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बंदिक, बौद्ध तथा जैन वाडमय में सत्य का स्वरूप
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अहितकर होता है, वह सत्य नहीं हुमा करता ।' क्योंकि महाप्रज्ञ (श्री मनि नथमली) का यह कथन निश्चय ही मत्य के लिए यह मावश्यक है कि काया की सरलता भावों सार्थक प्रतीक होता है कि "जिसने अपनी धारणा की को सरलता तथा मन, वचन और काय रूप योग को खिड़को को सत्य से देखा, वह सत्य से दूर भागा है। एकरूपता हो।
जिसने तथ्यों की खिड़की से सत्य को देखन का प्रयत्न किया सत्य की विशिष्टता का वर्णन करते हुए जैनाचार्यों वह सत्य के निकट पहचा है। यदि संमार में अपनेपन का ने बताया कि सत्य की साधना करनेवाला मेधावी साधक प्राग्रह न होता तो सत्य का मह प्रावरणो से ढका नही दुःखो से घिरा रह कर भी घबराता नहीं है। वह मृत्यु होता।" के प्रवाह को भी निर्वाधरूप से सहज में ही तैर जाता
--पीली कोठी, मागरा रोड, है।' वास्तव में सत्य को अग्नि जलाती नहीं, पानी
मलीगढ (उ० प्र०) उसको डुबोने में असमर्थ होता है। सत्य के प्रभाव से पिशाच तक भाग जाते है तथा देवगण उसका
'अनेकान्त' के स्वामित्व सम्बन्धी विवरण रक्षण करते है, बदन करते है। निश्चय ही सत्य हो समार मे सारभूत है । वह महा समद्र से भी अधिक गम्भीर
प्रकाशन स्थान-वीरसेवामन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली है। वह चन्द्र मण्डल से अधिक सौम्य है तथा सूर्यमण्डल
महक-प्रकाशन वीरसेवामन्दिर के निमित्त मे भी अधिक तेजस्वी है ।' प्रस्तु विश्व के सभी सत्पुरुषो
प्रकाशन अवधि - त्रैमासिक श्री सोमप्रकाश जैन ने मृषावाद अर्थात् असत्यवचन को निन्दा की है। असत्य |
राष्ट्रि कता--भारतीय पता-२३, दरियागंज दिल्ली-२ का प्ररूपण करने वाला प्राणी ससार-सागर को पार करने
सम्पादक-श्री गोकुलप्रसाद जैन मे सदा असमर्थ रहता है। अतः यह कहा जा सकता है
राष्ट्रिक ता भारतीय पता-- वीर सेवा मन्दिर २१, कि सत्य सदा उपयोगी तथा कल्याणकारी होता है। ऐसे हितकारी सत्यवचन का बोलना श्रेयस्कर है।
दरियागंज, नई दिल्ली-२ उपर्यकित विवेचन के प्राधार पर यह निष्कर्ष | स्वामित्व-वीर सेवा मन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२ निकलता है कि सत्य की प्राघार शिला ज्ञान पुंज है । ज्ञान ।
| मैं प्रोम प्रकाश जैन, एतदद्वारा घोषित करता है कि के प्रभाव मे सत्य अप्रकट रहता है । ऐसी स्थिति में तथ्य | मेरी पूर्ण जानकारी एवं विश्वास के अनुसार उपयुक्त की अपेक्षा प्राग्रह की प्रधानता रहती है। पाग्रही-माहौल
विवरण सत्य है। --प्रोमनकाशन प्रकाशक मे प्रात्मगवेषणा असंदिग्ध ही कही जाएगी। युवाचार्य १. 'सत्यप्रियं हित चाहुः सूनत ब्रता:।
५. "सच्च. 'लोगम्मिसारभयं, गंभीरतरं महासमुदायों। तत्सत्यमपि नो सत्यमप्रिय वाहित च यत ।'
--प्रश्न व्याकरणसूत्र २।२ -प्रनगारधर्मामृत, अधिकार स०४, श्लोक सं० ६. "सच्च सोमतर चन्द मंडलामो, तितरं सर
४२, पं. खबचन्द, शोलापुर सं० ई० १६२७. मडलामो।" --प्रश्न न्यायकरणमा 0 २. "सहिमो दुक्ख मत्ताएपुछो नो झंझाए।"
७. 'ममावायो उ लोगम्मि, सव्व साहहिं गरहिमो।" --प्राचागग सूत्र १।३।३
--दशवकालिक ६१३ ३. "सच्चस्स प्राणाए उठ्ठिए मोहावीमारंतरह।" ८. "जेते उ वाइणो एवं, नते मंसार पारगा।" -- प्राचारांग सूत्र १३।३
--सूत्रकृतांग, १।११।२१. ४. "भगवती पाराघना, मूल गाथा स० ८३५.८५२ "भामियव्य हियं सच्चं।" सखारामदोशी, शोलपुर, स० ई० १६३५.
-- उत्तराध्ययन सूत्र, अध्याय १६, गापा २७.