SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सीता-जन्म के विविध कथानक तो मिलती नहीं, किन्तु पाँच रत्न उसे पब मिलते हैं । उन रहता है, कि जो कोई इस धनुष को तोड़ेगा उसी से इस रत्नों को एक पेटिका में रख रावण लंका में ले पाता है। कन्या-रत्न का विवाह होगा।" पेटिका बहुत ही भारी है, लंका के वीरों से वह नही उठ 'दशरथात्मजा:-'जातक' बौद्धधर्म का प्रसिद्ध अन्य पासी । पेटिका खोलने पर मन्दोदरी एक नारी को देख है। तीन जातको मे राम-कथा मिलती है । दशरथजातक, तुरन्त ढंक देती है और उस पेटिका को वह मिथिला की मनामक जातक मोर दशरथ कथानकम् । इसमे राम कथा भूमि में गड़वा देती है। वह पेटिका एक शूद्र को ब्राह्मण के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण 'दशरथजातक' ही है। उसके की जमीन जोतते समय प्राप्त होती है। ब्राह्मण पृथ्वी-धन अनुसार-महाराज दशरथ वाराणसी के राजा थे इनको को राजधन समझ उसे जनक को सौंप प्राता है। पेटिका ज्येष्ठ-महिषी को तीन सन्तानें थी। दो पुत्र और एक पुत्री। से जनक को एक युवती कन्या प्राप्त होती है और पुत्रोवत राम पंडित और लक्ष्मण नाम के पुत्र तथा सीता नाम की उसका पालन-पोषण करते है। पुत्री थी। ज्येष्ठ महिषी को मृत्यु के पश्चात् द्वितीय रानी दक्षिण भारत की एक कथानुमार - लक्ष्मी एक फन से बालक गभं रहा, उससे भरतकुमार पुत्र हुमा। भरत से उत्पन्न होती है। वेदमनि (एक ऋषि) उस बालिका के जन्मोत्सव पर राजा दशरथ भरत की माता को दो को पाते है, और सीता नाम रखते है। कन्या समद्र-तट वग्दान देता है । जो राजा के पास धरोहर रूप मे रहता पर तपस्यारत रहती है । रावण उसके सौंदर्य की प्रशसा है। भरतकुमार जब ७ वर्ष के होते है, तो भरत की माता सुन वहां पाता है। कन्या उसे देख अग्नि मे प्रवेश कर भरत को युवराज पद पर मभिषिक्त करने को राजा से जाती है। (भस्म हो जाती है) वेदमनि राख बटोर कर आग्रह करती है । राजा मौन रहते है। रानी का भाग्रह एक स्वर्ण-यष्टि मे रखते हैं । यह यष्टि रावण के पास उग्रतर होने लगता है। राजा को षड्यन्त्र की सम्भावना पहुंच जाती है और बह (यष्टि) कोषागार मे रख दी का अनुमान होता है । राजा ने रामपरित व लक्ष्मण को जाती है। एक दिन यष्टि के अन्दर से प्रातो आवाज निकट बुला मम्पूर्ण वृत्तान्त बतलाया और साथ ही यह सुनकर उसे खोला जाता है, जिससे एक सुन्दर कन्या प्राप्त भी कहा कि तुम लोगो का जीवन निरापद नहीं लगता। होती है । ज्योतिषियों को भी वाणी सुन कि 'वन्या' लका उचित होगा कि तुम लोग यहा से किसी सुरक्षित स्थान के नाश का कारण होगी, रावण भयभीत हो उस कन्या मे चले जायो। मेरी मृत्यु के पश्चात् माकर राज्य पर को स्वर्ण-मञ्जषा में रखवा कर समुद्र मे बहवा देता है। अधिकार कर लेना। मजषा कृषकों को मिलती है और अपने राजा को उसे ज्योतिषियो की भविष्य-वाणी के अनुसार राजा का सौंप देते है । सम्भवतः जिम 'फल' से सीता का जन्म होता जीवन प्रभी १२ वर्षों का था, प्रतएव दोनो भाई बहिन है वह मीताफल रहा होगा और उमी कारण कन्या का सीता देवी वाराणसी छोड़ हिमालय की तलहटी मे माबम नाम ऋषि ने 'सीता' रखा था। बना कर रहने लगते है नौवें वर्ष में राजा की मृत्युदक्षिण भारत के एक कथानुसार-"ईश्वर योगी का पश्चात् भी भरतकुमार राजदण्ड ग्रहण नहीं करते। रूप धारण कर लंका में बास कर अन्य प्रकार का उपःव प्रमात्य-पण् टुल भी गनी के विचार का विरोध करता है। करते है। पश्चात् वे नगर के एक फाटक पर पहरा देने भरतकुमार सेना सहित राम को लौटाने के लिये वन में लगते हैं । बहा वे बुझी हुई राख इकट्ठी करते हैं जिसमे जाते है। भरतकुमार जब राम के पाश्रम पर पहुंचते हैं, से एक बहुत बड़ा पेड़ उत्पन्न होता है । योगी चला जाता उस समय राम पडित वहाँ पहले ही होते हैं । भरतकुमार है। रावण पेड़ के चार टुकड़े कर समुद्र में प्रवाहित करा राम को पिता की मृत्यु का दुख समाचार सुनाते हैं। देता है। पेड़ का एक टुकड़ा जनक के राज्य में पहुंचता सायकाल लक्ष्मण पौर सीता देवी प्राश्रम मे लौटने पर है। मंत्री उसे यश की प्रग्नि में जलवा देते है। प्रग्नि से पिता की मृत्यु सुन अधीर हो उठते है। तब रामपंडित 'सीता' एक धनुष के साथ प्रगट होती है। धनुष पर लिखा उन्हें संसार की प्रनित्यता का उपदेश सुनाते हैं। परिवार
SR No.538033
Book TitleAnekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1980
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy