भट्रारक हई मूर्ति है.या मानो सान पसनो की मूर्ति ही है या मानों उस समय अपने पापको मुनि रुप में ही पुजत थे) भ्रष्ट पाप का पहाड़ ही है था मानो जगत को डबोने के लिए हो गए सो प्रब धर्म किम के प्राथय रहे? अब चकि प्रपन पत्थर की नाव है। कलिकाल के ये गूरु प्रतिदिन पाहार को धर्म रखना है सो प्रब श्रीजी की स्वय ही पूजा करा ग्रहण करने को नग्नता अपनाते है और स्त्री के लक्षण और स्वय ही शास्त्र पढ़ा पार कुवषियो का जिन मदिर देखने के बहाने उनका स्पर्श करते है। वे स्त्री के मुख में बाहर निकाल दो। वे भगवान का नहुत प्रविनय करने कमल को भ्रमर की तरह देखकर मग्न होते है एव प्राने हैं, अपने पापको पुजाने है, और मदिर का घर सदश बना प्रापको कृत्य-कृत्य हुमा मानने हैं, सो यह बात न्याय ही लिया। १० १११ (उग समय जिन पूजा, शास्त्र पढने है - नित्य इन्हे नाना प्रकार का गरिष्ठ भोजन मिले मौर का अधिकार भी भट्टारको के पादमियो तक था जिसका नित्य नई स्त्री मिले उनके सुख का क्या कहना? ऐसा वे रुपए से लेते थे)। । सुख राजा को भी दुर्लभ होता है सो ऐमा सुख पाकर जब रक्षक पौर धर्मापवेक्षक, धर्म गुरु ही भ्रष्ट हो
SR No.538033
Book TitleAnekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1980
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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